असफलताएँ: जिन्दगी हार नहीं मानूंगा

असफलताएँ: जिन्दगी हार नहीं मानूंगा

जीवन में असफलताओं से हमेशा सामना होता रहता है। इन्हीं की वजह से हम मजबूत इरादों और निडरता के साथ स्वावलंबी बनकर सफलता की ओर अग्रसर होते हैं। कलमकार खेमचंद भी अपनी कविता में कभी हार न मानने की सलाह देते हैं।

चले और चलकर पैर फिर गिरे
तू कितना भी रोक जिन्दगी
चलेगी मेरी चाल यही बचपन की धीरे सही।
कोयले हैं हम ये समझते हैं लोग मेरे अपने कई
पर माँ ने तराशे हैं
हम जैसे कोयलों में हीरे कोहिनूर कई।

 

तख़्ती का दस्तूर उस वक्त जान न पाया
लिखे जो वर्ण तख्त पर उन्हीं को बार बार मिटाया।
हर शब्द ने जीना हर असफलता के बाद
है वाक्य बनाकर सिखाया।
घूंट पानी ये नहीं
जो बस शरबत घोला और सीधे पिलाया।

 

ये जिन्दगी है साथी
छांव ने भी कभी अहसास गर्मी है कराया।
पूछ उस तालिम की देवी को
महलों का सुकून हर विफलता के बाद
कितनों को है मैदान ए जंग के साथ दिलाया।
जिन्दगी सभी की एक दीवार है
कुछ गम और कुछ खुशी उस पार है
बस देखना ये है हौसले बुलंद
हमारे-तुम्हारे कितने तैयार है।

 

जीती है जंग ए जिन्दगी शान से कई फनकारों ने
बात आत्मविश्वास की होती है सफर ए जिन्दगी संस्कारों से।
हर हार, हर असफलता, हर निराशा निर्माण जीत का करवायेगी
तेरी दृढ़ता, तेरी परिकल्पना ही जीत तुझे दिलवायेगी।
बहोत बार हारा हूँ मैं खेम चन्द, फिर भी हार नहीं मानी है,
मिलेगी मुकम्मल जीत में मुझे ये बात मन में ठानी है।

 

हर अपनी विफलता ने परिचय नये विचारों से कराया है
मेरी हंसी तो कहती है
कुछ खोया है तो बहोत कुछ इसने सजाया है।
हर विफलता को सेहरा जश्न का बनाया है
थके नहीं है मंजिल की तलाश में पांव मेरे
सबक हर हार मैंने ठुकराया है।

 

विफलताओं में ही संघर्षों का राज है
हर असफलता बुनती नया ताज है
गिरकर फिर उठो और जमाने को दिखा दो
ये तो बस अभी आगाज़ है।
बस यही अल्फाज़ों को सिखाने का अंदाज़ है
हर हार से जीत का सेहरा बुनना
यही इतिहास ए रिवाज़ है।

 

~ खेम चंद

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