संतोष ही परम सुख है

संतोष ही परम सुख है

‘संतोषं परमं सुखं’ – सन्तोषी सदा सुखी
संतों ने कहा है कि जो आपका है उसे कोई आपसे छीन नहीं सकता और जो आपसे दूर/छिन गया वह कभी आपका था ही नहीं। इस तथ्य को यदि हम जीवन में अपनाने में सफल हो जाएँ तो फ़िर क्या बात हो। आधुनिकता के इस दौर में हर कोई काफ़ी कुछ पाना चाहता है और एक दूसरे को पीछे करने की होड़ लगा हुआ है। स्वयं को बेहतर बनाने और दिखाने के लिए तरह तरह के हथकंडे अपनाएं जा रहें हैं जो बिल्कुल ही गलत है। दूसरों के पास उपलब्ध संसाधनों व चीज़ों को देख कई लोगों के मन में ईर्ष्या भाव भी उत्पन्न होता है और वे भी उन सारी सुविधाओं को पाने के लिए जुट जाते हैं। ऐसी स्थिती में वे लोग अपना काफ़ी नुकसान भी कर जाते हैं।

जितनी बड़ी अपनी चादर हो उतने ही पैर पसारने चाहिए। जीवन मे प्रगतिशील होना अत्यंत आवश्यक है किन्तु संयम और संतोष को अपनी जीवनशैली से दूर रखना मूर्खतापूर्ण है। सच्चा सुख केवल संतोषी व्यक्ति को ही मिलता है, उसे प्राप्त करने के लिए संसार में अमीर बनने की कोई जरूरत नहीं है। संतोष एक ऐसी चीज़ है जो गरीबी में भी आपको बहुत आनंद प्रदान करता है और इसकी अनुपस्थिति से हमारा जीवन कष्टमय हो जाता है। इन बातों को ध्यान में रखकर जब हम विचार मंथन करते हैं तो लगता है कि हमारे पूर्वजों, महान साधू-संतों के संदेश जनहित में कारगर साबित होते हैं। भारत के संतों ने कोई डिग्री या डिप्लोमा नहीं किया था लेकिन अपने ज्ञान से समाज में अनेकानेक कल्याणकारी कार्य किए और जनता को सत्यमार्ग पर चलने का उपदेश दिया।

आज हम भले ही कितने आधुनिक हो गए हों किन्तु शालीनता और संस्कार से परिपूर्ण कई लोग दिखाई पड़ जाते हैं। ऐसे लोग आवश्यक वस्तुओं को ही अपने पास रखते हैं, कोई दिखावा नहीं करते, इच्छाओं को सीमित रखते हैं। आजकल इस तरह का स्वभाव धारण करने वाले व्यक्ति किसी साधू से कम नहीं हैं। हम सभी को ऐसे गुण अपनाने चाहिए। सन्तोषी व्यक्ति सदा सुखी ही रहतें हैं अतः हमें भी ईश्वर से संतोषी बनने के लिए अनुनय-विनय करना चाहिए। जिसे संतोषरूपी धन प्राप्त हो गया वही संसार में धनवान है। इसके उलट जिनके पास बहुत दौलत है वे भी और अधिक धन हासिल करना चाहते हैं, कारण- संतोष नहीं है।

महान संत कबीरदास ने संतोष के विषय में कहा है कि –
गोधन, गजधन, बाजिधन और रतन धन खान।
जब आवे संतोष धन सब धन धूरि समान॥

अर्थात संतोष मिलने पर अन्य किसी धन की आवश्यकता ही नहीं प्रतीत होती है।

स्वास्थ्य सबसे बड़ा उपहार है, संतोष सबसे बड़ा धन और विश्वास सबसे अच्छा संबंध।
~ गौतम बुद्ध

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