सत्य ही उत्तम मित्र है

सत्य ही उत्तम मित्र है

एक से भले दो- यह कहावत जीवन में उपयोगी साबित होती है जिसके अनुसार अकेले रहने से किसी मित्र के साथ रहना भला होता है। इस मित्र की तलाश आज सभी को है क्योंकि व्यक्ति जब एकाकीपन से गुजरता है तो उसे सच्चे दोस्त की जरूरत अवश्य जान पड़ती है। कहने को तो हम ढेर सारे मित्रों से घिरे होते हैं, आजकल तो सोशल मीडिया के जरिये अनजान लोग भी अपने मित्र बन जाते हैं। कोई हमसे स्वार्थवश मित्रता रखता है और किसी से हमारा स्वार्थ सिद्ध होता है। यहाँ हर कोई एक दूसरे से स्वार्थवश जुड़ा है, ऐसे में सच्चा मित्र चुनना दिन में तारे गिनने के बराबर है।

“हर मित्रता के पीछे कोई ना कोई स्वार्थ होता है। ऐसी कोई मित्रता नहीं जिसमे स्वार्थ ना हो. यह कड़वा सच है।” ~ चाणक्य

सच्चा मित्र बनने और बनाने में एक बात शत प्रतिशत कारगर है जो है -सत्य। यदि हम अपने जीवन में सत्य को पूरी तरह से अपना लेते हैं तो एक अच्छे शुभचिंतक बन सकते हैं, एक ऐसा व्यक्ति जो दूसरों का अहित नहीं करता और दूसरे लोग भी उसे किसी प्रकार का कष्ट होने ही नहीं देते। यह बात बोलने में तो बहुत ही आसान सी प्रतीत हो रही है किन्तु सत्य के साथ चलनेवाला मार्ग बहुत ही कठिन लेकिन सर्वोत्तम होता है।

“विमुख होना आसान है जब आप पूर्ण सत्य बोलने की प्रतीक्षा नहीं करते।” ~ रबिन्द्रनाथ टैगोर

“सत्यम शिवम सुंदरम”
सत्य ही शिव है और शिव ही सुंदर है। सत्य का साथ किसी आराधना से कम नहीं होता है अतः सत्य ही उत्तम मित्र है। एक झूठ के कारण लोगों को न जाने कितने ही पापड़ बेलने पड़ते हैं और अंततः सच प्रकट ही हो जाता है। सत्य बहुत सीधा, सरल और सुखदायी है जबकि झूठ में दुख के अतिरिक्त अन्य और कुछ भी नहीं मिलता है। साधू-संतों और महापुरुषों ने इस संसार को सदैव सत्य का साथ देने की सीख दी है। सत्य के अनुनायियों के कदम हमेशा सफलता के द्वार के चूमनेवाले मार्ग पर ही पड़ते हैं। ऐसे लोग निर्भय हो जीवन में अनेक बुलंदियाँ हासिल करते हैं, पराजय का भाय तो इनमें रत्तीमात्र भी नहीं होता और इन्हीं कारणों से कहा गया है- “सत्यमेव जयते”।

सत्य- संतों के मतानुसार
सॉंच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप।
जाके हिरदै सॉंच है, ताके हिरदै आप।।

सत्य के बराबर कोई दूसरी तपस्या नहीं और झूठ सबसे बड़ा पाप है। जिस ह्रदय में सत्य का निवास होता वहाँ साक्षात भगवान विराजमान हैं।
~ कबीरदास

सच्‍चे नर जग में वही, करैं बचन प्रतिपाल।
कहि कर बचन जो मेंटई, नरक जाय तत्‍काल।।

सत्यपुरुष हमेशा अपने वचन का पालन करते हैं, जो वचन से मुकरते हैं वे शीघ्र ही नर्क में जाते हैं।
~मुंशी रहमान खान

अंतर अंगुरी चार को, साँच झूठ में होय।
सब मने देखी कही, सुनी न माने कोय।।

सच और झूठ के बीच नाममात्र (४ अंगुल) का अंतर होता है, इस थोड़े अंतर के कारण आंखों-देखी पर लोग ज्यादा और कानों सुनी पर कम भरोसा करते हैं।
~वृंद

जेहि के जेहि पर सत्य सनेहू, सो तेहि मिलइ न कछु संदेहू।
जिसका जिसपर सच्चा स्नेह होता है वह उसे निःसन्देह मिलता है।
~ तुलसीदास

सत्य परेशान हो सकता है पराजित नहीं।
सत्यवादी महापुरुष : • हरिश्चंद्र • तेजाजी महाराज • वसुदेव • युधिष्ठिर

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