Category: कविताएं
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हे माँ! आशीष देना
सतत कर्मशील और आशावादी बनकर ही रहना चाहिए, ऐसा करने में हम ईश्वर का आशीर्वाद अवश्य चाहेंगे। कलमकार उमा पाटनी ने एक रचना साझा की है जो उनकी प्रकाशित पुस्तक के पहले पृष्ठ का अंश हैं। आसमां में घिर गये हैं अब तो देखो स्वप्न मेरे अब कलम की स्याही से मस्तक सजाना चाहती हूँ…
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हमारे सरकार खफ़ा हैं
कोई अपना जब रूठ जाता है तो मन बहुत बेचैन हो जाता है और उसे मनाने के लिए अनेकों उपाय ढूंढता है। कलमकार अजय प्रसाद जी ने भी लिखा है कि अब क्या करें? हमारे सरकार तो खफ़ा हो चुके हैं। हमसे हमारे सरकार खफ़ा हैं जाने क्यों बरखुरदार खफ़ा हैं। चिढ़े-चिढ़े रहते हैं वो…
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मुकेश बिस्सा, जैसलमेर
नाम: मुकेश बिस्सा जन्म तारीख: 29 जनवरी 1975 जन्भूमि: जैसलमेर कर्मभूमि: जैसलमेर शिक्षा: बी एस सी, बी एड शौक:लेखन,गायन व भ्रमण Above mentioned information are shared by the author on 23 February 2020.
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सरस्वती वंदना
विद्या की देवी माता सरस्वती की यह स्तुति कलमकार आनंद सिंह की रचना है, आप भी पढें और अपने विचार व्यक्त करें। हे वागेश्वरी हे वाग्देवीहे विणापाणी ज्ञानदाहे हंसवाहिनी हे महाश्वेताहे मात सरस्वती शारदा आदिशक्ति का रूप मात तुमश्री विष्णु का आवाह्न तुमब्रह्मा जी जब विचलित हुए तोमां उनका एकमात्र निवारण तुम तुम बिन ना…
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आज फिर से मनाऊंगा
रूठने मनाने का दौर न तो कम हुआ है और न ही समाप्त होगा। इसी में तो प्यार के कई पल उलझे होते हैं जिन्हें सुलझाना हमारा दायित्व है। कलमकार विजय कनौजिया जी कहते हैं कि तुम्हे मुस्कान देने के लिए आज फिर से मनाऊंगा। वजह फिर मुस्कुराने की कोई मिल जाए जीवन में तो…
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ऐसा करो, ऐसा करो
देवरिया से कलमकार डॉ. कन्हैया लाल गुप्त अपने बचपन और बीते दिनों को याद करते हुए कुछ पंक्तियाँ लिखते हैं जो उनके संघर्ष को भी बयान करतीं हैं। वे अपने गाँव ‘भाटपार रानी’ का भी ज़िक्र करते हैं, आइए उनके शब्दों में उनकी कहानी पढ़ें। ऐसा करो, ऐसा करो!! मै भाटपार रानी बन जाता हूँ…
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एक बुराई- छोड़ दूं
समाज में अनेक बुराईयां भी हैं जिनका शिकार सभी बनते हैं और उससे लड़ने का प्रयास हर इंसान करता है। इन सबसे लड़ते हुए जब व्यक्ति का हौसला टूटने सा लगता है तो वह यह लड़ाई छोड़ने की बात सोचता है। कलमकार प्रीति शर्मा ‘असीम’ ने इसी संघर्ष को अपनी कविता में संबोधित किया है।…
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बच्चों की खुशी
माता-पिता बच्चों की खुशी के लिए न जाने कितना परिश्रम करते हैं। वे हर हाल में उनकी इच्छा पूरी करना और मुस्कुराते हुए देखना चाहते हैं। कलमकार कुमार संदीप की यह कविता पढ़ें और अपने विचार व्यक्त कीजिए। आँखों में नींद पैरों में थकान है हर रोज़ सहन करता हूँ अनगिनत कठिनाईयाँ मैं हर रोज़…
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माँ की परछाईं
सभी को यह एहसास होता है कि कोई तो कि उसकी माँ उसके साथ है। कभी-कभी माँ से दूर होने पर उनकी यादें/बातें परछाई बनकर हमारे संग रहती है। कलमकार साक्षी सांकृत्यायन की यह पंक्तियाँ आपको माँ की महानता वयक्त करतीं हैं। पास रहे या दूर रहे हर वक़्त में वो एहसास रहे परछाईं बनकर…
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हे भोलेशंकर
महाशिवरात्रि महोत्सव पर कुमार संदीप की लिखी हुई एक शिव वंदना पढें। सबका कल्याण करें भोले नाथ- यही हमारी मनोकामना है। हे, भोलेशंकर! आप तो सभी का कल्याण करते हैं न तो हे, भोलेशंकर! दीन दुखियों को दिन भर क्योंं जूझना पड़ता है अनगिनत तकलीफ, दर्द हे, कृपालु! अपनी कृपादृष्टि दिखाइये उन पर हाँ हे,…
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चलो गुनगुनाएं, कोई गीत गाएं
जीवन के उथल-पुथल में हम बहुत सारी तकलीफें सहते हैं, लेकिन हंसी खुशी हर पल आगे बढ़ते रहते हैं। कवि मुकेश अमन लिखते हैं कि दिलों के बीच की दूरियां मिटाकर हमें खुशी के गीत गुनगुनाना चाहिए। चलो गुनगुनाएं, कोई गीत गाएं । संगीत सरगम, चलो मीत गाएं ।। सुर ताल साथी, नही है जरूरी।…
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दूर नहीं होती
बहुत सारी ऐसी जोड़ियाँ हैं जो एक दूसरे के बिना अधूरी हैं। कलमकार कन्हैया लाल गुप्त जी ने कुछ जोड़ियों का वर्णन अपनी कविता में किया है। फूल से शबनम जुदा नहीं होती। आकाश से तारें गुम नहीं होते। जल से शीतलता दूर नहीं होती। माँ से वत्सलता दूर नहीं होती। गगन से सूरज दूर…
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नदियाँ
नदियों का हमारे विकास में बहुत योगदान है। प्राचीन काल से ये हमारी संस्कृति और समृद्धि की परिचायक रहीं हैं। नदियों का संरक्षण हमारी जवाबदेही है। आओ हम कलमकार मुकेश ऋषि वर्मा के विचार इस कविता में जानें। सृष्टि का निर्माण नित-नित नदियाँ करतीं प्रकृति का श्रृंगार हरदम नदियाँ करतीं मनुज ही नहीं, हर प्राणी…
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महाकाल
महाशिवरात्रि महापर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ। महाकाल- कलमकार राजीव डोगरा की यह कविता पढ़ें। काल हूँ महाकाल हूँ अनंत का विस्तार। रुद्र का भी अवतार भाव से करता भक्तों को भव पार हूँ। न दिखे सत्य तो संपूर्ण संसार का करता विनाश हूँ। काली का महाकाल हूँ विष्णु का आराध्या मैं विश्वनाथ हूँ। मैं स्थिर हूँ…
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कुमुदिनी बसंत
बसंत ऋतु का वर्णन कलमकार इमरान संभलशाही अपने शब्दों में कुछ इस तरह करते हैं। संध्या सुंदरीअपने आगोश में लेबस सुता देना चाहती हैवृक्ष की शाखाओं तलेकुमुदिनी वसंत को और टहनियों की भीनी खुशबू संगअरुण वक्ष की श्वेत कणिकाधार पा दुहिताकरुणामयी धरा के आंचल सरीखीगुप अंधेरी रात में विटप की सरसराती हवाओंमें मिट खो जाना…