प्रेम-भाव

प्रेम-भाव

उसके चेहरे से जैसे झलूकता था नूर,
पास बैठी थी मुझसे नहीं थी वो दूर।

उसके नज़रों से जब मेरी नज़रें मिलीं,
दिल में मेरे मोहब्बत की कलियाँ खिलीं।

सामने बैठी थी गेसुओं को सवांरती हुई,
चुनर उसकी थी हवा में लहराती हुई।

दिल भी घायल हुआ नज़रें जख्मीं हुईं,
उसने देखी थी जब मुस्कुराती हुई।

न मेरी थी मोहब्बत न मेरा था प्यार,
देख उसको दिल में क्यों बजते गिटार।

गेसुओं को थी लहराती वो बार बार,
फीका लगने लगा साँपों का फनकार।

उसके चेहरे से न थी नज़रें हटती हुई,
मुझको लगती थी हिरनी वो चलतीं हुई।

वो तो लगती थी चूलता हुआ ताजमहल,
जिसको देखे वो हो जाए पूरा घायल।

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