जिंदगी

जिंदगी

जिंदगी की परिभाषा क्या है? हर इंसान अपने अनुभव से इसे परिभाषित करने का प्रयास करता है, सबके अलग अलग मायने होते हैं। कलमकार कन्हैया लाल गुप्त जी ने भी जिंदगी का अर्थ बताने की कोशिश की है।

जिंदगी प्रेम का एक मधुर गीत है।
जिंदगी दर्द का एक समंदर भी है।
जिंदगी एक उलझी हुई पहेली है।
जिंदगी एक रंगीन पुस्तक भी है।
जिंदगी एक वीणा की तान भी है।
जिंदगी व्यक्ति की पहचान भी है।
जिंदगी मानवता की पहचान भी है।
जिंदगी में कशमकश बहुत घनी है।
जिंदगी की यात्राएँ भी बहुरंगी है।
जिंदगी कभी अकेली तो संगी है।

~ डॉ. कन्हैयालाल गुप्त ‘शिक्षक’

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