भारतीय सैनिक- देश के रक्षक

भारतीय सैनिक- देश के रक्षक

सैनिक- खुद से जंग ~ हिमाँशु खर्कवाल

चट्टान सा सीना है जिसका,
और आँखों में अंगार है,,
दिन, सूर्य के ताप में तपा,
रात, साथ चाँद के खड़ा है,

यादों की हवा,
जिसके कानो से होकर जाती है,
आँशु बह नहीं पाते,
रूह मचल जाती है,

बाहर से सीचा है उसने खुद को,
भीतर रेगिस्तान सा है,
मुखमण्डल में तेज है,
और तूफ़ान सा है,

खुद को बीती सब बात बताता है,
ख़्वाबों को ही मुलाक़ात बनाता है,
खौफ नहीं है, उसे किसी का,
लेकिन कुछ है,
जो उसे हमेशा डराता है,

साथ सबके, घर उसने,
कल की एक तस्वीर बनाई थी,
खातिर, तिरंगे में रंग भरने,
उस तस्वीर को अधूरा छोड़ आया है,

प्राण जिसके घर में हैं,
वज्र सा शरीर साथ है,
जीवन उसका रणभूमि सा है,
बहुत कुछ खोकर उसने, सब कुछ पाया है!

हिमाँशु खर्कवाल
कलमकार @ हिन्दी बोल India

नव विवाहित सैनिक की पत्नी का दर्द ~ बजरंगी लाल

दिखा कर प्यार के दिन चार तुम सीमा पे जा पहुँचे,
भुलाकर प्यार सारा तुम मुहब्बत माँ (भारत) से कर बैठे
निभाने को कसम,संग,तुमने जीवन भर की खायी थी,
लुटाकर जान तुम तो प्यार हिन्दोस्तां से कर बैठे.

अभी छूटी न थी मेंहदी महावर भी न धूमिल थे,
मेंरे हाथों के कंगन के अभी नग भी न छूटे थे
मेंरी शादी की माला के अभी ना पुष्प थे सूखे,
तिरंगे में लिपट आए जो शायद मुझसे रूठे थे.

खता मुझसे हुयी थी क्या, क्या अपराध था मेरा,
तोड़कर प्यार का बन्धन लिया परलोक में डेरा
सजायी थी मेंरी माँगें जो तुमने प्यार से उस दिन,
धुलाकर चल दिए हो तुम तो अब सिन्दूर वो मेंरा.

तुम्हारे बिन जहाँ में अब मेंरा रह कौन जाएगा,
मैं जाऊँगी जिधर अपना न कोई नज़र आएगा
तुम्हारे बिन ए बोझिल ज़िन्दगी कैसे मैं काटूँगी,
सभी के मुख से अब विधवा का मेंरा नाम आएगा.

बजरंगी लाल
कलमकार @ हिन्दी बोल India

एक सैनिक का प्रेम-पत्र ~ विनय कुमार वैश्कियार

विनय कुमार वैश्कियार
कलमकार @ हिन्दी बोल India

कैसी हो बताना?
मेरी जाने जाना!
जब घर लौटूं तो
मिलने आ जाना

जब तुमको देखा था
इक सपना देखा था
सपने मिल हम
कुछ अपना देखा था

तुमने भी बोला था
अपना दिल खोला था
इशारों-इशारों में ही
सब कुछ कह डाला था

फ़िर मैंने इज़हार किया था
न जाने कितनी बार किया था
सौ नखरे कर-कर करके
तूने भी तो इकरार किया था

जब इस बार आऊंगा
हाथ तेरा मांग जाऊंगा
जैसे भी अब तो
मैं तेरी ही मांग सजाऊंगा

यहाँ सीमा पे टेंशन
जाने क्या सोचे है दुश्मन?
पर जान लगा देंगे
उसके खून से खेलेंगे

निर्विकार खड़ा मैं
सीमा पे अड़ा मैं
जुर्रत जो करे फ़रेबी
सीना चीर दूँ मैं
पर कुछ देश के अंदर
फूँक रहे हैं मंतर
अपनी मिट्टी का खाये
वतनपरस्ती न गाये
बड़ा दुःख होता है
दिल मेरा रोता है
सिपाही सीमा पे
कहाँ सो पाता है?

पर इक बात कहूं मैं
सौ-सौ बार कहूं मैं
ग़र मैं ना रहा तो
तू आंसू न बहाना
मुझे भूल जाना
घर दूजा बसाना
मैं वतन का सिपाही
जाने किस रस्ते का राही?
इक दिन गोली खाकर
कफ़न में लिपटा आऊं
फ़िर कुछ कर ना पाऊं
तुम्हे छू ना पाऊं
भूल भी ना पाऊं
ना! ना! तुम न आना
मुझे कब्र में सोने ही देना
मुझे न जगाना
मुझे न रुलाना
देखा न जायेगा
तेरा भी फुट-फूट कर रोना

इक काम करना
एक ही बार करना
मन के किताब से
अध्याय मेरा फाड़ देना
फ़िर राख-राख करके
जीवन में आगे बढ़ जाना
बस यहीं याद रखना
और सबको बताना
वो भारत का सिपाही था
जो अपनी जान पे खेला था
मर कर शहीदों में
अपना नाम लिखा था

अब बस करता हूँ
चुप ही रहता हूँ
बहुत याद आती हो
तो तुम्हे लिख लेता हूँ

पर जाते जाते
कैसी हो बताना?
मेरी जाने जाना!
मर कर आऊं तो
मुझे भूल ही जाना
मुझे भूल जाना

माटी का तिलक ~ दीपिका राज बंजारा

दीपिका राज बंजारा
कलमकार @ हिन्दी बोल India

चूम इस माटी को माथे पर तिलक लगाया।
जाते-जाते शहीदों ने इस माटी को दुल्हन सा सजाया।।
श्वेत सागर लाली से भरा था।
लहू की अंतिम बूँद तक वो जवान लड़ा था।।

केसर की वह घाटी चीख रही थी।
जब किसी बहन की राखी टूट रही थी।।

हवाओं ने भी को रूख बदला था।
एक झौंके से उस सुहागन का सिंदूर बिखरा था।।

नन्हे-नन्हे हाथो ने मुखाग्नि दी होगी।
जब तिरंगे में लिपट उनके पिता की पार्थिव देह आई होगी।।

फिर क्यों अब भी हमारा खून नहीं खौलता।
देख शहीद की देह हमारा जमीर नहीं बोलता।।

अरे! हर घर से अपना एक बेटा सरहद पर भेज दो।
अर्जुन की तरह दुश्मन की छाती भेद दो।।

करो अंतिम युद्ध विजय का शंख भी बजेगा।
कायर हैं दुश्मन अपनी मौत देख डरेगा।।

फिर केसर की घाटी में शान से तिरंगा लहराएगा।
जिस दिन मेरा भारत असहिष्णु बन जाएगा।।

उठा तलवार विनम्रता त्यागनी होगी।
आतंक को अब हिन्द की ताकत दिखानी होगी।।

Leave a Reply