नदी

नदी

प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा और सुंदरता हमारी ही जिम्मेदारी है। नदियाँ सूख जा रही हैं, जलाशय समाप्त हो रहें हैं, दूर दराज़ के इलाकों में पीने के पानी की कमी हो रही है, भूगर्भीय जलस्तर कम हो रहा है। खेम चन्द ने इस चिंताजनक विषय पर अपने विचार प्रस्तुत किए हैं।

सुख गयी हूँ या फिर सुखाई जायेगी,
ईमारतें मेरे किनारे भी बनाई जायेगी।
किस-किस को समझाऊं अब में
वसुंधरा आने वाले समय में प्यास कैसे बुझाई जायेगी।
नासमझ हो तुम हमारी मासूम संतान,
हरियाली उजाड़ कर बना रहे हो आलीशान मकान।
कहीं बांध तो कहीं बनाई जा रही सुरंग,
उद्योग-धंधों से बिगाड़ा जा रहा हमारा रंग।
माँ भी मानते हो कभी पूजा भी है की,
हम है तो तभी होगा तुम्हारी थाली में घी।
पानी है समझो तभी ये जीवन अनमोल,
युगों-युगों का समझो नदी-नालों का भूगोल।
मत करो तुम इतनी बडी भूल।
कभी बारहमासी थी हम बहती,
जब बर्फ पहाड़ से मैदानों तक थी रहती।
जलाकर सुन्दर ये वन बना रहे हो रेगिस्तान,
समय पर बारिश न हो रहता मन तुम्हारा परेशान।
वक्त रहते सुधार कर हे इंसान।
अठखेलियाँ होती और नाव चलती थी कभी संग हमारे,
हरे भरे थे जब जंगल ये सारे।
छलनी कर दिये तुमने हमारे किनारे।
उजड़ सुन्दर जग तुम्हारा,
दो थोडा़ सा हमें भी सहारा ।
कैसे बुझेगी प्यास ये पुरानी,
जब नदी-नालों में नहीं रहेगा पीने योग्य पानी।

~ खेम चन्द

हिन्दी बोल इंडिया के फेसबुक पेज़ पर भी कलमकार की इस प्रस्तुति को पोस्ट किया गया है।
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