Category: कविताएं
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अज्ञान
ज्ञान से ही अज्ञानता पर विजय प्राप्त की जा सकती है। कलमकार डॉ. कन्हैया लाल गुप्त द्वारा रचित एक कविता पढ़िए और अज्ञानता के पर्दों को हटाने का प्रयास करें। ज्ञान का प्रकाश प्रकाशित होते ही अज्ञान मिट जाता है। जैसे बारिश होते ही आकाश से धुंधकोहरे छँट जाते हैं। जैसे सूर्य निकलते है बाग…
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हम दोनों मिले ऐसे
कुछ मुलाकातें जेहन से भुलाएँ नहीं जातीं हैं, उनकी छाप इतनी गहरी होती हैं कि दिल अक्सर उनमें खो सा जाता है। कलमकार अनुभव मिश्रा भी एक ऐसी ही मुलाकात को कविता का रूप देकर प्रस्तुत कर रहे हैं। वो हल्की बारिश, सुनहरा अम्बर, बहकी बहकी सी थी हवा, क्या खूब वो मौसम भी था…
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कोरोना वायरस
वैश्विक चिंता का विषय बन चुकी है संक्रामक बीमारी कोरोना। सभी को थोड़ी सी सावधानी और सतर्कता अपनाकर इसका सामना करना है। कलमकार सूर्यदीप कुशवाहा का संदेश पढ़ें। कोरोना वायरस का भय सताए लोगों से अब बस नमस्ते कराए हाथ किसी से जो कोई मिलाए कोरोना को वह साथ ले जाए चीन से पनपा यह…
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दीवार उस पार
दीवारें दूरियाँ बढ़ाती हैं, मन में आशंकाओं का निर्माण इनके कारण हो जाता है। कलमकार इमरान संभलशाही के विचार इस कविता में व्यक्त हैं। हम सभी की अपने मन में उठने वाली हर दीवार को ढहाना चाहिए जिनसे दूरियों और आशंकाओं का जन्म होता हो। दीवार भी बन गई पुताई भी हो गई और तो…
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प्रयत्न कर
सफर में ठोकर लग जाने से हम मंजिल नहीं भूल जाते बल्कि पुनः खड़े हो उसकी तरफ़ अग्रसर होते हैं। कलमकार साक्षी सांकृत्यायन की ये पंक्तियाँ सतत बढते रहने का संदेश देती हैं। ठोकर लगे तो क्या हुआ सम्भल के आगे और बढ़।प्रयत्न करता ही रहे कठिनाइयों के संग लड़।तू हौसला बुलंद कर इन हौसलों…
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क्षणिकाएं
जीवन के यथार्थ को प्रकट करतीं हुईं कलमकार मुकेश बिस्सा की कुछ पंक्तियाँ प्रस्तुत हैं। छोटी छोटी सी चीजों में बड़ी-बड़ी खुशियाँ छिपी होती हैं। दुख सैकड़ों मिलते हैं दुख लेने वाला नहीं मिलता दिल जिस से मिले खुशी हमें हमको वो दिलदार नहीं मिलता डूबेगी जब कश्ती साहिल के करीब भूले हुवे माझी को…
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बरगद का पेड़
इलाके के पुराने वृक्ष हमारी कई पीढ़ियों के हमसफ़र रहे हैं। किंतु आज आधुनिकता के चलते वे वृक्ष नहीं बचे, यदि कहीं हैं तो उनसे भी उनका हाल जानने की कोशिश करें। कलमकार राजेश्वर प्रसाद जी एक बरगद के पेड़ की अभिव्यक्ति अपनी कविता में जाहिर की है। जब मुझमें साखें निकलने लगी थी गांव…
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चलो कुछ लिखते हैं
मनुष्यों का व्यवहार भी अजीब है, कभी सुलझी हुई बातें करतें हैं तो कभी उनकों ही समझ पाना मुश्किल होता है। कलमकार निहारिका चौधरी की इस कविता में हमारे स्वभाव के बारें में कुछ बातें बताई गईं हैं। चलो कुछ लिखते हैं हर जगह पानी मिलता है, फिर भी लोग पैसों से पानी ख़रीद कर…
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जरा दूरियां रहने दो
कलमकार अनिरूद्ध तिवारी की एक रचना पढें जिसमें वे लिखते हैं कि प्यार में थोड़ी दूरी बनाए रखिए। वैसे भी विरह और दूरियाँ प्रेम को और मजबूत करतीं हैं। इतना भी करीब होना ठीक नहीं! जरा दूरियां रहने दो! बादलों को हटने का इंतजार करो, तब खुला आसमान दिखेगा खामोश रहकर, समझो प्रेम को अनुभूति…
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यार मेरे
दोस्त और दोस्ती की बातें भी निराली होती है। नाराजगी, झगड़ा, अनबन, ताने, सुझाव, प्यार सब कुछ दोस्ती देती है और शायद इसीलिए यह सबको भाती है। कलमकार अनुभव मिश्रा के विचार भी इन पंक्तियों में पढ़ें। भीड़ की मुझे जरूरत नहीं ना ये पंडित किसी काफिले का तलबगार है, मुकम्मल मानता हूँ खुद को…
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मैं कहता हूँ गजल
जब दिल पर बढते भार असहनीय हो जाते हैं तो मैं गजल कहता हूँ और गुनगुना लेता हूँ। ऐसा करने से एक नई ऊर्जा मिल जाती है- यही कह रहे हैं कलमकार अजय प्रसाद इन पंक्तियों में। जिम्मेदारियों के साथ, मैं कहता हूँ गजल हद से बाहर होती है बात मैं कहता हूँ गज़ल। हसरतों,…
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होली २०२०
होली का त्यौहार मिल-जुलकर, मन की कड़वाहट मिटाकर मनान चाहिए। कलमकारों ने अपनी कविता के माध्यम से सभी देशवासियों को होली की शुभकामनाएँ दी हैं। १) अपनेपन की पिचकारी ~ नीरज त्यागी अपनेपन के रंगों से मन की पिचकारी भर दो।अबके होली में तुम सबको एक रंग में भर दो।। ना हिन्दू हो,ना कोई मुस्लिम,एक…
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रंग-ए-उल्फ़त
अच्छी है रस्म-ओ-रह रंगों की गुल की गुलाल की उमंगों की हर सम्त है बज़्म-ए-तरब जैसे गूँज हो नए तरंगों की यार अग़्यार की टोली में सदा है मुतरिब के आहंगो की घोल दे फ़ज़ा में रंग-ए-उल्फ़त ये साख है उड़ते गुलालों की अच्छी है रस्म-ओ-रह रंगों की गुल की गुलाल की उमंगों की ~…
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मेरा गाँव
गाँव की छटा और खूबसूरती को कलमकार मुकेश वर्मा ऋषि ने इस कविता में बखूबी दर्शाया है। लोकगीत, हरियाली, बाग-बगीचे, खेत, किसान और ग्रामीण लोगों से भरी हुई जगह एक सुंदर गाँव ही होती है। वृक्षों और लताओं से घिरा हुआ पीपल वाली ठंडी छाँव देता मेरा गाँव मृदुल नीर से भरा सरोवर लेता हिलोर…
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तू कृष्ण की राधारानी भी
महिला दिवस विशेष अनिरूद्ध तिवारी की कविता: तू कृष्ण की राधारानी भी तुम धरा हो, आकाश भी तू भोर का प्रकाश भी तू कोमल है तू इश्क भी तू कठोर है तू अश्क भी तू समाज भी परिवार भी तू आंगन है, घर द्वार भी तू हौसला सम्मान भी तू मर्यादा है पहचान भी तू…
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कुछ लड़कियां
कुछ लड़कियां खेलना जानती हैचुटकुले सुन खुल्लासा हंसना जानती हैवो बिन मौसम सजना संवरना जानती हैवो लड़ना जानती है वो रोना भी जानती है। कुछ लड़कियां खेलाना जानती हैसमय समय पर बच्चों को खिलानापिलाना जानती है वो हंसना और रोनाभी जानती है वो बस नहीं जानती तोसिर्फ और सिर्फ अपने लिए लड़ाई लड़ना। ~ स्वाति…