Category: कविताएं

  • पलायन- एक सच्चाई

    पलायन- एक सच्चाई

    पलायन ही तो मेरे जीवन की सच्चाई है कभी प्रकृति की मार से तो कभी जगत के स्वामी की अत्याचार से पलायन तो मुझे ही करना पड़ता है। कभी अपने लिए, तो कभी अपनों के लिए पलायन ही तो मेरी जीवन यात्रा है। सुखा पड़ा तो परिवार के साथ जीवन बचाने के लिए पलायन, बाढ़…

  • सच बताते हैं

    सच बताते हैं

    आइये हम अपको सच बताते हैं जिक्र नहीं कहीं वो सब दिखाते हैं। कैसे, क्यों और कब हुआ हादसा पूरी बात आज और अब बताते हैं। हम किसी घटना रोकते ही नहीं पहले उसका पूरा विडियो बनाते हैं। चाहे कोई मर रहा या मार रहा हो हर एक वाकये की खबर बनाते हैं। कितना, कैसे,…

  • पलायन का जन्म

    पलायन का जन्म

    हमने गरीब बन कर जन्म नहीं लिया था हां, अमीरी हमें विरासत में नहीं मिली थी हमारी क्षमताओं को परखने से पूर्व ही हमें गरीब घोषित कर दिया गया किंतु फिर भी हमने इसे स्वीकार नहीं किया कुदाल उठाया, धरती का सीना चीरा और बीज बो दिया हमारी मेहनत रंग लाई, फसल लहलहा उठी प्रसन्नता…

  • कोरोना- बिन मौसम की बारिस

    कोरोना- बिन मौसम की बारिस

    ये बिन मौसम की बारिश क्या कहने आई हैं। रो रहा हैं खुदा हमें ये बताने आई हैं।। खुदा ने पृथ्वी पर सबसे ताकतवर जीव इंसान बनाया। जिसने अपनी ताकत के दम पर हर जीव को सताया।। अपने शौक के लिए उसने जंगली जीवों का आखेट किया। तो कभी अपने ऐश्वर्य के लिए प्रकृति से…

  • जस्बात

    जस्बात

    हमारे मन में अनेक भावनाओं ओत-प्रोत होती रहती हैं, सभी को हम जाहिर नहीं कर सकते हैं। प्यार तो एक भावना है- कलमकार दीपमाला पांडेय ने कुछ जज्बात इस कविता में लिखकर जाहिर किए हैं। कौन करता है तुझको भुला रखा हैमैंने दिल की किताब मेंकुछ पन्नों के बीचआज भी उस सूखे गुलाब के रूप…

  • हे राम! अब तो लो अवतार

    हे राम! अब तो लो अवतार

    घनघोर अज्ञानता के अंधेरे में डूबा है संसार छल कपट भरा सबके मन में भूल गए प्यार क्यों ना आए बताओ जलजला प्रकृति में जब जी रहा हर इंसान अपने ही स्वार्थी में अपने मन को खुश करने के लिए बस दूसरे जीवो के गले पर रख रहा तलवार घनघोरअज्ञानता के अंधेरे मे डूबा है…

  • मदद मजदूरों की

    मदद मजदूरों की

    सड़कों पर कितने मजदूर परेशानी में घूम रहे। अपने अपने घर तक पैदल पैदल ही कोसों चल रहे।। ऐसे लोगों के भोजन पानी की मदद कर दीजिए। मास्क व सेनेटाइजर बांट कर राशन पानी दे दीजिए।। जो बाहर फंसे है उनकी मदद कीजिये। घर मे रहकर लोक डाउन का पालन कीजिये।। मदद आप धन से…

  • भूख भुला देती है अक्सर

    भूख भुला देती है अक्सर

    भूख भुला देती है अक्सर पैरों में पड़े उन क्षालों को नहीं रुक सके कदम किसी के लॉकडाउन हड़तालों से। गलती इनसे हुई नहीं है पूछो इक बार बेहालों से हिंदुस्तान ये अपना चलता है सूखी रोटी के निवालों से। इस महामारी से ज्यादा भय भूखे रहकर के जीने से अब नहीं कटेगा इससे ज्यादा…

  • सावधान क्यों नहीं?

    सावधान क्यों नहीं?

    हम लोग आज भी ना, सावधानी बरत रहें कोरोना से, लड़ना भी है जान सबकी, जोखिम में है फिर भी इंसान बेखबर सा है। क्या आप सबको जान प्यारी नहीं? अपनी नहीं, दूसरों की सही विश्व जहाँ त्राही मम, त्राही मम हो रहा, क्यों आपसब ने अब तक ना समझा? जीवन अमूल्य है उसका बचाव…

  • प्यार का ज़िक्र

    प्यार का ज़िक्र

    कलमकार अमन आनंद ने प्यार के जिक्र को अपने अंदाज में लिखा है। प्रेम का इजहार भी कवियों को कविताएँ लिखने का के लिए खास मुद्दा जान पड़ता है। न यूँ नज़रों से क़त्ले आम कर दे ये दो प्याले हमारे नाम कर दे। पिलाए जा मुझे आँखों से यूँ ही ख़त्म हो जो न…

  • इस मन की पीर लिखूँ कैसे

    इस मन की पीर लिखूँ कैसे

    मजबूर हुए मजदूरों की इस मन की पीर लिखूँ कैसे लाचारी बनी हुई सबकी लौटूँ घर-बार अभी कैसे। इस कोरोना का कहर हुआ और हाहाकार मचा ऐसे चल लौट चलें अपने घर को अब गाँव से दूर रहूँ कैसे। कैसी भी विपदा आती है सहना पड़ता है गरीबों को ऊपरवाले की झोली में नहीं मन…

  • पलायन- घर जाने के लिए

    पलायन- घर जाने के लिए

    आज वीरान सड़कों पर भीड़ का रेला देखासिर पर सामानों की गठरी हाथ मे बच्चों को देखा। लोग पलायन कर रहे एक जगह से दूसरी जगह जा रहेअपने घर जाने की जिद ठान रखी है इन्होंने। भूखे प्यासी जनता भटक रही कहाँ होगी मंजिल इनकीबस चले जा रहे संक्रमित भी होंगे या नहीं ये। क्या…

  • हो महान! अब सब को दिखलाओ तुम

    हो महान! अब सब को दिखलाओ तुम

    हो महान अब सबको दिखलाओविश्व गुरू वाला रूप बतलाओ।हर महाशक्ति हमसे हारी थीमहान भारत की हर नारी थी।कोरोना हमसे दूर ही रहनायहां गंगा का निर्मल नीर हैं बहता।मिलजुल कर हम साथ हैं रहतेजाति धर्म में भेद ना करते।हैं महान विश्व को दिखलायेआओ मिलकर महामारी को हरायें। ~ दीपिका राज बंजारा

  • संयम

    संयम

    संयम का यह वक्त है, देश करे पुकार अब तो जनता मान ले, वक्त की ये धार जीवन में संयम बड़ा, होता महत्वपूर्ण अंग अनुशासन के बिना, चले न देश, न जीवन आज जरूरत संयम की, बात ये लो मान देश की है यह परीक्षा, इसको लो तुम जान संयम से जीवन बने, संयम से…

  • पलायन- मजदूरों का

    पलायन- मजदूरों का

    कोरोना महामारी के कारण हुए लॉकडाउन से दिहाड़ी मजदूर की पलायन करने की हृदय विदारक व्यथा को व्यक्त करने की एक कोशिश कलमकार सूर्यदीप कुशवाहा ने की है। मैं गरीब हूं बदनसीब हूं लॉक डाउन है बच्चे रो रहे हैं बस ट्रेन भी बंद है कोई उम्मीद नहीं है फैसला लेता हूं पैदल चलता हूं…

  • पलायन- इंसानियत का

    पलायन- इंसानियत का

    पलायन इन्सानों का नहीं इंसानियत की हैजंग लगी रहनुमाई और सड़े सियासत की है।अब तो बात हद से भी है आगे निकल चुकीअब कहाँ यारों काबू में सब ज़्म्हुरियत की है।दोषारोपण के खेल में हैं माहिरों की जमातेंकिसको कितनी चिंता यहाँ आदमीयत की है।क्या बताएं कितनी तंगहालि में लोग जी रहेकिस कदर किल्लत आज नेक…

  • लक्ष्मण रेखा

    लक्ष्मण रेखा

    लक्ष्मण रेखा खींच ली पर किया क्या इसका अनुमान. है नहीं आसान यह है नहीं आसान. नहीं माना माता जानकी ने पार की लक्ष्मण रेखा. देखा क्या हाल हुआ, रावण ने अशोक वाटिका में रखा. रोते रोते राम लखन का हाल हुआ बेहाल. तुम भी मानों बात मेरी, निकलो न घर से यार. तोड़ो न…

  • जय जय राजस्थान

    जय जय राजस्थान

    राजस्थान दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं ३० मार्च, १९४९ में जोधपुर, जयपुर, जैसलमेर और बीकानेर रियासतों का विलय होकर ‘वृहत्तर राजस्थान संघ’ बना था। कलमकार देवकरण गंडास अरविन्द ने इस विशेष अवसर पर चंद पंक्तियाँ लिखी हैं। वीर प्रसूता है यह पावन धरती और वीरों का रखती है ये मान, मैंने इस धरा पर जन्म लिया…

  • कोरोना से बचिए और जागरूक रहिए

    कोरोना से बचिए और जागरूक रहिए

    कोरोना महामारी बचिए और जागरूक रहिए। भारत इसे जरूर हराएगा। यूं तो देखे थे सभी, इस संसार में महामारी बहुत हर दौर में दौरों का गुज़र है, मौत की सवारी बहुत नहीं दवा है इस सितम की, ख़ुद रहो महफूज़ तुम जो ज़रा लापरवा हुआ तो, बस रह जायेगी लाचारी बहुत घर से हम फुटपाथ…

  • हर हिंदुस्तानी का फर्ज़ है

    हर हिंदुस्तानी का फर्ज़ है

    हर हिंदुस्तानी का जो अभी फर्ज़ है, मां भारती का हम सब कर्ज है। घर में रहे सब यही हमारा अर्ज़ है, कॉरोना को हराने का यही मर्ज है।। करे इक्कीस दिन का तप यही राष्ट्रधर्म है, अपनों के लिए तप करने में क्या हर्ज है। रक्षाकवच तोड़कर मरने का कैसा तर्क है, क्यों हम…