वहम

वहम

दिन तो याद नहीं,
लेकिन कुछ हुआ ज़रूर था,
जो हम पहले दूर हुए,
और फिर तन्हा हुए,
मुझे उस पर खुद से ज़्यादा ट्रस्ट था,
और उसने हर बार ट्रस्ट की धज्जियाँ उड़ाईं,
जो मेरे हर जख्म का मलहम होता था,
आज वह ही मलहम,
ज़ख्म को नासूर कर रहा है।

लिखने को मैं अच्छी कहानी लिखता हूँ,
और अनुमानतः सब सच के इर्द गिर्द ही होती हैं,
लेकिन वह मुझसे भी अच्छी कहानी सुनाती है,
और उसकी कहानियाँ सच से कोसों दूर होती हैं,
फिर भी मैंने हर बार,
उसकी झूठी कहानियों को सच माना,
मैंने जब-जब उसका साथ चाहा,
तब तब उसने मुझसे दूर जाना चाहा।

पहले वह फिर उसकी बातें,
फिर उसके साथ बिताये वह पल,
फिर मेरी नींद,
और अब मेरी होठों की मुस्कान,
एक-एक करके सब बिछड़ रहे हैं,
दो-तीन सालों से वह मेरे सबसे करीब थी,
लेकिन अंतर्मन में प्रश्न उठता है,
क्या वह सच में मेरे करीब थी,
हर नोटिफिकेशन पर
उसके मैसेज के इंतजार का वहम,
देखता हूँ,
पहले इंतज़ार खत्म होता है या ये वहम।

 

~ भवदीप

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