हर ओर एक अजब सन्नाटा है

भोर से साँझ तक और
साँझ से रात तक भोर तक
हर पल अब यूँ है लगता
जिंदगी ही एक रहस्य हो जैसे
पेड़ों पे गौरैइया, दिन में भी चुप हैं
लगता है एकदम बौउरा गये हैं
और ये गली के कुत्ते
रात के सन्नाटे में भी सब चुप हैं

अजब खामोशी है
घर के भीतर अपनों के
सिर्फ दिल की धड़कन
और पड़ोसियों के घर से
सिर्फ़ साँस का शोर
सुनाई देता है

सिर्फ़ मौत के ख़बर
के ख़ौफ़ से ही बँद है नारे
झोंक के जान औरों की आग में
बचाते फिर रहे हैं अपनी जान
जान की बाज़ी लगाने वाले
क़ुदरत का है ये कैसा क़हर
हर ओर एक अजब सन्नाटा है

~ अतुल “कृष्ण”


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