राष्ट्रकवि दिनकर जी

राष्ट्रकवि दिनकर जी

उदित हुआ वह दिनकर की किरणों सा
गंगा के आंचल मे पल कर,
गाँवो की गलियों मे बढ़ कर,
वह नुनुआ जैसे जैसे बढ़ता है
हिन्दी का रंग उस पर चढ़ता है
हिंदी को हथियार बना कर भारत से वह कहता है,
पुनः महाभारत की तैयारी करने को वह कहता है
कुरुक्षेत्र की मिट्टी से प्रथम विजय संदेश वो दिल्ली को भिजवाता है
स्वयं परशुराम की प्रतिज्ञा ले कर
हर घर रश्मि देने को वह, दिल्ली से कहता है
शोषित जनता हो अथवा लाचार मजदूर,
किसान सब मे नये हुंकार चेतना का स्वर भरता है
गांवों की गलियों से लेकर पटना की सड़कें हो या
दिल्ली का वो संसद हो राष्ट्र हित की ध्वजा लिए वह आगे आगे बढ़ता है

~ सुशान्त सिंह

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