संजय रॉय की ५ लघुकथाएँ

संजय रॉय की ५ लघुकथाएँ

१) ऊंची उड़ान

खाने की चाह लिए कबूतरों का झुंड मंदिर से उड़कर मस्जिद से होते हुए गुरुद्वारे के गुंबदों पर आ बैठा। चारों ओर सन्नाटे को देखते हुए बुजुर्ग कबुतर ने अपने समूह से कहा- “दोस्तों इस वक्त मंदिर की घंटियां मस्जिद से सामुहिक नमाज़ सहित गुरुद्वारे की अरदास अवरूद्ध है यह प्रलयकारी संकेत इंसानों के लिए भयावह है, ऐसे में इंसानों के तरफ से मिलने वाला दाना-पानी पर हम लोगों को अब आश्रित नहीं रहना चाहिए। हमें इस वक्त ऊंची उड़ान भरकर दाना-पानी की खोज-खबर करना चाहिए और साथ ही हमें अपनी खूराक भी कम करना होगा ताकि अन्य पशु-पक्षियों को राहत मिल सके। भाईयों यह वक्त है मिलकर चलने की, हो सके तो बच्चे और बुजुर्गो को छोड़ हम युवा साप्ताहिक उपवास पर रहेंगे और इस वैश्विक आपदा में फंसे इंसानों के लिए शंख-ध्वनि, नमाज़ सहित गुरुद्वारे से नगाड़े की आवाज का हम सभी इंतजार करेंगे। ईश्वर ने चाहा तो मंदिरों से उड़कर मस्जिदों के गलियारों से होकर गुरुद्वारे के गुंबदों पर फिर से उड़ान भरेंगे”।

यह कहते हुए सभी उड़ गए।

२) फरमाइश

ठंड ने जैसे ही दस्तक दी, आलोक की पत्नी सुनंदा ने कहा – सुनो जी ठंड बढ़ने वाली है, मेरे पास एक भी ढंग का ऊनी कपड़े पहनने को नहीं है। मेरे लिए एक – दो अच्छा सा देखकर लेते आना! सुनंदा अपनी बात खत्म ही करतीं कि उसका दुलारा बेटा बोला — हां पापा, मेरे लिए भी एक जैकेट और दस्ताने लेते आना।

उधर ठंड से बुढ़ी मां खांसते… हुए कुछ कह रही थीं कि आलोक बाजार निकल गया।

शाम के वक्त वो आता है और अपनी पत्नी को कई रंगों के कपडो से भरी हुई थैली पकड़ाते हुए कहा — तुम्हारे पसंदीदा रंग के लिए मुझे कई दूकानों पर जाना पड़ा, पता नहीं छोटू को जैकेट पंसद आएगा या नहीं?
तभी अंदर उसकी बुढ़ी मां खांसते हुए बोली — ‘वाह रे ऊपर वाले! बच्चों की ज़िद और उनकी फरमाइश याद रहा, और मां की दवा भुल गए…’।

आलोक लजिज्त होकर बाहर निकल आया।

३) अनुसंधान

रोजाना की तरह माधो जैसे ही ‘गंगा’ में डुबकी लगाता कि ‘गंगा’ साक्षात् प्रकट हो गई, और बोली– ठहरो .. मुझे तुम्हारे हठ के कारण सामने आना पड़ा! क्या धोने आये हो …शरीर या पाप?

माधो यह दृश्य देख कांप रहा था, पर अपने को सँभालते हुए बोला- हे जगत-जननी मै तो धन्य हो गया! आपका साक्षात् दर्शन पा लिया! शरीर का मैल व पाप ही धोने आया था! हे जीवनदायनी मेरा कल्याण कीजिये !

गंगा हंसते हुए बोली-कितने भोले हो ! दुनियाँ चाँद पर चली गयी और तुम पाप और पुण्य के पचड़े में फसे हो ! क्या तुम मुझे अभी भी वही पवित्र-पावन,मोक्षदायनी ‘गंगा’ समझने की भूल तो नही कर रहे हो? गोमुख से खाड़ी तक का हश्र तुम लोगों से छुपा नहीं है! ताज़ा अनुसंधान में, मै भारत की बहने बाली सिर्फ एक बड़ा ‘नाला’ हूँ …डुबकी मत लगाना ! बीमार हो जाओगे! निकल जाओ …!

इतने में माधव की नींद खुल जाती है ! उसे कार्तिक स्नान के लिए घाट जाना है ! मन में सैकड़ो प्रश्न लिए माधव ‘गंगा’ की ओर प्रस्थान कर गया।

४) तोता

पंडित राम दास का पालतू तोता पिंजरे से उड़कर सामने मस्जिद की ऊंची चबूतरे पर जा बैठा, और रोजाना की तरह वहीं से रट लगाने लगा- मिट्ठू…कटोरे-कटोरे। बोलो सीता राम… सीता राम…।

पंडित जी के लाख बुलावे पर वो वापस पिंजरे में आने का नाम नहीं ले रहा। आखिरकार वो उड़ चला और सबके आंखों से ओझल हो गया। कई महीने बाद मस्जिद के नीचे उत्सुकता लिए भीड़ जमा हो रही थी कि पंडित जी का तोता आया । दाना भी खाया पर पंडित जी उसे पिंजरे में डाल न पाए। और फिर मस्जिद पर बैठ कभी अल्ल्लाह हो अकबर… तो कभी सीता राम… की रट लगा रहा है।

यह देख बुजुर्ग मौलवी ने कहा- यह पहाड़ी नहीं, हिन्दुस्तानी तोता है, आओ हम सब मिलकर इसे दाना खिलाते हैं। और पंडित राम दास को समझाते हुए कहा- अब इसे खुला ही छोड़ दो। उड़ता हुआ अच्छा लगता है।

५) वोट बैंक

चूहे को भागता देख, बिल्ली उसे आश्वश्त करती हुई बोली -भला अब क्यों भागते हो भाई? हम लोग अब बिलकुल शाकाहारी हो गये हैं ! यकीन नहीं हो रहा न ? देखो मेरे गले में जनेऊ !

चूहे को बिल्ली की अटपटी बात समझ में नही आई ! वो दूरी बनाते हुए पूछा – ये चूल-मूल परिवर्तन कब से ?

बिल्ली बोली – ये लो…कुत्तों की सभा में शपथ ली है हमने ! नन्हें चूहे को बिल्ली की बात कुछ हज़म नही हुई, वो भागकर एक बुज़ुर्ग चूहे को सारी वाकया कह सुनाया !

बुज़ुर्ग ने कहा-सावधान रहो… ! एक जुट रहो, संसद जाने की तैयारी में वोट बैंक बना रही है!

लेखक : संजय रॉय
रंगकर्मी-चित्रकार, शिवनारायण रोड,
कच्चीघाट, पटना सिटी-800008 (बिहार) 

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