बिन गाये भी गाया तुमको

बिन गाये भी गाया तुमको

आपने भी उस वक़्त का एहसास किया होगा जब मन को ढेर सारी खुशी प्रतीत होतीं हैं और हम मन ही मन गुनगुना उठते हैं। कलमकार विनीत पाण्डेय लिखतें बिन – गाये भी गाया तुमको।

बिन गाये भी गाया तुमको
जीवन के हर पतझड़ में
मधुसुगंध सा महकाया तुमको
सीमा तेरे-मेरे निश्छल प्रेम की जानकर भी
हर तपते संघर्ष में
अमर-गीत सा गाया तुमको
बिन गाये भी गाया तुमको…..

मेरे हर गीत में
तेरे अहसासों की कहानी होती है
जो गुज़र गया
उस अनकहे दर्द की जुबानी होती है
जब भी बैठता हूँ
कोई नज्म़ लिखने को
तू ही उसमें कभी पावन-सी सीता
कभी मीरा रूहानी होती है
मेरे हर गीत में…..

जीवन की थकती दोराहों पे
नया मोड़ दिखाता तेरा प्यार
विश्व गरल की प्याली को
अमृत कर देता तेरा प्यार
मेरी कविता की बंजर भूमि पे
नया भाव जगाता तेरा प्यार
घुलकर स्वयं सब हो जाना
ऐसा धर्म सिखाता तेरा प्यार…..

यूँ तो तेरे पीर के नीर
हमेशा मेरी आँखों में होते हैं
कभी दर्द से छलकते
कभी मासूमियत से अलसाये हुए होते हैं
ये तेरा ही किस्सा
मुझसे हर-बार न जाने क्यों कहते हैं
हूँ बेबस
बांध न पाऊँगा इनको मैं शब्दों में
ये कभी गीता
कभी कुरान का रूप लेते हैं

– विनीत पाण्डेय

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