सफ़ेद कोट व ख़ाकी वर्दी

मानवता की सेवा में इन्होंने, अपने दिन रात लगाए हैं! अपने घर की फ़िक्र छोड़कर, यहां लाखों घर बचाएं हैं! सफ़ेद कोट व ख़ाकी वर्दी पहन, फ़र्ज़ अपने निभाए हैं! ज़रूरी चीजें, मास्क के संग सैनिटाइजर भी बंटवाए हैं! मौसमी…

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धरती माता

कलमकार सुनील कुमार धरती माता को अपनी यह कविता समर्पित करते हैं। हम सभी उनकी ही संतानें हैं और माता आदर व सम्मान हमारा कर्तव्य है। धरती है हम सब की माता हम इसकी संतान हैं धरती से है अन्न-जल-जीवन…

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बिकने वाला प्यार

इस जमाने में हर चीज़ का सौदा होता है। यहाँ तो स्वार्थवश प्यार भी बिकने लगा है। प्यार तो तो एक भावना है जिसे लोग चीज़ समझ सौदा करने की गलती करते हैं। कलमकार मोनिका शर्मा "मन" की इन पंक्तियों…

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जंग हमारा देश जीतेगा

जीतेगा जीतेगा ऐ कोरोना से जंग हमारा देश जीतेगा, हारेगा कोरोना जंग हरेगा और हमारा देश छोड़कर भागेगा! देश की रक्षा करने के लिए देश के लाल पथ पर खड़े है, अपने घर और परिवार को छोड़कर अपने कर्तब्यों पर…

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मनोस्थिति

आज मनोस्थिति ऐसी है कि करे तो क्या करें कुछ सूझता नहीं समय कटता नहीं पर/कुछ तो करना ही होगा और करना ही पड़ेगा वो तो ये है कि हम सबको सहना ही पड़ेगा तब कहीं जाकर हम इस मनोस्थिति…

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ईरफान खान

ईरफान खान गुणों की खान नेक इंसान अभिनेता महान विश्व मे उनकी थी पहचान हालीवुड मे उनको मिला सम्मान फिल्मों और रंगमंच के सशक्त कलाकार कला पारखी और उत्तम आचार मानवता से भरपूर वयवहार सहयोगी कलाकारों मे बांटा प्यार कला…

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कोरोना- लॉक डाउन का प्रभाव

आज प्रभात पत्नी बोली एक बात हे आर्यपुत्र, कुल भूषण मेरी माँग के आभूषण लॉक डाउन का प्रभाव मन्द हो गया है, मास्क पहनकर जाने का प्रबंध हो गया है। रसोई में रखे आटा दाल मसाले सब के सब हो…

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भारत को बचाना है

आओ मिल को बचाना है घर पर रहना कहीं न जाना है व्यर्थ ना इसमें समय गवाना है हाथ पे हाथ रख न बैठना है। हमको भारत को बचाना है कुछ सोच कर हल सुझाना है जो हैं सक्षम उनको…

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इरफ़ान सर! क्यों चले गए?

हे पान सिंह तोमर! वर्सेटाइल एक्टर इरफ़ान सर!! तेरे अचानक जाने से स्तब्ध हो गया है जगत अश्रुपूरित हो गया है जगत क्यों चले गए सर आप क्यों छोड़ गए सर आप वालीवुड को व हम सभी साधारण भारतीय को…

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मैं और मेरा गाँव

कविता का कवि लॉकडाउन में दिल्ली में है और वह उत्तर प्रदेश के बरेली जनपद में स्थित अपने गाँव को याद कर रहा है जाने की सोचता हूंँ जहाँ, रहते हैं मेरे लोग वहाँ, खेतों की हरियाली देखि, पानी के…

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अघोषित युद्ध

यह कविता उन योद्धओं को समर्पित है जो अघोषित युद्ध लड रहे हैं और कोरोना को मिटाने हेतु कृतसंकल्प हैं। पूरा देश लड़़ रहा कोरोना से अघोषित युद्ध देशवासियों मे जोश हैं लडने की भावना है शुद्ध सारे नागरिक एकजुट…

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कोरोना को हराये

मुझे मेरे हिन्दू होने पर नाज है तुझे तेरे मुस्लिम होने पर नाज है लेकिन राम मेरा भी मुझसे नाराज है और खुदा तेरा भी तुझसे नाराज है पाप मैंने भी किए होंगे कभी गुनाह तूने भी किए हों शायद…

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कर्तव्य निभाएं

कोरोना के इस समय में आओ अपना कर्तव्य निभाएं, कुछ खुद समझ करें और कुछ औरों को भी समझाएं। न निकलें स्वयं वेबजह न किसी ओर को भी बुलाएं, कभी निकले बहुत जरूरी तो याद रहे सामाजिक दूरी सदा बनाएं।…

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फिक्र है मुझे

कलमकार दीपिका राज बंजारा ने इस कविता के माध्यम से एक फिक्र जताई है और कई सवाल पूछे हैं जिसका उत्तर हर लड़की जानना चाहेगी। हम सभी को यह समाज विश्वसनीय बनाना चाहिए जहाँ किसी को कोई आशंका व भय…

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टूट जाना नहीं

कलमकार खेम चन्द कभी भी हार न मानने की राय अपनी कविता के जरिए देना चाहते हैं। कठिनाई तो क्षणभर के लिए आती है, बेहद डरावनी होती है किंतु हमारे धैर्य से वह खुद डर जाती है। मुसीबत में कभी…

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वो नाचती थी

जीवन की,हकीकत से,अनजान। अपनी लय में,अपनी ताल में,हर बात से अनजान।वो नाचती थीसोचती थीनाचना ही जिंदगी है।गीत-लय-ताल ही बंदगी है।नाचना ही जिंदगी है।नहीं शायदनाचना ही जिंदगी नहीं है।इंसान हालात से नाच सकता है।मजबूरियों की,लंबी कतार पे नाच सकता है।लेकिन अपने…

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हंस रही थी जिंदगी

कोरोना से जीतने के लिए शीला झाला 'अविशा' का संदेश इस कविता में पढ़ें। हंस रही थी जिंदगी आंगन और गलियों में खिल रहे थे फूल नवयौवन से बगिया की कलियों मे आ गया पिशाच अकस्मात जिसका नाम था कोरोना…

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मैं शनि हूँ, रवि बनना चाहता हूं

अंजलि जैन "शैली" की यह रचना पढिए जो बताती है कि कर्मशील रहने वाले लोग सारी बाधाओं को दूर करते हुए सफलता की ओर अग्रसर होते हैं। जहाँ चाह है वहीं राह होती है, कर्मवीर संसाधनों की कमी होने के…

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मैं रिझाऊंगा फिर

कलमकार विजय कनौजिया अपनी इस कविता में हँसने, मनाने, रिझाने कि बात लिख रहें हैं। कभी कभी हम उदास होते हैं तो ऐसा लगता है कि यह आलम समाप्त ही न होगा पर ऐसा नहीं होता है और कुछ पल…

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क्या करूंगा मैं?

हमारा मन कभी-कभी थक हारकर कई बातें सोचने लगता है। कलमकार हिमांशु बड़ोनी उन बातों और मन के सवालों का जिक्र इस कविता में किया है। वे लिखते हैं कि एसी परिस्थितियों में क्या करूंगा मैं? क्या करूंगा मैं?इस स्वार्थी समाज…

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