Category: कविताएं

  • ठहर जाओ

    ठहर जाओ

    गर बाहर नहीं जा सकते, तो अन्दर जाओ। खुद को ढूंढने में, खो जाओ। रफ़्तार को रोक कर, थोड़ा थम जाओ। मानव तुमने ही, की हैं ये हलचल, अब सम्हल जाओ। सोचो क्या भूल हुई, अपनी गलती फिर ना दोहराव। गगन में उड़ान भरते किसी पक्षी को, अब ना सताओ। प्रकृति हम सबकी जननी हैं,…

  • इस दौर की बातें

    इस दौर की बातें

    संदिग्ध है ये वायरस, मचा रक्खा इसने कोहराम, दीन दुखियों की देह पर बरसाये कोड़े तमाम। जान जोखिम डालकर, करें सर्वस्व त्याग महान, धिक्कार उन मालिकों को ख़ाली करायें जो मकान। भय व्याप्त हर ह्रदय में, संशय में जिए इंसान, साँसों पर प्रतिबंध लगा, घर बैठ भी दिखें हैरान। मिलकर करना है सबको, डॉक्टरों पर…

  • पाँव बांध लो जरा अभी

    पाँव बांध लो जरा अभी

    है हावी कोरोना जग पर, निपटेंगे हुशियारी से । जनहित के नियमों का पालन, करलें जिम्मेदारी से । रोग भयंकर अरु निदान के, कहीं लगे आसार नहीं । दूरी सबसे हुई जरूरी, दूजा कुछ उपचार नहीं । इस संकट से हमें उबारो, विनती है गिरधारी से ।। जनहित के नियमों का पालन … भली-भांति हाथों…

  • लाकडाउन में भी खुशी ढूँढ लेते हैं

    लाकडाउन में भी खुशी ढूँढ लेते हैं

    कभी कभी किताबों में हम जिंदगी ढूँढ लेते हैं. कभी टीवी पर हम रामायण, महाभारत देख लेते हैं. तेरी याद आते ही कोई गीत गुनगुना लेते हैं. लाकडाउन में भी खुशी ढूँढ लेते हैं. पूरे परिवार संग अब जिन्दगी का मज़ा लेते हैं. कभी अपने बच्चों संग हँसते तो कभी गा लेते हैं. जिंदगी ऐसे…

  • छलछलाता हुआ सौंदर्य

    छलछलाता हुआ सौंदर्य

    छलकना” और “छलछलाना” शब्द से सभी परिचित होंगे है ना! “जल” शब्द से जुड़ा हुआ शब्द लगता है विचार करने में लग गए होंगे ना! जैसे “छलकता हुआ जल” व “छलछलाता हुआ पानी” इत्यादि इत्यादि बचपन से तो यही देखा था कि पनिहारिनें कुएं से कलश उठाए गुजरती थी तो कोई पड़ोसी के नलकूप से…

  • क्या लिखूँ?

    क्या लिखूँ?

    लिखने के लिए विषय की खोज भी आसान काम नहीं है। कलमकार पूजा साव की यह कविता इस दुविधापूर्ण कार्य के चयन का संबोधन करती है। अपनी कलम से लिखे शब्दों से लोगों के हृदय तक पहुँच जाना ही किसी पुरस्कार से कम नहीं है। कभी-कभी सोचा करती हूँ, एकान्त में बैठकर क्या लिखा जाय…

  • कोरोना महामारी

    कोरोना महामारी

    संपूर्ण मानवता के अस्तित्व पर खतरा है, प्रकृति के साथ छेड़-छाड़ भी तो तगड़ा है। हे मानव! अब घर बैठे कुछ दिन विराम करे, स्वच्छता के लिए लापरवाही पर लगाम करे। पर्यावरण धूल और धूँआ से मुक्त हो जाये, भागदौड़ भड़ी जिंदगी में रिश्ते ताजा हो जाये। सहयोग करे गरीब की जो बदहवास पड़े हैं,…

  • शहर वीरान हो गए

    शहर वीरान हो गए

    कोरोना देख हैरान हो गए शहर शहर वीरान हो गए जमा हो गए भागते हुए लोग आशियां सभी परेशान हो गए खामोश है परिंदे भी अब शज़र सभी बे गान हो गए फूलों की महक भी चली गई भोरें सभी बेसुर तान हो गए दिनकर अकेले ही रूआंसा हुआ गर्माहट सभी बेईमान हो गए चांदनी…

  • सावधान रहें कोरोना से

    सावधान रहें कोरोना से

    बार-बार साबुन से तुम, अपने हाथ को धोना। अब चहूँ ओर फैल गया है, ये जालिम कोरोना।। ना ये फैला मुर्गे से, और ना ये फैला मीन से। ये जालिम तो जन्म लिया है, मेरे पड़ोसी चीन से।। ये बीमारी फैल रही है, एक दूजे के मिलाप से। उत्पत्ति हुई है इसकी, चमगादड़ और साँप…

  • हमारी प्रतिज्ञा – ना होंगे संक्रमित

    हमारी प्रतिज्ञा – ना होंगे संक्रमित

    कभी भीड़ से भरा शहर था मेरा, यहां शोर के संग होता था सवेरा, फिर आया एक वायरस कोरोना, और डाल दिया उस ने यहां डेरा। इस वायरस ने पूरे शहर को घेरा, ज्यों शिकार पर निकला है बघेरा, गिरफ्त में इसकी आने लगे लोग, अब अगला नंबर हो सकता तेरा। इस वायरस को पसंद…

  • कोरोना का प्रभाव

    कोरोना का प्रभाव

    एक ओर, कोरोना को हराना है घर से बाहर, ना जाना है नियम हमारे हित, हेतु है पर, बहुत कम जन मान रहे जीवन को बचाना, प्राथमिकता है। पर, दुविधा यह भी है मजूर वर्ग, क्या खाऐंगे ? रोज जो कमाते-खाते हैं इक्कीस दिन कैसे वे घर चलाऐंगे ? कोई व्यवस्था, इसकी भी हो चिंताजनक…

  • अपनी जिम्मेदारी समझें

    अपनी जिम्मेदारी समझें

    अपनी जिम्मेदारी समझें, आपस में नहीं कोई उलझें।कोरोना से लड़ना है तो, घर में रहें सभी जन अपने। वक़्त है नाज़ुक सयंम रखें, राजनीति में अभी ना उलझें।बड़े बड़े देशों को देखकर, कुछ तो उनसे भी हम सीखें। अपनी जिम्मेदारी समझें, घर से बाहर अभी ना निकलें।जान कीमती है अपनों की, इसीलिए थोड़ी दूरी बरतें।…

  • जीवन के रंगमंच की कठपुतलियां

    जीवन के रंगमंच की कठपुतलियां

    विश्व रंगमंच दिवस के अवसर पर कलमकार प्रीति शर्मा “असीम” की एक रचना पढें। सभी रंगमंचर्मियों और प्रशंसकों को हार्दिक शुभकामनाएँ। कठपुतलियां है जीवन के, रंगमंच की। जुड़ी हैं जिन धागों से, जो सभी के, धागों को नचाता है। किसी को, वो कठपुतली वाला, नजर नहीं आता है। ढील देता है सबको, अपने-अपने किरदार में,…

  • आलंबन विहीन मुस्कुराता दीपक है रंगमंच

    आलंबन विहीन मुस्कुराता दीपक है रंगमंच

    कलमकार इमरान संभलशाही विश्व रंगमंच दिवस की शुभकामनाओं के साथ एक रचना इस मंच पर प्रस्तुत की है और बताते हैं कि रंगमंच आलंबन विहीन मुस्कुराता दीपक है। चाय की बेशुमार प्यालियों के बीच चाय की चुस्कियों के साथ मूसलाधार ठहाके लगाने का नाम ही रंगमंच है सुख दुख की देवियों के नाम और भरत मुनि…

  • विश्व रंगमंच दिवस

    विश्व रंगमंच दिवस

    आज अंतर्राष्ट्रीय रंगमंच दिवस (World Theatre Day) है और इस अवसर पर कलमकार राज शर्मा की यह कविता पढें। दुनिया एक रंग मंच है पात्र हरेक, रचे किरदार सब देखो अलग-अलग। सभी पड़ाव से गुजरती जिंदगी, न जाने कब कौन सा रंग दिखाए। गिरगिट से आगे बढ़ गया आदमी, बिना रंग के कमाल की अदाकारी। गुजर…

  • तुम बिन हूँ उदास

    तुम बिन हूँ उदास

    जीवन में कुछ लोग इतने महत्वपूर्ण होते हैं कि उनकी कमी हमें बेचैन कर दिया करती है। कलमकार लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव जी ने इस बात को अपनी रचना में संबोधित किया है। तुम बिन प्रिय मैं रहता हूँ उदास, तुम बसती हो मेरे दिल के पास। कभी तो होगा साथ आशियाना, तुम्हारे प्रीत पर…

  • मन सहम सा जाता है

    मन सहम सा जाता है

    मन सहम सा जाता है देख के सारे देश का हाल, चाइना, इटली, स्पेन, जर्मनी, सब पर है इसका प्रहार, स्वास्थ्य विभाग थे इनके खास, फिर भी है इनकी स्थिति खराब, मन सहम सा जाता है, देख कर अपने देश का स्वास्थ्य विभाग, अगर फैल गई यह बीमारी, बदल जाएगा शहर का हाल, गलियां हो…

  • मां दक्षिणेश्वरी काली कल्याण करो

    मां दक्षिणेश्वरी काली कल्याण करो

    जागो जागो माँ रणचंडी जन जन का कल्याण करो। उठो उठो मां दक्षिणेश्वरी काली बच्चों का हाथ पकड़ अब उनको प्यार करो। कांप रही थर थर दुनिया तेरे अट्हास से। अब तो बच्चों का उद्धार करो। जपत निरंतर नाम तेरो ओम दक्षिणेश्वरी काली नमः सब का माँ कल्याण करो। तीनो लोक कांप रहे। तेरे क्रोध…

  • मां कोरोना का संहार करो

    मां कोरोना का संहार करो

    हिन्दू नव वर्ष विक्रम संवत 2077 की आप सभी को ढेरों शुभकामाएं. माता रानी सभी का कल्याण करें और हर विपत्ति से हम सब की रक्षा करें. नवरात्री का त्यौहार है आया माता रानी आयी हैं, साथ समेटे इस जहाँ की सारी खुशियां लायी हैं.शैलपुत्री रूप में माता पर्वत सा बल देती हैं, ब्रह्मचारिणी बन…

  • गृहणी

    गृहणी

    गृहणी को किसी भी मायने में कम आँकने की भूल न करें, वे न सिर्फ घर चलाती हैं बल्कि अपने अनेक कौशल/गुणों से लोगों में मिशाल कायम करती हैं। कलमकार उमा पाटनी की रचना गृहणियों के बारे में बहुत कुछ बयां करती है। मैं गृहणी हूँ और आते-जाते कामों की गिनती किये बिना अपनी भावनाओं…