मतलबी दुनिया

मतलबी दुनिया

यह दुनिया इतनी मतलबी क्यों है?
ऐसे ही कुछ प्रश्न अमित मिश्र की पंक्तियों में पूछे गए हैं।

ये दुनियाँ इतनी मतलबी क्यूँ है,
किसी के आंसुओं पे हँसती क्यूँ है

न दे सके सहारा तो कोई बात नहीं
किसी की बैसाखी को छीनती क्यूँ है

 

इस शहर में अपनों ने पहचाना नहीं
जिसने पहचाना वो अजनबी क्यूँ है

दर-दर भटकते रहे हम गलियों में
यहाँ अपनों की इतनी कमी क्यूँ है

 

जिसपे सोया था वो पत्थर भी नम है
जानने वालों की आंखे बेनमी क्यूँ है

हर तरफ भीड़ है यहाँ हजारों की
फिर भी हर सख्स यहाँ तन्हा क्यूँ है

 

जिसपे वर्षों से हमें था इतना गुमान
वो शख्स भी शहर में अजनबी क्यूँ है

ये दुनियाँ इतनी मतलबी क्यूँ है,
किसी के आंसुओं पे हँसती क्यूँ है

 

~ अमित मिश्र

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