शहीद भगत सिंह जयंती- 28 सितंबर

शहीद भगत सिंह जयंती- 28 सितंबर

हिंदी कलमकारों ने शहीद भगतसिंह को नमन करते हुए उनके स्मरण में कुछ कवितायें प्रस्तुत की हैं। आइए इन्हें पढ़ हम भी क्रांतिकारियों के जीवन और योगदान को जानें। 

मेरा रँग दे बसन्ती चोला, मेरा रँग दे। मेरा रँग दे बसन्ती चोला। माय रँग दे बसन्ती चोला॥

क्रांँतिवीर सरदार भगत सिंह

दिलवन्त कौर

वतन परस्ती खून में उसके हिलोरें लेती थी
सच्ची क्रांति उसकी आंँखों में नज़र आती थी

हिल जाते थे दुश्मन के पाँव उसकी ही ज़मीं पर
जुबान उसकी इंकलाब के नारे जब लगाती थी

काँपते थे अपने होने वाले हश्र को सोच कर भी
नज़र जब क्रांँतिवीर की दुश्मन पर उठ जाती थी

उसकी एक ललकार से दिल्ली दहल जाती थी
ले आया सैलाब क्रांँति का ऐसी उसकी हस्ती थी

उखाड़ फेंकी जड़ें ज़ालिम राज़ की उस वीर ने
अनशन से नहीं लहू बहा कर सींची आज़ादी थी

बसंँती चोला पहनकर फांँसी का फंँदा चूम लिया
भगत सिंह ने मौत को दुल्हन अपनी था चुन लिया।

भानु उदय हो भगत सिंह जैसा हिंदुस्तान में

शहीदे आज़म भगत सिंह की जयंती पर उन्हें शत शत नमन करते हुए साहित्यिक मंच हिंदी बोल india के वसीले से एक कविता देश के अमर शहीद भगत सिंह को समर्पित करता हूँ, जो हर हिंदुस्तानियों के दिल मे हर समय जोश व जज़्बा भरने का कार्य करेगी। जय हिंद!

इमरान संभलशाही
इमरान संभलशाही

तू दे, या रब! किसी को तो केवल बहार दे
दुख छुए न ज़िन्दगी को, खुशी से गुज़ार दे

तू दे, उम्र कम अगर शहीद-ए-आज़म का दे
झोली में माँ की ऐसे ही बेटो का यलगार दे

इल्म की झोली पर्वत हो, गागर में सागर हो
हर वतन की मिट्टी को, ऐसा ही दिलदार दे

इंकलाब के नारों से बर्र-ए-आज़म हिल जाए
हर माँ की अश्कों में, हर कतरे का एतबार दे

लहू समुंदर बनकर उभरे, रेत हरित हो जाये
इस मिट्टी की हर कोख को, शीतल बयार दे

न हो चिंता मर मिटने की, न जोश हो ओझल
ऐसा सूरज चमके जगत में, रोशनी पुकार दे

नही मोह हो दुनिया की दौलत व पुहुप की
जब अभिलाषा हो तो, शहादत का सत्कार दे

भानु उदय हो भगत सिंह जैसा हिंदुस्तान में
यही ही विनती दिन रात करूँ, परवरदिगार दे

शहीद भगत सिंह

एकता कुमारी

आजादी की कीमत क्या है यह तुमने बतलाई,
इंकलाब की परिभाषा भी तुमने हमें सिखलाई।
अँग्रेजी गीदड़ से क्या डरें, करो सामना डटकर,
स्वाभिमान से जीना है, तुमने ये सीख समझाई।

आँधी क्या टक्कर लेगी सम्मुख है तूफान,
मातृभूमि का बढ़ा हमेशा वीरों से सम्मान।
बने आग के शोले तुम, दुश्मन भी थर्राया,
नमन करे भारतवासी, देख तेरा बलिदान।

कोमल कोपल से तुम दिखते, बने सरोवर शांत,
देख हुकूमत अंग्रेजी को, बचपन हुआ अशांत।
क्रोध की ज्वाला भड़क उठी जैसी लहरें सागर में,
छेड़ दिया रज-कण में राष्ट्र प्रेम की तान सुशांत।

रची शौर्य की गाथा बना स्वर्णिम इतिहास,
चाह कर दुश्मन, कर नहीं सकता उपहास।
विह्वल होता, माँ का ह्रदय खो कर तुमको,
तुम शूरवीर बेटे थे, बेटों में भी तुम थे खास।

भगत सिंह का बौद्धिक चिंतन

भगत सिंह कहते थे- क्रांति की तलवार विचारों की सान पर तेज होती है। क्रांतिकारी एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था की रचना करना चाहते हैं; जिसमें हिंसा पूरी तरह से समाप्त हो जाएगी, जिसमें तर्क व न्याय की प्रधानता होगी और सभी प्रकार की समस्याओं का समाधान तर्क व शिक्षा द्वारा किया जाएगा। भगत सिंह मानव मुक्ति की ऐसी विचारधारा की खोज में थे जो व्यावहारिक हो। भगत सिंह ने आजादी की कार्यसूची में उस सामाजिक असमानता को प्रमुखता से शामिल किया था जिसमें अछूतों के लिए बराबर का अधिकार एवं बराबर के मौके हों। भगत सिंह ने कई बार कहा था कि क्रांति से हमारा मतलब अंत में एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था की स्थापना से है, जो मानव जाति को साम्राज्यवादी बर्बादी से बचाए।

अपने लेख “अछूतों की समस्या” में उन्होंने कहा कि मौजूदा नौकरशाही से किसी भी तरह की उम्मीद बेकार है। ऐसे में रास्ता एक ही है कि एकजुटता के साथ एक सामाजिक आंदोलन खड़ा किया जाए जो राजनीतिक और आर्थिक क्रांति का हिस्सा हो। ऐसा कहा जाता है कि भगत सिंह फाँसी पर जाने से पहले उस महिला के हाथों पका भोजन खाना चाहते थे जो तथाकथित अछूत थी। एक सफाई कर्मचारी थी। यह भगत सिंह के विचारों की व्यावहारिक परिणति थी।

आलोक कौशिक

Shaheed-e-Azam Sardar Bhagat Singh
Born: 28 September 1907, Banga, Pakistan 
Died: 23 March 1931, Lahore Central Jail, Pakistan

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