कोरोना काल की समस्याएँ

कोरोना काल की समस्याएँ

कोरोना काल में  समस्याओं को व्यक्त करती कवितायें हिन्दी कलमकरों ने साझा की है, आप भी पढ़ें।

फिर कोरोना एक इतिहास है ~ मधु प्रीति शर्मा

यह जो कोरोना है
दुनिया का रोना है
चीन से आई ये बीमारी है
मचाई जिसने तबाही है
अमेरिका स्पेन जैसे देशों के बुरे हाल हैं
किसी एक देश पर नहीं पूरी दुनिया पर छाया संकट काल है।

दिन प्रतिदिन बढ़ते मामले हैं
मौतों के आंकड़े भी सामने हैं
हर गली हर शहर असुरक्षित है
यह कोरोना संकट की घड़ी है ।

संभालना हर एक को खुद पड़ेगा
घर पर रहकर ही तो इंसान बचेगा
प्रक्षालक और मास्क का प्रयोग
इस घड़ी में जरूरी है
बिना इनके प्रयोग के जान जोखिम में ना डाल
क्योंकि तेरी जान परिवार के लिए कीमती है।

भारत भूमि में शास्त्र और विद्वान हैं
जिन पर सारी सृष्टि कायम है
इंतजार कर तू अपने घर पर रुक कर ऐ इंसान
जहां पर जीते धर्म युद्ध हो
वहां कोरोना बीमारी क्या नाम है
बस थोड़े दिन का इंतजार कोरोना एक इतिहास है।

मधु प्रीति शर्मा
कलमकार @ हिन्दी बोल India

गंतव्य की ओर ~ मनोज बाथरे

वेदनाओं से
चीत्कार करती
सड़कें और हर मार्ग
पर मजबूर तो
चलते जा रहें हैं
निरंतर
अपने गंतव्य
की ओर
इस आस में कि
हम पहुंच
जायेंगे अपनी मंजिल
तक एक न एक दिन।।

मनोज बाथरे
कलमकार @ हिन्दी बोल India

गर्मियों के तपते दिन ~ मोनू दहिया

इस साल के तपते दिन, अन्य सालों से है भिन्न।
इस साल गर्मियों का कर रहे थे सब इंतजार।
अफवाह थी कि गर्मियां आते ही,
कोरोना हो जाएगा देश से बाहर।

करोना वायरस ने मचाया है कोहराम,
सरकार भी बोल रही घर में करो आराम।
अब तो आराम करते करते भी थक गए,
घर पर लगे आम देखते देखते ही पक गए।

इस साल कुल्फी वाला भी नहीं आता,
कुल्फियां खिलाकर ना दिल को ठंडक पहुंचता।
पहले भी गर्मियों में रहती थी, गलियां वीरान।
लेकिन करोना ने इस साल कर दिया, और भी ज्यादा हैरान।

नदियों का जल भी सूख गया, पक्षी प्यासी भटक रहे।
और प्रवासिए मजदूर भी अधर में ही लटक रहे।
पहले छुट्टियां मनाने जाते थे हिल स्टेशन
इस साल तो घर में ही खेल रहे प्लेस्टेशन

जैसे ही बिजली चली जाती, सब गीला हो जाता।
काम कुछ ना होता प्रत्येक, व्यक्ति ढीला हो जाता।

नींद ना आती रात को, पंखे भी अब फेल हुए।
अपने घर भी मानो अब, जैसे तिहाड़ जेल हुए।
सूरज भी किसका गुस्सा, हम पर निकाल रहा।
घर में बैठे-बैठे, आलू की तरह उबाल रहा।

50 के पार कई बार होता पारा,
इस साल कुदरत ने इंसानों को बहुत मारा।

हिसार है हरियाणा का
सबसे गर्म शहर।
इस साल गर्मी यहां
बरपा रही है बहुत ज्यादा कहर।

गर्मी से कोई इतना परेशान है यार।
सिर पर बर्फ की सिल्ली भी रखने को है तैयार।
सर्दी के बाद गरमी
कुदरत की मज़बूरी है।
जो भी हो गर्मी का मौसम भी
बहुत जरूरी है।

मोनू दहिया
कलमकार @ हिन्दी बोल India

कोरोना ~ कलानाथ रजत साव

चीन मे जन्मी – चीन मे पनपी
कर डाला तबाह दुनिया का कोना-कोना
यह देख मेरे मुँह से निकला
हाय कोरोना – हाय कोरोना।

मानव को पलक झपकते निगले
लोगों को पड़ रहा है, जान से हाथ धोना
यह देख मेरे मुँह से निकला
हाय कोरोना – हाय कोरोना।

कभी ख्याबो मे ना सोचा था हमनें
आज मानव को मानव से पड़ रहा है दूर होना
यह देख मेरे मुँह से निकला हाय कोरोना – हाय कोरोना।

आज न छोटा न बड़ा कोई
हरेक को इससे पड़ रहा है जूझना
यह देख मेरे मुँह से निकला
हाय कोरोना -हाय कोरोना।

गाँव बंद, शहर बंद, बंद है देश का कोना – कोना
प्रवासियों को इसके कारण पड़ा पैदल चलना
यह देख मेरे मुँह से निकला
हाय कोरोना – हाय कोरोना।

इस घड़ी ने रोटी की अहमियत है सिखाई
आज यही है हम सब का बड़ा खजाना
यही देख मेरे मुँह से निकला
हाय कोरोना – हाय कोरोना।

न करो बैर जरा सा भी संक्रमितों से
हमारे प्यार से ही उसे यह जंग है जितना
यह देख मेरे मुँह से निकला
हाय कोरोना – हाय कोरोना।

है बड़ी ही अजीब ये बीमारी
जिसका उपचार केवल बचाव से है होना
यह देख मेरे मुँह से निकला
हाय कोरोना – हाय कोरोना।

हर उस शख्स को कोटी – कोटी प्रणाम
जिन्होने दूसरों की कर मदद
उसे पिलाया पानी और खिलाया खाना
यह देख मेरे मुँह से निकला
हाय कोरोना – हाय कोरोना।

बीमारी बड़ी है पर हमारी एकता से नहीं
मिलकर हमें करना है मुक्त
इससे दुनिया का कोना – कोना
यह देख मेरे मुँह से निकला
हाय कोरोना – हाय कोरोना।

कलानाथ रजत साव
कलमकार @ हिन्दी बोल India

वर्ष २०२० ~ नवाब मंजूर

वर्ष 2020 धरा पर,
भारी कौतूहल, राजनीतिक उथल – पुथल के बीच आया है!
इसने पूरे विश्व में कई आशंकाओं को फैलाया है।
बीमारी, महामारी, पड़ोसी देशों से रिश्तों की खटपट,
भारत के अंदर खाने चल रहे सीएए/ एन आर सी पर झंझट!
दिल्ली, गुजरात, चेन्नई, महाराष्ट्र में,
कोरोना का रोना है, न दवाई न उचित कार्रवाई है,
कहीं लगी आग तो कहीं लगाई है।
पक्ष विपक्ष ने एक दुजे पर आरोपों की झड़ी लगाई है।
कुछ बोलते यह तो बदले की कार्रवाई है।
पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान, चीन, अफगानिस्तान,
भूटान, श्रीलंका, नेपाल सबमें उथल- पुथल है।
कहीं सर्जिकल स्ट्राइक तो कहीं सीजफायर
और एल.ए.सी का उल्लंघन प्रबल है।
अमेरिका का ईरान, चीन, रूस से रिश्ते लड़खड़ा रहे हैं,
तो कहीं टर्की, मलेशिया और सऊदी अरब
एक दुजे को आंखे दिखा रहे हैं।
अमेरिका ने ईरानी कमांडर को ड्रोन हमले में मार गिराया है,
पूरे विश्व में कोरोना महामारी
और युद्ध की आशंकाओं ने बाजारों को रुलाया है।
तेल की बढ़ती कीमतें, रूपए उखड़ रहे हैं,
डॉलर और सोने का मूल्य बढ़ रहे रह रह कर,
ये सबका ध्यान खींच रहे महंगाई की मार पर।
तृतीय विश्व युद्ध की आशंका लिए आया है ट्वेंटी ट्वेंटी,
मानवता के लिए है, बड़े खतरे की घंटी।
नास्त्रेदमस की भविष्यवाणी में भी, इसका ज़िक्र है,
‌मुझे तो बस इसके परिणामों और मानवता की फ़िक्र है।

मो. मंजूर आलम उर्फ नवाब मंजूर
कलमकार @ हिन्दी बोल India

मौन हूँ, अनभिज्ञ नहीं ~ शिम्‍पी गुप्ता

देखता हूँ चहुँ ओर, है भूख का नर्तन,
भरा हो जब पेट तो होता है कीर्तन।
मौत, भुखमरी, गरीबी का हो रहा तांडव,
अब कोई तो चलाए इन पे अपना गांडीव।
मनुज भी है व्याकुल, विवश और परेशान,
जानता है सब फिर भी खड़ा है बनकर मौन।
कह रहा सबसे कि हाँ मैं मौन हूँ, पर अनभिज्ञ नहीं।

फिर से धृतराष्ट्र की सभा में हो रहा अन्याय है।
कोई शकुनि, कोई दु:शासन तो कोई दुर्योधन बना है।
एक बार फिर से न्यायप्रिय पांडवों को छला जा रहा है।
फिर से किसी द्रौपदी का चीर हरण हो रहा है।
कर्ण जैसा महावीर भी अन्याय को देख रहा है।
न्यायप्रिय भीष्म पितामह का भी सर झुक रहा है।
शासन भी है अंधा न्याय भी अंधा हो रहा है।
संतुष्ट प्रजा को अब कुछ नहीं मिल रहा है।
और लालची दुर्योधन सब कुछ हड़प रहा है।
देख कर भी सब हाँ मैं मौन हूँ, पर अनभिज्ञ नहीं।

कई दिनों से मजदूर अपने गाँवों को जा रहा है।
पैदल ही सड़क पर, तपती धूप में झुलस रहा है।
पैर पत्थर से भी कठोर हैं, गला पानी से सूख रहा है।
कितनी दूर और पैदल चलना है, बच्चा पूछ रहा है।
बीवी, बच्चे,परिवार है और बस कुछ रोटियाँ साथ हैं।
आँखों में अपने गाँव को लिए गाँव पहुंँचने को सब साथ हैं।
देखते हुए भी यह सब मैं मौन हूँ, पर अनभिज्ञ नहीं।

शिम्‍पी गुप्ता
कलमकार @ हिन्दी बोल India

लौट गए अपने घर को ~ धीरज गुप्ता

जो लौट गये अपने घर को,
क्या फिर वो आप के शहर आयेगें?
जो अपने गॉव को चले पैदल,
क्या वो अपने पॉव के छाले भूल पायेगें?

जो आधे पेट खा कर दिन कई निकाले,
क्या अपने भूखे पेट को फिर मनायेगें?
जो जूल्म सहे तुम्हारे,
क्या फिर वो लाठी खायेगें?

जो थक गये दफ्तरो के चक्कर काट,
क्या वो आप से उम्मीद फिर लगायेगें?
जो आसू बहे है आखो से,
क्या आप कर्ज चुका पायेगें?

जो ढेरो सवाल है मन में,
क्या उत्तर आप दे पायेगें?
छोड़िये जनाब बहुत गम है,
आप ना समझपायेगें?

धीरज गुप्ता
कलमकार @ हिन्दी बोल India

प्रवासी मज़दूर ~ हिमांशु बडोनी

सबको छत का सुख देने वाले, तम्बू में रहने को मजबूर
यहाॅं वहाॅं भटकते दिखे हमें, आज कुछ प्रवासी मज़दूर!

हमको अपनों से जोड़ने वाले, हैं क्यों अपने घरों से दूर
वक़्त मिले गर कभी, तो करुण कथा ये सुनना ज़रूर!

सबको खुशी देने वाले आज रोते हैं, है ये कैसा दस्तूर
आख़िर क्यों ऊपर बैठा वो विधाता बना है इतना क्रूर!

यह काव्य रचना “कोरोना संक्रमण” काल के दौरान अनेक विकट व विषम परिस्थितियों से दो चार होते प्रत्येक प्रवासी मज़दूर की असहनीय शारीरिक, मानसिक व मनोवैज्ञानिक पीड़ा व मनःस्थिति को प्रस्तुत करने का प्रयास मात्र है। मैं आशा करता हूं कि आप सभी सुधी पाठकों को यह रचना पसंद आएगी।

इं० हिमांशु बडोनी (शानू)
कलमकार @ हिन्दी बोल India

कोरोना पर जीत का मंत्र ~ मंजू चौहान

अब कोरोना के साथ ही जीना है,
होगी नही कोई अतिशयोक्ति,
इक्कीसवीं सदी मानव के समक्ष।
यह है एक ऐसा संकट, जो है ग्लोबल।
माहौल है अब तनातनी का,
काम के लिए बाहर आना पड़ेगा।
अब कोरोना से डरना नही, उससे लड़ना है ।
कोरोना को हराने का है एक ही मूलमंत्र।
उसे अकेला छोड़ दो,
एकांत में वो, अपनी मौत ,
स्वयं ही मर जायेगा।
बस अपनाये कुछ मंत्र आजीवन।
सबसे पहले साफ सफाई,
मास्क को बनाये शरीर का हिस्सा
जेब मे रखे सेनिटाइजर,
फिजिकल डिस्टेंस का करे, अनुपालन।
भीड़-भाड़ में न जाए कभी,
नोट पर न लगाएं, गिनते समय, थूक कभी।
धोकर खाये सब्जी और फल,
अपने जूते उतारे बाहर,
घर के अंदर आकर धोएं हाथ।
बच्चो ओर बुजर्गों का रखे ध्यान,
जाए कहीं न बेवजह वो बाहर।
तुरंत करे डॉक्टर से सम्पर्क,
यदि कोरोना के दिखे कोई लक्षण।
क्योंकि कोरोना से डरना नही,
उससे हमे लड़ना है।

मंजू चौहान
कलमकार @ हिन्दी बोल India

नहीं हुआ है खत्म कोरोना ~ देवउत्तम उपाध्याय

जागो भाई, जागो
घर से दूर तुम ना भागो।
नहीं हुआ है खत्म कोरोना।
दो गज दूरी तुम ना त्यागो।

घर से निकलो मास्क लगाकर।
खुद को रखो तुम सुरक्षित।
ना किसी के भ्रम में पडो।
कोरोना से तुम तो डरो।

जीवन तुम्हारा है अनमोल।
व्यर्थ में ना लो संकट मोल।
अनावश्यक तुम मत निकलो।
अपनों का ख्याल तो करो।

देवउत्तम उपाध्याय
कलमकार @ हिन्दी बोल India

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