अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस: मेहनतकशों को सलाम

अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस: मेहनतकशों को सलाम

चांदनी झा

मैं भी मजदूर ~ चांदनी झा

मजदूर, श्रमिक, कुली, दास- जाने क्यों लोग उड़ाते उपहास?
गर्मी कड़कती हो, या ठंड बरसात, उसके लिए क्या दिन, क्या रात?
मजदूरों की होती इतनी कहानी, प्यास दिल में होती और आंखों में पानी।
काले घेरे आंखों के नीचे, अपने सारे सपनों को सीचें,
पिचके गाल, बिखरे बाल, मजदूरों का है ऐसा हाल।
सब के सहयोगी वह, मानव संसाधन कहलाता है,
पर उपयोग कर हर कोई, एहसान नहीं जताता है।
हरी है मिट्टी, जिनके पसीने से,
खुशियां मिलती है उसको, अपना हर दुख पीने से।
गांव में रहकर खेतों में करता वह काम,
दिन-रात मेहनत कर, उन्नत बनाता परिणाम।
भूमिहीन मजदूर, दसकाठिया, बंधुआ,
सरकारी और प्राइवेट जैसे होते हैं इसके प्रकार,
निरक्षरता, गरीबी, भूख प्यास का होते रहता है प्रहार।
लोग बड़ी शान से डॉक्टर, इंजीनियर, शिक्षक लगाते,
हर कोई यहां है मजदूर, पर कभी ना मजदूर बताते।
मजदूर होना कोई मजबूरी नहीं,
कभी-कभी करवा कर काम देते लोग मजदूरी नहीं।
शहर जाकर अपने परिवार से दूर,
हर काम करने को है वह मजबूर।
औरत की मजदूरी गिनी नहीं जाती,
हम सभी हैं मजदूर, यह मजदूर दिवस बताती।
“दुनिया के मजदूरों एक हो” कार्ल मार्क्स ने बताया था,
बड़ी संघर्षों के बाद, मजदूर दिवस 1 मई को पाया था।
“मैं भी मजदूर” उठती है एक “आह”
हमारे मालिक आपको क्यों नहीं हमारी परवाह?।।


ललिता पाण्डेय

मजदूरों का हक ~ ललिता पाण्डेय

मजदूर का हक
कब मिला है उसको
वो बनाता रहा है हमेशा
राष्ट्र को समर्पण के भाव से
वो रखता है अपने सपने सहेज कर
और मिटाता है अपनी ही लकीरों को
निर्मोही संसार के सपने संजोने में
वो थामें है मशाले
पथिकों के राह की
बुझा अपने चूल्हे की आग
इच्छाएँ उसकी भी है
पर वो खड़ा है
बन पहरेदार हमारी
इच्छाओं का थैला ले
मुस्कुरा रहा है
कभी वो भी उठेगा
और तब उन्मुक्त गगन
होगा उसका पहरेदार।


मनीषा कुमारी

रोज मजदूरी करता हूँ ~ मनीषा कुमारी

खुद भूखा रहकर बच्चों की पेट भरता हूं।
न चाहते हुये भी अपनों से मिलों दूर रहता हूं।।
दो वक्त की रोटी के लिए दिन- रात मेहनत करता हूं।
क्योंकि मैं मजदूर हूँ हर रोज मजदूरी करता हूं।।

दुनियाभर भर के लोगो से ताने भी सुनता रहता हूँ।
कभी भूखा तो कभी आधा पेट खाकर रह जाता हूँ।।
कभी बिस्तर तो कभी सड़क किनारे भी सो जाता हूँ।
क्या करूँ साहब मजदूर हूं हर रोज मजदूरी करता हूँ।।

हर किसी को उनके मंजिल तक पहुँचाता हूँ।
कब रात हुई कब दिन होगा सबकुछ भूल जाता हूँ।।
हमारी व्यथा न कोई सुन पाता है न किसी से कह पाता हूं।
क्या करूँ आख़िर मजदूर हूं हर रोज मजदूरी करता हूँ।।

हम मजदूरों के लिए न कभी छुट्टी होता हैं।
हर रोज एक जैसा एक समान ही होता हैं।।
कैसे भी परिस्थिति हो न कभी किसी से भीख मांगता हूं।
क्योंकि मैं एक मजदूर हूं मजदूरी करके पैसा कमाता हूँ।।


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