मातृदिवस पर कलमकारों की रचनाएँ

1. मां- जीवन का सार ~ प्रियंका पांडेय त्रिपाठी

मां तुम हो सागर,मैं नदियां की धार।
तुम बिन मेरा नही हो सकता उद्घार।।

तुमने हंसना बोलना,चलना सिखाया।
धीरज धैर्य सच्चाई की राह दिखाया।।

तुम प्रथम गुरु,नेकी का पाठ पढ़ाया।
तुमने जीवन का हमें सार समझाया।।

जब जब कदम लड़खड़ाए, तुमने उंगली थाम लिया।
डांटा,प्यार से सही गलत का मतलब समझाया।।

अपनी पीड़ा को छुपाया, मुस्कुराता चेहरा दिखाया।
अपनी इच्छाओं को मारा हम पर सब कुछ वार दिया।।

हमारा भविष्य संवारा, जीवन को दिया एक किनारा।
तुम्हारी वजह से कोई परिहास नहीं कर पाया हमारा।।

मां तुम जीवन का सार, तुम बिन जीना है दुश्वार।
तुम्हारा अहसास शीतल छाया तुम ही धरती आकाश।।

प्रियंका पांडेय त्रिपाठी

2. माँ ~ डॉ. मनोज कुमार

मुकद्दर के सिकंदर हो, हार में भी ये एहसास कराती है।
कड़ाके की सर्दी में नरम धूप का सुख वो तुम को देती है।।

उसके आगे सारी होशियार धरी की धराई रह जाती हैं।
तुम्हारी आँखों और चेहरे से वो सब कुछ भाप लेती है।।

तुम्हारे महत्वकांक्षा के परिंदों को हर रोज नई उड़ान देती है।
कैसी भी हो अड़चनें राह में वो पल भर में आसान कर देती है।।

बड़ी ही खामोशी से वो बड़े-बड़े काम कर देती है।
वो ही है जो जगत में सब कुछ तुम्हारे नाम कर देती है।।

जीत का सेहरा तुम्हारे ही सिर पे बँधे ये दुआ देती है।
वो “माँ” ही है तुम्हारी जो हर पल तुम्हारे साथ रहती है।।

तुम को सुनाने की खातिर किस्से तक भी घड़ लेती है।
उसकी लोरियाँ “मन” को अब भी बेहद आराम देती है।।

डॉ. मनोज कुमार “मन”

3. मेरी मां ~ मनोज बाथरे चीचली

जिसकी छांव में मिलता है
मुझको चारों धाम जैसा
सुख और प्यार
जिसके चरणों में ही तो
व्याप्त है समस्त जहां का
पुण्य प्रताप
बदौलत इसकी ही
हम पाते हैं इस जहां में
एक अनमोल स्थान
मेरी मां है जहां में
सबसे महान।।

मनोज बाथरे चीचली

4. माँ ~ मधु शुभम पाण्डे

जिसने नौ महीने पेट में रखकर अपने रक्त की बूंदों से हमें सींचा है वो माँ है।
जिसने असहनीय पीड़ा सहकर हमें जन्म दिया वो माँ है।।
जिसने सैकड़ों रातें जागकर, नींद भर हमें सुलाया वो माँ है।
जिसने खुद गीले में सोकर,हमें सूखे में लिटाया वो माँ है।।
जिसने हमारे बीमार होने पर खुद का चैन खोया वो माँ है।
जिसने दिनभर हमारे पीछे दौड़कर,खुद को थकाया वो माँ है।।
जिसने खुद की ख्वाहिशें दबाकर हमें काबिल बनाया वो माँ है।
जिसने हमें कामयाब देखकर खुद को कामयाब पाया वो माँ है।।
जिसने अपना जीवन भी संतान के लिए पाया वो माँ है।
माँ के लिए कोई दिन मत मनाओ,
भाइयों में माँ को बांटना न पड़े खुद को ऐसा इंसान बनाओ।।

मधु शुभम पाण्डे

5. माँ की मोहब्बत ~ कोमल साहा

“माँ” शब्द नहीं,प्यार का अथाह सागर है
वो एक औरत नहीं,ममता की मुरत है।

माँ की मोहब्बत का न कोई मोल है
जब चाहो आजमा लो ये तो अनमोल है।

माँ ही होती जीवन देने वाली
अच्छे- बुरे में फर्क समझाने वाली।

माँ ही होती है पहली गुरु
जीवन के गूढ़ रहष्यों को खेलते- खेलाते समझा जाती है।

माँ तू है एक सुखद अनुभूति
दुःख के तपिश को ममता के आँचल से तू ढंक देती।

तेरा होना ही हमें जीवन के परीक्षाओं से लड़ने की शक्ति देता
हिम्मत जो कभी हार जाता, तुझे सोच कर फिर आगे बढ़ जाता।
सच ही कहते है, शब्दों से परे है माँ की परिभाषा।

कोमल साहा

6. मेरी माँ ~ कोमल साहा

मां और मेरा रिश्ता कुछ ऐसा है
याद मैं करूं एहसास तुझे होता है
एक दिन फोन ना करूं तो बेचैन तू होती है
संग मेरे हंसती है संग मेरे तू रोती है
हां मां तू मेरा अभिमान है
मुश्किल समय में तू बन जाती मेरी मान है
चोट मुझे लगती है तो दर्द तुझे होता है
हां मां तेरा मेरा रिश्ता तो सबसे अलग लगता है
अगर मैं बीमार पड़ जाऊं तो मां
तू मुझे क्यों याद आती है
लगता है ऐसे आके
तू मेरे सर को सहलाती हैं
मां जब मैं परेशान होती हूं
तो तुझसे बात करके
सारी परेशानी भूल ही जाती हूं
हां माँ ईश्वर का वरदान है तू
या खुद मेरा भगवान है तू
मैं यह समझ नहीं पाती हूं
अपने सुख-दुख की बातें लेकर
तेरे पास चली आती हूं।

कोमल साहा

7. मां ~ मनोज बाथरे चीचली

संसार में मां ही
मेरे जीवन का आधार हैं
मां से ही मेरा वजूद है
मेरी मां ही मेरा पूर्ण संसार है
मां से ही मेरी पहचान है
क्योकि
मां के बिना संसार सूना है
इसलिए कहा जाता है
मां की तो महिमा अपरंपार है।।

मनोज बाथरे चीचली

8. माँ ~ ललिता पाण्डेय

मेरी जुबां का पहला स्वर है माँ
मेरी लिखावट का पहला अक्षर है माँ
लड़खड़ाते कदमों की गिरने की आवाज है माँ
विश्वास की अनुभूति है माँ
पहली रसोई में जले पराठे की मुस्कान है माँ
स्वयं को परखने का दर्पण है माँ
हमारी हर समस्या का समाधान है माँ
मंत्रो में ओउम है माँ
हमारी गलतियों का निराकरण करने वाली
गंगा सी पावन है माँ
हर घर की छटपटाती नजरों की
आक्सीजन है माँ।

ललिता पाण्डेय

9. मां सपनों में आकर ~ दिनेश सिंह सेंगर

मां रात को आती है,
मां सुबह को जाती है
मां सपनों में आकर,
लोरियां सुनाती है।

जिस ओर देखता हूं,
पलकों को उठाकर मैं
उस ओर मेरी मां की,
मूरत मुस्काती है।।

दिनेश सिंह सेंगर

10. पहली मोहोब्बत- माँ ~ सुमित सिंह पवार

जैसे ही माँ ने बोला, तू अब खेलकर आ सकता है। 6 साल का सोनू तेजी से घर के बाहर की ओर दौड़ गया और बाहर खेलते बच्चों के झुण्ड में मिल गया। माँ भी अपने काम में लग गयी। दो बच्चों में सोनू छोटा था। वो कहते हैं न छोटे बच्चे का माँ से ज्यादा ही लगाव ही होता है या ये कहिये कि बचपन वाली पहली मोहोब्बत माँ ही तो होती है। हर दस-पंद्रह मिनट बाद सोनू भागकर घर आ जाता और माँ का चेहरा देखकर फिर भाग जाता। माँ भी इस बात को समझ जाती कि ये बन्दर जैसी घुड़की देने सिर्फ इसलिये आता है क्योंकि खेलते-खेलते इसे माँ की याद आ जाती है। माँ उसके पीछे-पीछे पूरे दिन थोड़ा-थोड़ा खिलाने को भागती रहती और रातभर लोरियाँ सुनाती। कभी-कभी माँ जब बिमार हो जाती और बिस्तर पर चुपचाप लेटी रहती तो सोनू धीरे से आकर उनके हाथ को छूता और माँ मुस्कुरा जाती। फिर वो उठती और उसे गोदी में लेकर बैठ जाती, वो भी माँ के मंगलसूत्र से खेलता रहता। माँ की बिमारी वहीं खत्म हो जाती। माँ के लिये वो और उसके लिये माँ ही मोहोब्बत और दुनिया थे।

रिश्तेदारों के आगे माँ अपनी मेहनत और संस्कार सोनू के जरिये प्रदर्शित करती जब सोनू सबके पैर छूता और कवितायें सुनाता। माँ बस उसे निहारती रहती और उसकी बलायें लेती रहती। एक मजबूत भविष्य की नींव माँ ही तो होती है। सबकुछ ठीक था, मगर एक दिन शहर में महामारी फैली और माँ ने अपने लाल को सुरक्षित करना प्रारंभ कर दिया। न जाने कहाँ से वो बिमारी माँ को भी लग गयी। मगर माँ तो इस दुनिया का सबसे बड़ा योद्धा होती है तो बच्चे को खुद से दूरकर अस्पताल में भर्ती हुई। दिन-प्रतिदिन, हर दिन वो अपने बच्चे के लिये,परिवार के लिये और खुद के लिए बिमारी से लड़ी। मगर हालत में न सुधार हो सका और एक दिन अपनी ममता को सोनू पर लुटाकर माँ परलोक चली गयी। सोनू की वो पहली मोहोब्बत अधूरी रह गयी। मगर माँ का वो हँसता चेहरा, आज भी आँखों में है। अब जब वो खेलकर आता है तो सब दिखते हैं, माँ नहीं दिखती और माँ के बिना तो कुछ नहीं दिखता।

मेरी दिली तन्हाई, मेरा हमरंग समाँ थी,
मेरी जमीं, मेरा अनवरत आसमाँ थी,
चलता है हर कोई लाभ लिये साथ अब
जो बिन लोभ साथ रही, वो सिर्फ माँ थी।

सुमित सिंह पवार “पवार”

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