बेटी दिवस 2020

बेटी दिवस 2020

बेटियां

~ मनीषा झा

घर के आंगन में फुल खिल जाती,
जब खुल के हंसती है बेटियां,
पुरुष के कदम से कदम मिला कर,
नित दिन चलती बेटियां !

हर क्षेत्र में परचम लहराती,
अपनी लोहा मनवाती बेटियां,
फिर भी क्युं बोझ है लगती,
गर्भ में ही मारी जाती है बेटियां!

क्युं अब तक स्वतंत्र नहीं है,
सिसक रही है बेटियां,
कभी ताना पहनावा पर तो,
कभी बंदी बनायी जाती है बेटियां!

गलत पुरुषों की होती है,
नज़र झुकाती है बेटियां,
कभी हैवानों की दरिंदगी की,
शिकार बन जाती बेटियां!

उनके सपनों को पंख ना मिलती,
हर पल तोड़ी जाती है बेटियां,
कभी दहेज के दानव के चपेट में,
आग में धधक रही है बेटियां!

बेटी की अभिलाषा

~ इमरान संभलशाही

अभिलाषा बेटी की बस इतना, तन, मन, धन अभिमान रहूँ
पूरब-पच्छिम, उत्तर-दक्षिण, अम्बर-भूतल तक सम्मान रहूँ

नही अभिलाषा तनिक भी मुझको भवनों में श्रृंगार करूँ
नही अभिलाषा तनिक भी मंहगे गहनों से मैं प्यार करूँ
नही अभिलाषा तनिक भी सतचित्त स्वप्नों से इनकार करूँ
नही अभिलाषा तनिक भी निर्बल जीर्ण हृदय बेजार करूँ

अभिलाषा बेटी की बस इतना, ममता की सेवा सदा करूँ
हर ममता, सेवा, सुख के बदले, सुख ममता ही अदा करूँ

नही अभिलाषा तनिक भी मुझको मधुशाला का बाज़ार बनूँ
नही अभिलाषा तनिक भी धनधान्य देह का मैं व्यापार बनूँ
नही अभिलाषा तनिक भी जग में धनाढ्यों का घरबार बनूँ
नही अभिलाषा तनिक भी मुझको आचरण हेतु अंगार बनूँ

अभिलाषा बेटी की बस इतना, वीर जवानों के साथ रहूँ
प्रतिपल संग मे रहकर रणक्षेत्र में वीरों का ही मैं हाथ रहूँ

नही अभिलाषा तनिक भी मुझको धनचोरो का सत्कार बनूँ
नही अभिलाषा तनिक भी मुझको उपवन का गुलज़ार बनूँ
नही अभिलाषा तनिक भी मुझको सौंदर्यता की आकार बनूँ
नही अभिलाषा तनिक भी मुझको उपभोगता का संसार बनूँ

अभिलाषा बेटी की बस इतना, अन्नदाता कृषकों के द्वार रहूँ
वीर जवानों की भार्या बनकर, प्रतिदिन सरहदों की पुकार रहूँ.

हैं पावन बहुत बेटियां इस ज़हां में

~ दिनेश सिंह सेंगर

मेरे पास आकर
वो नींदें चुराये।
चली जाये मुझको
वो सपना दिखाये।।

कभी पास आए
कभी दूर जाए।
कभी मुझको
आवाज देकर बुलाए।।

हसती हसती वो
घर को सजाए।
जाती हुई वो
सभी को रुलाऐ।।

वो बचपन जवानी
बुढ़ापे में देखो।
सदा ही बंधी
रस्मों बन्धन निभाए।।

हैं पावन बहुत
बेटियाँ इस जह्नां में।
जहाँ पहुंच जाए
सगुण आते जाऐं।।

बेटी

~ विनोद सिन्हा “सुदामा”

बेटी से घर शोभता बेटी से है घर परिवार
बेटी घर की नीव होती बेटी होती घर का आधार

मत मारो कोख़ में इसको लेने दो जग़ में अवतार
बेटी होती है लक्ष्मी बेटी सुख़ समृद्धि का द्वार
कोमल मन निर्मल हृदय निश्छल बेटी का प्यार
बेटी से महके घर आंगन महके जीवन संसार

धन दौलत की चाह न इसको ना कोई सरोकार
बस जरा मधुर स्नेह चाहिए और थोड़ा पुचकार
झोका शितल हवा का बेटी नाजूक फूलों की हार
पास रहे तो मन झूमे हो दूर जरा तो ग़म अपार

पापा की होती राज़ दुलारी माँ का अंश संस्कार
देख बिटिया का इक झलक मिटे दुख़ दर्द हज़ार
हरपल हरदम साथ देती हो दुख या कष्ट बेजार
पल में बन जाती माँ बेटी,देती मातृ पृत सा दुलार

माँ बसती हर बेटी में बसता नानी दादी सा प्यार
पहन कपड़े कर श्रृंगार करती उनसा व्यवहार
ईश्वर की अनुपम रचना बेटी है अद्भुत आविस्कार
माँ से बढ़ अगर है कुछ तो बेटी ईश्वर का उपहार

बेटी की अभिलाषा

~ वन्दना भटनागर

बेटी की अभिलाषा यही, ना करो संग उसके सौतेला व्यवहार
मिले उसे भी बेटे की तरह भरपूर लाड़ और प्यार
है इच्छा यही, होने पर उसके झूम उठे खुशी से सारा परिवार
मनाया जाये जन्मदिन उसका भी धूमधाम से हर बार
पढ़ाई -लिखाई, खाने-पीने में कोई भेदभाव नहीं उसे स्वीकार
कानून के बल पर नहीं, स्वाभाविक रूप से चाहती है वो समानता का अधिकार
है इच्छा यही बेटी की, गर करे कोई उसकी इज़्ज़त तार -तार
उसके कपड़ों और सलीके पर ना मिलें उसे ताने हज़ार
ना बैठा दिया जाए घर में छुपाकर, बल्कि दुराचारी हो दंडित व शर्मसार
ना थोपें जायें फैसले उसपर, बल्कि हो फैसले लेने का उसे अधिकार
कर सके अपने सपने सभी ताकि वो साकार
नाम भी रौशन करेगी, करके देखो तो सही उसपर एतबार
करके विदा बेटी को ना करो पराया, छीनकर उससे सारे अधिकार
ज़ुल्म सहकर भी निभाना ससुराल में, अब वही तेरा घरबार
क्यों भरते हो बेटी के मन में ऐसे फ़िज़ूल विचार
क्यों नहीं कहते उससे, करना विरोध गलत बात का, साथ है तेरे तेरा परिवार
बुढ़ापे की लाठी बनने को भी है वो सहर्ष तैयार
फर्ज़ पूरे करने से कब करती है वो इन्कार
बेटी वरदान है अभिशाप नहीं, ना करे कोई उसका अब तिरस्कार
इस ज़माने में भी है जिनपर बेटों का भूत सवार
मार देते हैं कोख में ही बेटी को, है उनपर धिक्कार
बेबात की पाबंदियां अब नहीं उसे स्वीकार
उड़ना चाहती है वो तो अब अपने पंख पसार

बेटियां

~ स्नेहा धनोदकर

घर मे बेटियां है तो कल है
इनसे जीवन का हर पल है
हर घर की आन है
माँ पिता की शान है

खुशियों का खजाना है
प्यार इन पर लुटाना है
सबका ये रखती ध्यान
देती है सबको सम्मान

अपने घर मे भीं होती पराई
अपने ही घर से होती जुदाई
दो परिवारों का बढ़ाती मान
बचाती हर घर की आन

बेटियों को ना मारिये
इनका भविष्य सवारिये
बेटी पड़ेगी तो देश पड़ेगा
बेटी बढ़ेगी तो देश बढ़ेगा

तुम बेटी हो

~ ललिता पाण्डेय

सपनों की सौगात लिए
कदम तुम रखती हो,
माँ की परछाई
पिता के नेत्रों की
चमक को बढ़़ाती हो
हर दर्द में मुस्कुराहट की
औषधि हो,तुम बेटी हो।

भाई की राखी
रिश्तों में प्रेम बनाती हो
हर घर की तुम शोभा बढ़ाती हो
समस्याओं से घिरी होकर भी
तुम निश्चल मुस्कुराती हो
तुम बेटी हो।

हर रूप में तुम
अपना कर्तव्य पूर्ण करती हो
कभी माँ,कभी पत्नी,कभी बेटी
कभी सास बन
हर रिश्ता सजाती हो
तुम बेटी हो।

अपने पिता की दादी बन
उन्हें हर बात समझाती हो
सृष्टि का सृजन कर
तुम अपना हर फर्ज निभाती हो।
वक़्त की रफ्तार में न जाने
तुम कब बड़ी हो जाती हो
बाबुल का अंगना छोड़
जल्दी विदा हो जाती हो
तुम बेटी हो।

मुझ जैसी ही वो लड़की

~ पी. बी. गरिमा

अकेली खोई-खोई सी वो अल्हड़ लड़की।
इश्क में डूबी दीवानी सी वो लड़की।
तूफां में कश्ती उतारे मासूम सी वो लड़की।
हवाओं से लड़ने वाली पतंग सी वो लड़की।
दिल को हथेली पर पड़ोस देने वाली भोली सी वो लड़की।
गुड़ियों से खेलने वाली मनमौजी सी वो लड़की।
खुद ही खुद से बातें करने वाली किताबों सी वो लड़की।
प्रकृति से बेपनाह मोहब्बत करने वाली दिलैर सी वो लड़की।
बारखा संग झूमने वाली मोरनी सी वो लड़की।
नखरो का मेला लगाने वाली नटखटी सी वो लड़की।
कभी तीखी, कभी मीठी पगली सी वो लड़की।

दूसरे नजरिए से देखो तो अलग छवि की वो लड़की।
तन्हाइयों को समेटे गुमसुम सी ओ लड़की।
खुद अपनी किस्मत लिखने वाली गंभीर सी वो लड़की।
आन पर आ जाए तो तूफां को काबू में करने वाली जिद्दी सी वो लड़की ।
लोग कहते हैं बेबाक, बेअंदाज, बेखौफ सी वो लड़की।
कभी घमंडी तो कभी अकरू सी वो लड़की।
आईने में देखो तो मुझ जैसी ही वो लड़की।
हाँ, मुझ जैसी ही वो लड़की।।

अजन्मी बेटी की पुकार

~ प्रियंका जेना

एक अजन्मी बेटी की पुकार,
कहे वो माँ से बार-बार,
माँ मुझको दिखा तो यह संसार,
मैं करूंगी तेरे हर सपनों को साकार।
एक अजन्मी बेटी की पुकार,
कहे वो पिता से बार-बार,
पापा मुझको भी चाहिए आपका दुलार,
मैं नहीं बनूंगी आपके कंधों का भार,
मुझे आने तो दो इस संसार में एक बार।
बनकर एक दिन उजाला,
आपके आंगन में जगमगाऊंगी,
माता-पिता आपके चरणों में,
मैं दुनिया की सारी खुशियां बिछाऊंगी।
मत करो मेरा संहार,
मैं हूं ईश्वर का एक उपहार।

This Post Has One Comment

  1. Vandana Bhatnagar

    Meri rachna ko publish kerne ke liye aapka hardik aabhar 🙏

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