ममता तो माँ की पूंजी है

ममता तो माँ की पूंजी है

1. बिन कहे हर बात समझती~ कमल राठौर साहिल

आज भी वो आखरी शब्द
मेरे कानों में गूँजते है
जब उखड़ती साँसों से
मेरी माँ ने कहा
में जीना चाहती हु !
में मरना नही चाहती!

आज भी मुझे याद है
थरथराते हाथों से जब
मेरी माँ ने मेरे सिर पर
आखरी बार हाथ फेरा
ओर कुछ पलों बाद ही
काल ने मेरी माँ की साँसों को
हर लिया सदा के लिए

आज माँ नही है
मगर माँ की यादे
आँखे नम कर जाती है।
मेरी माँ अब सदा यादों में
ज़िंदा रहती है

माँ को याद करने के लिए
मुझे किसी विशेष दिन की
जरूरत नही पड़ती
माँ तो मेरी हर साँस में सदा
ज़िंदा रहती है
जब तक मेरी साँसे
चल रही है
माँ हर पल मेरी
आती जाती साँसों में
रहती है जब तक मे हू
मेरी माँ परछाई की तरह
सदा मेरे साथ है।

कमल राठौर साहिल

2. ममता की सूरत ~ निशांत सक्सेना

मां का प्यार ,
जिसके रंग है हज़ार,
कैसे कर सकते है कलम से बयां,
समर्पण की मूरत है,
ममता की सूरत है,
बच्चे के हर सुख को देख मुस्काती है,
हो गर कोई दुख तो चंडी बन जाती है,
चाहे जितनी हो धूप जिंदगी में,
बच्चो को छांव का एहसास कराती है,
नौ महीने का कष्ट झेलकर,
वात्सल्य का एहसास कराती है,
करुणा का सागर है वो,
जो बच्चो की हर गलती को समझाती है,
संस्कारों को कराती है विद्यमान,
देती हमेशा बच्चो को अच्छा ज्ञान,
वो मां ही है,
जो हर बुरी नजर से बच्चो को बचाती हैं।

इं निशांत सक्सेना “आहान”

3. हमारी आदर्श ~ राइम निगम “शैवालिका”

प्यार को है जिसने बांटा,
निस्वार्थ स्वभाव जिसने पाया,
हमारा विश्वास है बनाया ,
हमने उन्हें मां के रूप में पाया।
मासूम सा हृदय है जिसका,
फूल सा कोमल हाथ है उसका ,
जो हमारी आदर्श बनी ,
वही तो हमारी मां बनी।
हर गलती को है सुधारा,
अपनी हंसी से हमको उभारा ।
जहां साजा वहां बस प्रकाश है बांटा,
बस ऐसी ही है कुछ हम सब की माता।

राइम निगम “शैवालिका”

4. माँ के चरणों में सारे धाम ~ रवींद्र कुमार शर्मा

मां ममता की ऐसी मूरत, जिसमें बसी भगवान की सूरत
रोम रोम में त्याग है जिसके,करती पूरी सभी ज़रूरत
मां बरगद का वह पेड़ है,जो छांव सबको देता है
तप्ती धूप ठिठुरती सर्दी को,अपने ऊपर ओढ़ लेता है
मां की ममता समुद्र की गहराई,कोई समझ नहीं पाया
बेटे ने तो ठुकराया लेकिन, मां ने फिर भी अपनाया है
पूरे जीवन में माता ने,दिया सभी को बहुत ही प्यार
कर्ज तेरा सौ जन्म में भी,नहीं सकता कोई उतार
उंगली पकड़ कर मां ने ही, मुझको चलना सिखाया है
मानवता का पहला पाठ,मां ने ही तो पढ़ाया है
मुझको सुलाया सूखे में,खुद गीले पर मां सोई हो
मेरे कष्ट में मेरी माँ तुम,रात रात भर रोइ हो
मुझको सुलाने के लिए, जब तुम लोरी गाती थी
तेरी थपकी से मां मुझको,गोदी में नींद आ जाती थी
खुश हूं मैं वो खुश हो जाती, पीड़ा देख हो जाती बेचैन
मन ब्याकुल हो जाता मेरा, छलक जाते जब उसके नैन
रूखी सूखी ठंडी बासी, रोटी खुद खा जाती है
मेरे लिए हमेशा मां,ताजी रोटी बनाती है
मन में उसके एक तमन्ना, अच्छा पहनूँ अच्छा खाऊं
पढ़ लिख कर में भी कभी,बड़ा आदमी बन जाऊं
मां नहीं होती तो कैसे होता यह संसार
मां तुझसे ही तो है हर घर में बहार
तुझसे ही तो सीखता है बच्चा संस्कार
तेरे बिन मां सब हो जाते लाचार
मां को जब देखो देती है, दिल से सबको दुआएं
कष्ट में जब भी कोई होता,सबसे पहले मां को पुकारे
मां केवल एक नाम नहीं,माँ तो एक शक्ति है
मां की सेवा से बढ़कर,नहीं कोई भक्ति है
परिवार रूपी भवन की मज़बूत नींव तुम हो
छत जिसमें सबको मिलती वह भवन तुम हो
मां तेरे चरणों में हैं, इस जगत के चारों धाम
जुग जुग जिये मेरी माता, तेरे चरणों में शत शत प्रणाम

रवींद्र कुमार शर्मा

5. माँ ~ शिवकुमार शर्मा

ममता लबालब भरा शब्द हैं माँ
शहद से कहीं मीठा शब्द है माँ
सभी दुःखों की दवा
ज्यों प्रकृति में हवा
दुनिया का अनुपम शब्द है माँ
कितना शुकून मिलता है
बयां नहीं होता
जब जिह्वा से निकलता है एक शब्द
माँ

शिवकुमार शर्मा

6. माँ और ममता ~ महेन्द्र सिंह कटारिया

जब माँ की वात्सल्य स्मृति में खोता हूँ।
तब रहा नही जाता, तनहा तनहा रोता हूँ।।
कर अपनी आजीविका का जुगाड़़,
संध्याकाल घर जब मैं आता हूँ।
काश! आज भी पास बैठाकर खिलाती,
बस यहीं बात भूलकर भी भूला न पाता हूँ।
रह रहकर उन्हीं की यादों में
देर रात तक रोता हूँ।
जब जब माँ की वात्सल्य स्मृति में खोता हूँ।

माँ ने मुझे उंगली पकड़कर चलना सिखाया,
उन्हें खुशी थी अपार जब हाथ पकड़कर ‘क’ लिखवाया।
जीवन के हर दौर में एक नया हौंसला दिया,
धर्यशील होकर हर गलती को माफ़ किया।
तभी तो आज बच्चों में तालीम के बीज बोता हूँ।
जब जब माँ की वात्सल्य स्मृति में खोता हूँ।

दुनिया के चाँद सितारों तक की खुशियां दी,
बालहट की हर ख्वाहिशी पूरी की।
कितना कुछ दिया जिन्दगी में
वह आज भी समझ नही पाया हूँ।
ता जिन्दगी हूँ ऋणी क्योंकि उन्हें
चंद न चुका पाया हूँ।
जिन्दगी के मायनों की कहानी का असली श्रोता हूँ।
जब जब माँ की वात्सल्य स्मृति में खोता हूँ।

वह आत्मीयता की मूरत मेरे साथ रहती हैं,
देखता हूँ तस्वीर तो आज भी ममत्व की सरयू बहती हैं।
हर परिस्थिति में आज भी उनका आशीष लेता हूँ।
हो कठिनतम डगर फिर भी पार कर लेता हूँ।
आदर्शों पर चल उनके वैसी ही स्नेह माला पोता हूँ।
जब जब माँ की वात्सल्य स्मृति में खोता हूँ।

महेन्द्र सिंह कटारिया ‘विजेता’

7. वो माँ है ~ ललिता पाण्डेय

वो माँ है जो डाँटती भी है
तो प्यार भी करती है
हजार गलतियाँ करे हम चाहें
हमारी छोटी सी कामयाबी के
लाखों सपने सजा कर रखती है।

उम्र हमारी हो जाए पचास या साठ
उसके लिए हम होते बच्चे ही है
वो पुकारती आज भी
बचपन के नामों से है

हमारे बचपन के किस्से
संजो रखती है हदय के कोर में
कोई पूछे तो बड़े प्रेम से
बयां करती है शरारतें भी
लिए नयनो में प्रेम का नीर।

हमारे आने की खबर सुनकर
अभी भी जाती है वो रसोई में
हमारी पसंद का खाना बनाने

कोई नही पूछता उससे उसकी पंसद
वो अक्सर खुश हो जाती है
हमारी मुस्कान देखकर
और हमारी उड़ान में
वो भी उड़ती है पंख फैला
ऊँचे गगन को छूने।

हमारी ख्वाहिशों को पूरा करती है
लड़कर अपनों से ही वो
हमारे सपनों में रंग भरती है
चुरा कर रंग अपने सपनों का।

ललिता पाण्डेय

8. जब मां मुझको नहलाती थी ~ दिनेश सिंह सेंगर

मां की गोदी में गंगा,
यमुना, क्षिप्रा नित आती थी
सभी तीर्थों के फल मैया
एक पल में दी जाती थी।
घाट बने मां के चरणों पर
वेद मंत्र उच्चारण करते,
मेरे कुंभ तभी तक थे
जब मां मुझको नहलाती थी।।

दिनेश सिंह सेंगर

9. माँ ~ मनीषा कुमारी

माँ का नाम सुनते ही सबके दिमाग मे एक ही विचार आती हैं सबसे पहले, जो हमे जन्म दी है वो माँ हैं।ये जो कि सत्य है लेकिन जो माँ अपने बच्चों को जन्म देने के बाद किसी कारणवश अगर मर जाती है तो उस बच्चे को जो भी परवरिश करते वो भी माँ कहलातीं है, माँ के कितने स्वरूप है, धरती माँ, जगत जननी माँ, भारत माता, जन्म देने वाली माँ, परवरिश करने वाली माँ, गुरुमाता हमारी शिक्षिका भी जो हमे जीने की राह बताती है, सही मार्गदर्शन करती है वो भी हमारी माँ की ही रूप है। माँ के अनन्य रूप है, माँ तो उस मूरत को जो खुद भी भूखे रहकर अपने बच्चों को खाना खिलाती है| एक माँ को सम्मान देने के लिए मातृ दिवस साल के मई महीने के दूसरे रविवार को मनाया जाता हैं।क्या हम आज अपनी माँ को सम्मान देने के लिये उनके दिवस की दिन का इंतजार करते है, जो माँ अपने बच्चों के लिए दिन रात मेहनत करती है उन्हें नौ महीने अपने गर्भ में रखकर उसे इस दुनिया में लाती है, उनके लिये आज हम एक दिन का इंतजार करते, पूरी जिंदगी अपनी बच्चों के खातिर उसकी खुशी के लिए बिता देती वही बच्चा बड़ा होने पे उन्हें बोलते तु किया ही क्या है मेरे लिए, ये वो इंसान जो खुद मौत से लड़कर आपको इस दुनियां में जन्म देती उसे ही आप छोड़ कर उनसे दूर हो जाते, जब माँ दिवस आती है तो सबलोग स्टेटस लगाते प्यार जताते, और वही माँ को अगले दिन उन्हें रुलाते आखिर क्यों ये दिखावा, अगर अपने माँ को सम्मान देना है आपको अपने जिंदगी के हरपल में हर दिन उन्हें सम्मान नाकि एक माँ दिवस सभी बच्चों ऐसा नही होते न होना चाहिये, उनके मेरी बातों से किसी को ठेस पहुँची हो उसके लिए मैं क्षमा चाहूंगी, माँ तो वो मिट्टी की मूरत है अगर बारिश भी आ जाये तो अपने बच्चों को बोलती बेटा तुम घर मे जाओ भीग जाओगे वो ख़ुद बारिश में अपने सन्तान के लिए मरने को भी तैयार रहती हैं वो है माँ,कहने को तो शब्द बहुत छोटा है पर इस शब्द की गहराई को हम नाप नही सकते हैं। हम दुनिया के लिए बेसक कुछ भी नहीं है पर हर बच्चा अपनी माँ के लिए सब कुछ होता है, एक औरत अपनी जिन्दगी अपने बच्चे अपने परिवार के लिए समर्पित कर दे और बदले में प्यार के सिवा कुछ ना मांगती वो सिर्फ एक माँ।प्यार भरी हाथो से हमारी थकान मिटाने वाली वो है एक माँ, अपने बच्चों के खुशी मे खुद का ग़म भुला देती वो है माँ।हमारी आंखों के आँसु अपने आंखों से बहाने वाली वो है माँ।अपने बच्चों के खातिर अपने पति से लेकर पूरे समाज खिलाफ हो जाती वो है माँ। जब भी हम रोते है तो दुनिया तमाशा देखती उस समय आँशु पोछने वाली वो है माँ, अपने बच्चे के लिए खुद की भी उम्र लग जाए ऐसी दुआ करने वाली वो है माँ।

माँ सच मे महान हैं, जन्म देनेवाली और शिक्षा देनेवाली सभी माँ मेरे लिए समान है उनके चरणों मे मेरी और से कोटि-कोटि प्रणाम।

मनीषा कुमारी

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