माँ से रिश्ता है अनूठा

माँ से रिश्ता है अनूठा

1. बिन कहे हर बात समझती~ सुहानी राय

बिन कहे हर बात समझती
जीवन में रंग भर जाती माँ!
दर्शाती है रोष कभी तो
कभी अनुराग लुटाती माँ!
आषाढ़ की तपती दोपहरी में,
शीतल छांव बन जाती माँ!
बंजर वसुधा के ऊपर भी,
मेघ फुहार बरसाती माँ!
डूबते हुए सागर में भी,
आशा की पतवार बन जाती माँ!
सारी दुनिया से लड़कर,
हालातों को बदल देती माँ!
बिन कहे हर बात समझती
जीवन में रंग भर जाती माँ!

सुहानी राय

2. मां तेरे सदके जाऊंगी ~ चाँदनी झा

जो प्रकृति है, जो शक्ति है, जिससे जीवन मिलती है।
क्या संभव है लिख पाना उसकी कहानी?
फिर भी मैंने, जो मां को जाना, जो महसूस किया, सुनाती हूं अपनी जुबानी।।
मेरे अस्तित्व का, जिसे सबसे पहले एहसास हुआ।
मेरा होना, जिसके लिए बेहद खास हुआ।।
मेरे जन्म से पहले ही, मुझे अपना समझने लगी,
बिना देखे ही, वह मुझे प्यार करने लगी।
जन्म लिया जब मैंने, दर्द सहा उसने,
मुझे देखती ही, भुला दिया हर पीड़ा जिसने।
अपने खून से सिंचा,अपना दूध पिलाया,
मेरे मुस्कुराने पर मुस्कुराई, मैं रोई तो उसका दिल रोया।।
मुझसे ही शुरू होने लगी, उसके दिन और रात,
मुझे बताने लगी, अपनी सारी बात।
आंसू ना बहाऊँ मैं, इसके लिए कितना वो रोई।
मैं सो सकूं सुकून से, इसलिए वह जैसे तैसे सोई।।
“हरि” भी आते धरा पर, मां का प्यार पाने।
मां की महिमा, मां की ममता, से ना कोई हैं अनजाने।।
मेरे दर्द को, मुझसे भी पहले जाना।
मां है, तो लगता है हर गम अनजाना।
‘मां’ की आंखों में, ‘मां’ की हर बातों में
‘मां’की दुआओं में, मां की तमन्नाओं में।
बसती हूं सिर्फ मैं, मेरे बिना, ना उसका कोई ख्वाब,
मैं हूं तो है, उसके सारे ख़यालात।।
मुझे जीना सिखाया, प्रेम होता है क्या यह बताया,
मैं खिल सकूं, इसलिए हर पल उसका सपना मुरझाया।
अपनी सारी खुशियां मुझ पर ही लुटाती है,
‘बिजी’, ‘आई’, ‘बा’ ‘अम्मी’, और मदर भी कहलाती है।
जब आए बच्चों पर मुसीबत, सिहिनी वह बन जाती है।।
मां, मैया, अम्मा, मम्मी, जन्मदात्री, जननी, जाया।
तुझसे मिला है जीवन, हूं मैं तेरी छाया।।
सपने मैं देखूं रंग वो भरती है, मां तो मां है, कहां किसी से डरती है??
मैं तुझे भूल भी जाऊं, तू कहां भूलती है।
मेरे लिए हर मुसीबत झेले, हर गम से लड़ जाती है।।
मां तूने जो मुझे इस जहां में लाया,
मुझे इस लायक बना कर, जीने का रास्ता दिखाया।
कभी न ऋण चुका पाऊंगी, मेरी मां, मैं भी “मां” बनी हूं,
समझूंगी सार्थक जीवन, यदि तुझसा बन जाऊंगी।
कितनी सारी बातें हैं तेरी, मैं कहां लिख पाऊंगी,
एक “मदर्स डे” तो क्या? सारी जिंदगी, “तेरे सदके जाऊंगी”।।
सुनो मां, तेरे लिए मैं भी गीत गाती हूं।
मेरी उम्मीद, मेरी जिंदगी, तू है तो दुनिया में है हर खुशी।।
जब भी जीवन मिले, तेरे दामन में मिले,
वरना कभी ना जीवन पाऊंगी।।

चाँदनी झा

3. माँ मेरी ‘मन्नत’ ~ प्रिया सिंह

माँ से शुरू और माँ से ही इख़्तिताम हो
जिंदगी का सफ़र अधूरा कैसे हो भला
जब हर एक अल्फ़ाज़ में मेरी माँ का नाम हो।
माँ तू शब्द नहीं
है तू पूरी कहानी
वक़्त बदल रहे औऱ बदल भी जाए तो क्या
मेरी रूह भी तेरी आँचल की अमानत हो।
माँ तू बड़ी से बड़ी गुस्ताखियों की है माफ़ी
तू है हर ताले की चाभी
तेरे जैसा किरदार दुनिया में है कौन भला
तू तो बस हर रिश्तों की बनती मिठास हो।
अर्श से फ़र्श तलक़
बिखर जाती तेरी महक
बालाएं आकर भी चौखट से जाती लौट
क्योंकि माँ की दुआएं हर वक़्त मेरे साथ हो।
माँ तू ममता की है मूरत
है तू मेरी ब्रह्मांड
तेरे सिवा कुछ नहीं इस जहां में
माँ तू तो मेरी हर ख्वाइशों की “मन्नत “हो।

प्रिया सिंह

4. प्यारी माँ ~ मुकेश कुमार

बिन बोले ढेर सारा प्यार लुटाती माँ,
दुनियाँ प्यारी है क्योंकि पास में है माँ,
कोई पूछे ना पूछे, यह जरूर पूछती माँ,
मेरे बेटे ने खाना खाया क्या,
चाहे मोटा हो जाओ, फिर भी यह कहती माँ,
मेरा बेटा कितना दुबला हो गया है,
तुम्हारा कोई मोल नहीं है माँ,
तुम हो तो यह संसार प्यारा है,
तुम बिन तो सब अधूरा है माँ,
तुम से ही मेरी दुनियाँ है,
हर वक्त मुझे स्नेह के सागर में रखती माँ,
तुम्हारी त्याग, तुम्हारा स्नेह, तुम्हारी अथा प्रेम,
यह कभी भूला नहीं जा सकता माँ,
मेरी है हमेशा यह आरजू,
तुम हमेशा खुश रहो, स्वस्थ रहो,
तुम्हें हमेशा सुखी रख पाऊँ माँ ।

मुकेश कुमार

5. माँ ~ दीपिका आनंद

प्रेम का इकलौता पर्याय माँ
बहती ममता का संपूर्ण समुदाय माँ
जिन फूलों से जीवन हो जाए गुलशन
उन्हीं रंग-बिरंगे पुष्पों का परिदाय माँ

तू लगती है कितनी मनभावन माँ
चिलचिलाती गर्मी के बाद का सावन माँ
थका-माँदा देह लेता है जहाँ सुकून की झपकी
तू है वही मख़मली बिछावन माँ

लहलहाते खेतों की हरियाली माँ
सुंदर सुगंधित फूलों की डाली माँ
जो अपने पसीने से पौधों को बनाए पेड़
तू है वही खूबसूरत माली माँ

हर बच्चे के मुख पे पहला नाम है माँ
दिन ढलने के बाद की सुनहरी शाम है माँ
मैं क्यूँ करूँ मंदिर शिवालयों की परिक्रमा
तेरी चरणों में ही तो चारों धाम है माँ

तेरी वाणी में अजब सी मिठास है माँ
मेरे लिए किए तूने कितने अरदास हैं माँ
जिसके होने से है रौशन घर का कोना-कोना
अहा! तू तो वही उजास है माँ

तुम ही बनाती हो हमें आदमी से इंसान
घर हमारा तुम्हारे बिन है इक मकान
जो कपूत छोड़ जाता है तुम्हें आश्रमों में
अवगत नहीं कि तू है इंसान के रूप में एक भगवान

वो तेरी बाँहों में मेरा संसार पड़ा है
वो तेरे आँचल में मेरा आकाश खड़ा है
मैं कैसे कर लूँ अपनी अम्मा से बगावत
वो नौ महीने का समय मेरे जीवन काल से भी बड़ा है

तेरे जैसा निश्छल निःस्वार्थ प्यार कहाँ
तेरी बेपनाह मुहब्बत की कोई मिसाल कहाँ
मैं ले आउँगी बाज़ार से खरीद कर सारे महंगे ज़ेवर
पर तेरी बाँहों के घेरे सा बेशकीमती कोई हार कहाँ

उसकी छवि सा मनोहर कोई ख्वाब नहीं
उसके प्रेममयी बलिदानों का कोई हिसाब नहीं
उसके स्नेहालिंगन से मिलती है ऐसी राहत
जिसका इस लोक से उस लोक तक कोई जवाब नहीं

“विधाता ना रह सकते हर जगह इसलिए उसने तेरी रचना की होगी,
ओ माँ! तेरी सूरत से अलग भगवान की सूरत क्या होगी”

दीपिका आनंद

6. माँ और ममता ~ सोमा मित्र

कैसे तुझे बताऊं माँ
कैसे तेरे ममता को,,
मैं शब्दों में दिखलाऊँ माँ।।

त्याग की मूरत है तू
माँ दुर्गा की सूरत है तू ।।
माँ तू मेरी शान है, ममता की तू खान है,,
हमारे खातिर ‘माँ’ तुमने किया बहुत बलिदान है,,
कहने में हिचकिचाहट होती नही हमको,,,
की माँ तू ही मेरी पहचान है, माँ तू ही मेरी पहचान है।।

हर हाथ का ‘स्पर्श’ तेरा एहसास हो नही सकता
रो रहा एक बच्चा हर एक गोद मे भी सो नही सकता ,
माँ तेरा कर्ज़ा अब कभी भी चूक नही सकता
अटूट संबंध है मेरा साथ तेरे जो अब कभी भी टूट नही सकता।।

कैसे तुझे बताऊं माँ
कैसे तुझे जताऊं माँ
कैसे तेरे ममता को मैं शब्दों में ‘दिखलाऊँ’ माँ।।

सोमा मित्र

7. माँ तुमसे ही मेरा मान है~ सुजित संगम

माँ तुम ममता की मूरत हो,
दुनियाँ की सबसे सुंदर सूरत हो।
माँ तुम बिन जग सुना लगता है,
माँ तुम मेरी पहली जरूरत हो।।
माँ भगवान का रूप हो तुम,
प्यारी वसुंधरा का स्वरूप हो तुम,
जिसका दामन ममता से खाली ना हुआ।
वही यशोदा का रूप हो तुम।।
माँ तुमसे ही मेरा मान है,
इस धरा पर मेरा सम्मान है।
तेरा ही रक्त मुझमें है बहता,
तुमसे ही इस जग में अभिमान है।।
माँ मुझे इतना कौन दुलारेगा,
इतना प्यार से कौन पुकारेगा।
आज अपने आँचल में समेट लेती हो,
तेरे बाद मुझे कौन सम्हालेगा।।
तुमसे अलग होकर हौसला टूटने लगता है,
नजर ना आती हो तो जान छूटने लगता है।
माँ मेरी इस देह का प्राण हो तुम,
साथ ना रहो तो दम घुटने लगता है।।
माँ क्या मेरा एक काम करोगी,
जीवन भर क्या मेरे साथ रहोगी।
माँ मुझसे वादा करो ना आज,
मुझे छोड़ कर कभी ना जाओगी।।
मुझे छोड़ कर कभी ना जाओगी।।

सुजित संगम

8. मेरी अम्मी से है मेरी ख़ुशी~ सना फिरदौस

मेरी चाहत का जो जहां है
वो मेरी ‘अम्मी’ है
मेरी ज़मीं का जो आसमान है
वो मेरी ‘अम्मी’ है
जिसके होने से, मेरा सब कुछ है
वो भी मेरी ‘अम्मी’ है

हंसी मेरी जिसके वजूद से है,
वो मेरी अम्मी है
हर मुश्किल घड़ी पर, जो मुझे
ढेर सारी हिम्मत देती है
जो मेरी आवाज़ से मेरा हाल
जान लेती है, वो मेरी मां है।

फूलों में जिस तरह ‘खुशबू’ अच्छी लगती हैं
खेतों में जिस तरह ‘हरियाली’ अच्छी लगती हैं
जुगनू में जिस तरह ‘रौशनी’
अच्छी लगती हैं
रात में जैसे ‘चांदनी’ अच्छी लगती हैं
हवाओं में जैसे ‘रागिनी’ अच्छी
लगती है
महफ़िल में जिस तरह ‘रौनक ‘
अच्छी लगती है
वैसे ही मुझे मेरी ‘अम्मी’ बहुत
अच्छी लगती हैं।

अल्लाह सलामत और खुश रखना हर “मां” को,
सारी दुआओं में मुझे यही ‘दुआ’
सबसे बेहतरीन लगती है।

सना फिरदौस

9. लोग मदर्स डे मनाते हैं~ सुमन सिंह

हर रोज मां बाप को,
जो पल पल तड़पाते है।
क्या खूब अजूबा है ए भी,
लोग मदर्स डे मनाते हैं।।

जो मां अपना सारा जिवन वारी है,
हर तकलीफ सह सह के अपने बच्चों को पाली है।
उस मां के लिए बस एक दिन बनाए है,
ओ भी फोटो खिचवाने और
सोशल मीडिया पर दिखाने में गवाएँ है।।

मां का चश्मा टूट गया,
टालते है कल पर,
कह के कि कोइ बात नहीं।
बाजारों में लुटाते है पैसे दिखावे मे,
कि हम सी किसी की औकात नहीं।

दिखावे के लिए ही,
एक गुलदस्ता लाते है।
बड़े-बड़े फोटोशूट कराते है,
सोशल मीडिया पर चिपकाते है,
लोग मदर्स डे मनाते हैं
लोग मदर्स डे मनाते हैं।।

सुमन सिंह

10. मां निभाए सभी किरदार ~ उत्तीर्णा धर

मां है एक अनन्य कलाकार,
निभाए सभी तरह के किरदार ।
बच्चों के लिए है प्रथम गुरु ,
शिक्षा की बुनियाद होती जहां से शुरू।
खेले साथ रहे ऐसे,
बचपन के अंतरंग दोस्त हो जैसे।
रसोई में जाए तो बने बावर्ची,
पकवान बनाते हर तरह की ।
कपड़ा फटे तो बन जाती दर्जी,
बगीचे को संभालती एक माली की भांति।
बर्तन मांजना कपड़े धोना पोछा लगाना इत्यादि ,
छोटे से छोटा काम मा तुरंत कर देती ।
लोड़ी भी सुनाए प्यार भी करे ,
हर परिस्थिति में परिवार के साथ रहे ।
पुजारी के समान घर में,
महकाती है पूजा-अर्चना से।
हम सब के लिए मां कितने ही यत्न करती सदा ,
माँ को खुश रखना दायित्व है हमारा।

उत्तीर्णा धर

This Post Has One Comment

  1. Chandani Jha

    धन्यवाद

Leave a Reply