राहुल प्रजापति

कलमकार प्रोफ़ाइल: राहुल प्रजापति जन्मदिन: २६ जुलाई १९९९ जन्मभूमि: मथुरा  (उत्तर प्रदेश) कर्मभूमि: शिक्षा: स्नातक शौक: रचनाएं लिखना Facebook: Twitter: Instagram: Mobile: +91- Email: Website: - राहुल प्रजापति अपने बारे में कहते है- मैं राहुल प्रजापति, मेरा जन्म 26 जुलाई…

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मेरा सुख बन जाती हो

कभी कभी, तुम मेरे दुखों से बढ़ कर, मेरा सुख बन जाती हो, वो सुख, जो चिर आनंद प्रक्रिया में, विवाद रहित शयन करता है, जो किसी कोने में छिपी भावनाओं से भयभीत होता है, ही उससे विचलित होता है,…

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यादें

जब कभी उस मोड़ से गुजरता हूँ उस जगह से गुजरता हूँ जहाँ कभी मैंने कुछ लम्हा गुजारा था कुछ प्यार बाटा था,तो कुछ प्यार पाया था और, आज भी जब उसी मोड़ से गुजरता हूँ तो उनसे जुड़ी यादें…

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आओ हम भी मुसाफिर बन जाएँ

साकेत हिन्द स्वरचित चंद पंक्तियाँ आओ हम भी मुसाफिर बन जाएँ, इस मंज़िल-ए-ज़िंदगी के। आओ हम भी मुसाफिर हो जाएँ, इस दौर-ए-ज़िंदगी के।।   कोई और मिले या न मिले, हम-तुम हैं काफ़ी। करेंगें पूरा हम ज़रूर, सुहाने सफ़र ज़िंदगी…

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ममतामयी माँ- १० कविताएं

माँ निशा सिन्हाकलमकार @ हिन्दी बोल India अब तो आदत सी हो गई है माँ!बिन तुम्हारे रहने कीजब याद तुम्हारी आती है,तुम्हारी तस्वीरें देखा करती हूँ माँ! जब भी करवट बदलती हूँयाद तुम्हारी हीं आती है माँ!जिस हाथ को थाम…

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ढोंग

सज चुकी है,पाखण्ड की प्रयोगशाला लेकर गुरुवर की नाम की पहनकर अध्यात्म का चोला छिपा रहें हैं, अपनी अज्ञानता और असफलता न इनका कोई लक्ष्य, और न कोई उद्देश्य युवाओं को भटकाना इनका एकमात्र लक्ष्य हैं खिंचते है चित्र भी,…

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जो उड़ चलते हैं दूर गाँव

जो उड़ चलते हैं दूर गाँव, ऋतुवों के प्रभाव से बचने को, कई बार उड़ते भी हैं, थकते भी हैं, और कुम्लाये से एक आस दिल में जगाये होते हैं, परों  का बोझ  उठाये  से उनकी नन्हे फेफड़ें सांस बटोरने को धौकनी…

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रिमझिम बारिश

रिमझिम - रिमझिम जब बारिश आयी मन में तेरे रौनक और खुशहाली छायी नन्हें पैरों से जब तुम आँगन में चलती थी  पकड़ नहीं पाओगे पापा ऐसा कहती थी पग में तेरे पायल बारिष के संग बजते थे  पीछे-पीछे तेरे…

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जड़ की परवाह

जड़ से जुड़े रहे है जो भी, वो ही सदा बड़े हुए है। छोड़ सहारा सब गैरों का, अपने पैरों खड़े हुए है।। हमने देखा है पेड़ों को, जमीं में अपनी जड़े जमाएं। सर्दी, गर्मी, वर्षा के दिन, आंधी, तूफां…

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यह भी कोई जीवन है क्या

बाधाओं में घिर घबराना, संघर्षां में पीठ दिखाना, एक-दो ठोंकर बस रूक जाना, यह भी कोई जीवन है क्या। पल-पल चलना, चलते रहना, मंजिल के पथ बढ़ते रहना, पर आलस कर बस सो जाना, यह भी कोई जीवन है क्या।…

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