वक़्त की दास्ताँ

वक़्त की दास्ताँ

वक्त लोगों का न जाने कैसे कैसे हालातों से परिचय करवाता है। वक्त की मार और फटकार हमें जीवन जीने का सही तरीका सिखाती हैं। कलमकार खेम चन्द ने अपनी कविता में वक्त से जुड़ी हुई कुछ बातें लोगों से कहीं हैं।

यहाँ इंसान नहीं शायद पुतले रहते हैं
इंसानियत को बेचकर खुद को इंसान कहते हैं॥
कैसे-कैसे वक्त दिखाये हैं जिन्दगी ने
पुतले हैं शायद इसलिये सहते हैं॥
किसी को राजपाट चाहिये
तो किसी को पैसों का महल॥
वक्त को समझा नहीं वक्त
तूूफानों को कह दो थोड़ा तो ठहर॥
गांओं अब रहे नहीं लापता हो गये शहर
बून्द हूँ बारिश की पता बता दो नहर॥
सीरत की रंगीयत का गुमान नहीं
घर है पर कच्चा मेरा भी मकान नहीं॥
कौन कह रहा है वक्त परेशान नहीं
कल ही सुना रहा था संतुष्टि का कहीं समान नहीं॥
मन में खोट है पर इंसान बेईमान नहीं
वक्त को क्या रोकोगे इसकी थकान नहीं॥
ढूंढ रहे थे अपनी पहचान यहाँ
वक्त ने कहा अब कोई वो इंसान कहाँ॥
वक्त है गूजर जायेगा
हमारे नाम का भी पता बतायेगा॥
किस चीज़ का ग़ुरूर करना
एक रोज़ है हम सबको मरना॥

~ खेम चन्द ठाकुर

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