सुशांत सिंह राजपूत को भावभीनी श्रद्धांजलि

सुशांत सिंह राजपूत को भावभीनी श्रद्धांजलि

अरे यार! इस तरह क्यों गए? ~ इमरान सम्भलशाही

सितारे चमकते ही नहीं गर्दिश में चलते भी है
चकाचौंध भरे आंगन में गरीबी में पलते भी है

जो दिलो में रहकर गुलाब का फूल सा बसे होते है
उनकी अपनी भी ज़िन्दगी में कांटे चुभते भी है

पसीने निचोड़कर बुलंदियों को छूने वाले कुछेक
कभी कीचड़ सा सना होते है, कभी महकते भी है

चमकते स्क्रीन पर, जिसे देख हम इतराते है कभी
निकल कर बाहर देखा तो ज़मीं पर चलते भी है

मौत तो सबको आनी है लेकिन चुना कौन सा रस्ता?
जिससे नहीं गुजरना था, उसी रास्ते से गुजरते भी है

अदाएं भी खूब हो और नज़ाकत भी खूब हो लेकिन
पत्थर भी उचित तापमान में अवश्य गलते भी है

देखो तो गरीब सभी तपती धूप में पत्थर है तोड़ रहे
गरीब ही लंबी ज़िन्दगी जीते हुए सम्हलते भी है

फूलों के सेज पर सोने वालों को आख़िर होता है गम
क्या, जो खुदकुशी के सहारे क्यों मौत लटकते भी है?

जिसे लाखों दिलों में अपने दिलों में सुलाए हुए है
वो भला क्यों? कायरता से कभी कभी मरते भी है

सुशांत तू क्यों गया छोड़? लाखों दिलों को तोड़कर
भले ही समुंदर में कुछेक लोग तुझसे जलते भी है

क्या कहे तुझे? रोता बिलखता तेरा दुखी “इमरान”
तू ना जाता अगर जानता कि सुशांत रहते भी है

अब क्या कहें? उम्मीद बिल्कुल नहीं थी यार कि तू ऐसे धोखा देकर दुनिया से चला जाएगा। इरफ़ान सर के बाद तेरे जाने के बाद ही हम बहुत रों रहे है। तुम तो धोनी थे मेरे लिए! क्या अदाकारी किए थे मेरे भाई! उफ्फ! क्या मुसीबत आन पड़ी थी तुझे इस तरह जाने की और अलविदा कहने की, गुस्से में कायर अवश्य कह दिया हूं क्योंकि तुम गए ही इसी तरह हो, पर भाई आप तो सदा वीर थे और वीर रहोगे। तुम्हारी मुस्कुराहट में मै फिदा था, लड़कियों को छोड़ ही दो, तुम बेमिसाल से मेरे यार लव यू तुझे यार कहते हुए अच्छा महसूस कर रहा हूं। लो कुछ पंक्तियां तुझे समर्पित कर रहा हूं- गांठ बांध के पढ़ ज़रूर लेना …मिस यू भाई

इमरान संभलशाही
इमरान सम्भलशाही
कलमकार
@ हिन्दी बोल इंडिया

सुशांत क्यों किया ~ कुलदीप दहिया

अभी तो खोले थे
उड़ने को पंख,
सुशांत फिर क्यों किया
जीवन का अंत,
उड़ना था अभी तो बहुत ऊँचे
देखने थे अभी कई बसंत,
सुशांत क्यों किया जीवन का अंत।

कुलदीप दहिया “मरजाणा दीप”
कलमकार
@ हिन्दी बोल इंडिया

घर को सुना कर गया ~ सिकन्दर शर्मा

कैसे उठा पायेगा अपने कंधों पर अर्थी का भार तेरा,
कैसे जला पायेगा अपने हाथो से पालनहार तेरा।

क्या कमी था जो तुमने अपने घर को सुना कर गया,
हँसते-खेलते परिवार का तुमने दर्द दूना कर गया।

बात अगर कुछ था तो, बैठकर समझौता कर लेता,
दिल मे दबी बातो को आपस मे साँझा कर लेता।

सोचा नही था कि तुम इसतरह मुख अपना मारेगा,
खुद अपने हाथों से तुम, खुदही दुनिया छोड़ेगा।

किसे देख देखकर मुस्कुराएगा पालनहार तेरा,
कैसे उठा पायेगा अपने कंधे पर अर्थी का भार तेरा।

सिकन्दर शर्मा
कलमकार
@ हिन्दी बोल इंडिया

कैसे छोड़ गए हम सब को ~ मनीषा झा

कैसे छोड़ गए हम सब को,
ऐसे तो नहीं तुम कायर थे,
अरबों जिसके चाहने वाले,
वो किस बात से घायल थे।

कितनो के आदर्श बने थे,
तुम इतने शक्तिशाली थे,
कौन सी गम में डुब रहे थे,
अंदर से क्या खाली थे।

थी अनमोल मुस्कान होंठ पर,
चेहरे पर सुखद अनुभूति थी,
इतनी अच्छी व्यक्तित्व छवि थी,
खुदकुशी का कैसे सोची थी

ऐसी उम्मीद नहीं थी तुमसे,
कायरता की तो ना सोची थी,
सुशांत तुम शांत रहकर भी,
अशांत कितनी अंदर थी।

सफलता तुम्हारे कदम चुमते,
प्रशंसक की तो कभी ना थी,
लाखों लोगों को युं रुलाओगे,
बिहार के लाल तुमसे ये उम्मीद ना थी।

मनीषा झा
कलमकार
@ हिन्दी बोल इंडिया

अब दर्द बर्दाश्त नहीं होता ~ पीताम्बर कुमार

भाव विह्वल मन कलप रहा,
अविश्वसनीय घटनाएं
एक के बाद एक दर्द दे रहीं
लगातार टूटती कल्पनायें
हाथ छूटता साथ छूटता
और अब कितनों के जीवन का राग टूटता
कराह देता दो हजार बीस का साल
साँसे रूठी, जीवन है बेहाल
दुःख तो साथी है न सुख का,
तो सुख की बारी कहाँ खो गई,
देश-विदेश पीड़ा सहती
तड़पते, कुहकते रात खो गई,
आज फ़िर एक सांस टूटी
उस एक से न जाने कितने जुड़ रहे थे
हलक में दम अटक रहे है
आँसू सुख चुके,
लोग राह भटक रहे है

आ देख ईश्वर, अपनी रचना
कहाँ है छिपा, कितने इम्तिहान बाक़ी है
बता दे ज़रा,
खत्म कर एक ही बार में ये जहाँ,
पर तिल-तिल मत मार
अब दर्द बर्दाश्त नहीं होता,
हाँ, अब किसी से दर्द बर्दाश्त नही होता।।

पीताम्बर कुमार प्रीतम
कलमकार
@ हिन्दी बोल इंडिया

श्रद्धांजलि! सुशांत सिंह राजपूत ~ मो. मंजूर आलम

क्या सोच कर गए?
बहुत खुश हो गए!
दूर हो गई सारी परेशानी ?
पर दुनिया को तो हुई हैरानी!
संचार क्रांति का जमाना है,
इंटरनेट का स्पीड भी हाई है
चौराहों पर लगा नि: शुल्क वाई-फाई है!
जरा देखना वहां से..
क्या छोड़ गए हो?
चहुंओर उदासी और दुखों का पहाड़
लोग चीख चिल्ला रहे सीना फाड़
क्या फर्क पड़ेगा तुम्हें?
लौट के तो न आ पाओगे!
क्या इसलिए आए थे दुनिया में?
चार दिन की चांदनी लिए…
चौंतीस पैंतीस साल की जिंदगी से-
कितने घंटे मां बाप को दिए?
तुम्हारे लिए उन्होंने न जाने कितने
जलाए होंगे दीए।
देखो अपने माता-पिता, चाहने वालों को
जिन्हें जीते जी तुमने मार दिए!
ग़म किसे नहीं है?
कमी किसे नहीं है?
तो लड़ते उन गमों से कमियों से,
यूं न निकलते चुपके से।

तुम तो सितारे थे
ऊंचा कद, ऊंची पहचान थी तुम्हारी
लेकिन जो किए, नहीं थी होशियारी।
ये फिल्मी दुनिया है
इसकी अजब ही है कहानी!
चले तो स्टार
वरना बेकार!
बेकारी में अक्सर लोग ऐसा ही कर जाते हैं
हमारे किसान भी..
फसल अच्छी नहीं हो तो कर्ज में डूब जाते हैं
फिर ऐसा ही आत्मघाती कदम उठाते हैं।
फिल्मी दुनिया वाले भी किसान की तरह है
सदैव चौंकाते हैं।
लेकिन तुम्हें अभी और आगे जाना था,
भटक कर ऊपर चले गए!
क्यों गए? तुम्हें क्या मिला?
जो यूं अपनों को रूला दिया!

नवाब मंजूर
कलमकार
@ हिन्दी बोल इंडिया

सुशांत- क्यों शांत हुए ~ मंजू चौहान

मर जाना,
एक बहुत बड़ी त्रासदी है।
शायद सबसे बड़ी।
दुःख, तकलीफे, खुशियां असंतुष्टि, नेम फेम
या बदनामी का अस्तित्व
तभी तक है, जब तक सांसे चल रही हैं।
एक बार दम निकला नहीं,
कि सब कुछ निरर्थक हो जाता है।
फिर भी लोग मर जाते हैं।
मौत को गले लगाने को तत्पर,
एक तुम्हारी जिंदगी के प्रति
वह उदासीनता,
विचलित करने वाली होगी।
तुम्हारे जैसा इंसान भी हार सकता है,
यह सोच कर सब स्तब्ध रह जाते हैं।
शॉट लगाते धोनी के किरदार में,
कल ही तो देखा था,
तुमको उस अवतार में।
अपनी फिल्मों के किरदार को
तुम खुद ही जिंदगी में नहीं निभा पाए
तुमने दुनिया को चार कदम चलने को कहा
और अपने आप बस तीन कदम पीछे चल पड़े।

आत्महत्या को, कायरता की निशानी बता कर
खुद ही पंखे पर रस्सी के फंदे से लटक गए।
याद आओगे अपनों को,
यह कहने वाली बात नहीं।
मगर तुम ऐसा कर लोगे,
थे ऐसे तो हालात नहीं।
खुद से अपने हाथ किसी के,
जब भी खुदकुशी करते हैं।
आसमान के बड़े सितारे,
यूं ही टूटा करते हैं।

मंजू चौहान
कलमकार
@ हिन्दी बोल इंडिया

चिंतन में चिन्ता ~ सत्येन्द्र कात्यायन

हवा तो आज भी वैसी है
पर घुटन सी है
धूप में तपन है
राह खुली है
बन्द उम्मीदें
साया भी सिमटा सिमटा है
जीवन का हिस्सा छूटा है
अपना एक किस्सा छूटा है
आज उड़ानों की तारीफें
कौन करेगा?
पँखो को उम्मीदें
मिलेगी कैसे?
सारा आकाश बाहों में भरने की
हिम्मत कैसे होगी?
सपनों में अपनों की
आवाजें कहाँ सुनेंगे?

एकाकी एकांत हुए
कुछ मनन किया ना
स्वयं स्वयंभू मान
स्वयं से छल कर बैठे
जीवन अपना कब था?
ये नहीं विचारा
जीया जिसे भरपूर
भूल गए वो
अंतर से कुछ बाते
एकपल कर लेते
सच कहता हूँ
आज भी जी भर
जीते होते

सत्येन्द्र कात्यायन ‘सत्या’
कलमकार
@ हिन्दी बोल इंडिया

सुशांत तुम क्यों शांत हुए ~ अंजली सिंह

माना उलझने होंगी कई
मगर थी ये इम्तिहान की घड़ी।
छोड़ गए ऐसे
मन में सैलाब होंगे कई।
नायाब हीरा बन
हर हार को जीत में बदला।
फिर क्यों लफ्जों को अपने
तुमने दिल में कैद रखा।
कोई तो खास होगा
उसे अपनी हर व्यथा सुनाते ।
ना जाने किस हद तक परेशान थे
अपने प्रियजनों को कुछ तो बताते।
भरोसा है मुझे
तुम कायर नहीं ।
सोचा होगा ना जाने क्या-क्या
वरना तुम बेसब्र तो थे ही नहीं ।
अनकहे कुछ खिस्से कहते
क्यों हमें अकेला छोड़ गए।
यकी कैसे खुद को दिलाऊ
तुम इस जग को छोड़ गए।
मां की याद में जब उस दिन
आंखों में आंसू तुम्हारे आए थे।
प्रशंसक भी तो तुम्हारे
भागीदार बन आए थे।।

पापा की खबरें हर रोज पूछते थे,
कुछ अपनी भी तो कहते
क्यों खुद को कोसते थे।
शख्सियत ऐसी किस्मत वालों को मिलती है
ना जाने चकाचौंध की
दुनिया के पीछे अंधेरी रातें क्यों होती हैं।
सवाल कई है मन में
जो सुलझने अभी बाकी है।
जवाब चाहते हैं सब
क्युकी दिल में यादे अभी बाकी है।
बहुत से राज अभी बाकी है ।

अंजली सिंह
कलमकार
@ हिन्दी बोल इंडिया

तुम क्यों शांत हुए? सुशांत! ~ सीमांकन यादव

व्यक्ति का शान्त होना,
घातक नहीं हैं
घातक है, उसकी इच्छाशक्ति का शांत होना
किसी चीज़ को पाने की चाहत,
जीवन है|
और उसी को खोने का डर,
जीवन से विमुखता
सुशान्त अर्थात्
‘शान्त व्यक्तित्व का सुन्दर चरित्र’
तब तक व्यक्ति सुशान्त है,जब तक कि
वो सुंदरता को जी रहा है,देख रहा है
इसी चितेरेपन को देखते रहना इच्छाशक्ति है,
दूसरे शब्दों में जीवन की सततता का संकेत
कभी-कभी संगीत,काव्य,प्रकृति
संबल प्रदान करते हैं,
सिसकती इच्छाशक्ति को
खुदकुशी किसी भी उलझन का
अंतिम विकल्प नहीं होती,
और भी कई सवाल खडे़ हो जाते हैं अडिग होकर
जीवन क्या है?
सतत इच्छाशक्ति!

ये जो हाहाकार है, मृत्यु के तांडव नर्तन का
‘सुशान्त’ से सु (सुंदरता) का अलगाव है, जो कि
शान्त शेष होने पर भी फेंक रहा है, अनंत प्रश्नचिह्न
भविष्य की ओर
जिसके उत्तर में हमें लौटना होगा,
शांत से सुशांत की ओर
एकाकी से मुस्कान की ओर!

सीमांकन यादव ‘कृषक’
कलमकार
@ हिन्दी बोल इंडिया

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SWARACHIT1012A- अरे यार! इस तरह क्यों गए?
SWARACHIT1012B- घर को सुना कर गया
SWARACHIT1012C- कैसे छोड़ गए हम सब को
SWARACHIT1020C- सुशांत क्यों किया
SWARACHIT1020B- अब दर्द बर्दाश्त नहीं होता
SWARACHIT1020A- सुशांत तुम क्यों शांत हुए
SWARACHIT1026A- श्रद्धांजलि! सुशांत सिंह राजपूत
SWARACHIT1084A- सुशांत- क्यों शांत हुए
SWARACHIT1084B- चिंतन में चिन्ता
SWARACHIT1161A- तुम क्यों शांत हुए? सुशांत!

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