किसान की कहानियाँ

किसान की कहानियाँ

~ कैलाश चन्द्र सालवी

1. एक अभागा किसान

कम्प-कम्पा देने वाली सर्दी में चंद कपडों में लिपट आधी रात में जंगल को चीरता हुआ चला जा रहा था, दिन-रात काम और कड़ी मेहनत के कारण उसके हाथों की चमड़ी सिमटकर ठण्ड से सिकुड़ चुकी थी, पर ना जाने क्यों उसके फ़टे जूते से सनी धूल बोल रही थी उसकी उम्मीद उसका जज़्बा आज भी वही जंगल मे शेर की भांति उसे उससे दो कदम आगे बढ़ाये जा रहा था, इस सुनसान और भयानक काली रात में में ना उसे डर लग रहा है ना उसके कदम डगमगा रहे है बस आ रहा है तो एक ख्याल की इस बार फ़सल अच्छी हो जायेगी छुटकी को शहर के नामी स्कूल में पढ़ेगी और बड़की की शादी भी तो करनी है, सहसा अचानक उसे ठोकर लगती है जिससे उसके फ़टे जूते के बाहर निकले अंगूठा से खून की धारा बहने लगती है । उसे दर्द का तनिक भी अहसास नही होता है पैरों में पड़ी मिट्टी खून से लथपथ अंगूठे पर डाल कर वो फिर अपने ख्याल भरी दुनिया की मस्ती में चला जा रहा था वह, अपनी आँखों से अश्को की धारा बहाती हुई धरती माता अपने लेपन से उसके लगें घाव पर मरहम लगाती ।

रोते हुये कहती है उसका बुड़ब पगला गया है वो जरा सा भी ध्यान नही देता अपने पर, इतने में वह खेत पर पहुँच जाता है जहाँ एक पत्तों की बनी छात के नीचे टूटी हुई खाट पर चंद बिस्तर पड़े हुए है । पास ही पड़ी लकड़ियों को जलाते हुए कुछ आग सेकते हुए उसे याद आया आज तो बिजली रात को आने वाली है उसे सिंचाई भी करनी है। फिर सहसा उसे वही ख्याल आने लगते है बड़का भी शहर है इस बार तो पैसे भी बहुत कम भेज पाया उसे पता नही किस हाल में होगा। कल फोन पर बतिया रहा था सरकार जल्द ही मास्टरों की भर्ती करेगी बस भगवान मेरा बड़का इस बार मास्टर बन जाये । इन ख़यालो में डूबा हुआ । उसे पता ही नही चला कब पूरी रात गुजर गई और भौंर हो गयी वह पूरी रात पानी मे दो पैरों पर खड़ा रहा सर्दी में ना सर्दी का अहसास हुआ और ना थकान दिन बीतते गए फ़सल पकने लगी थी चारों तरफ गेहूँ से लहलाते खेत में गेहूँ की फंखुड़िया झूम रही थी आज पूरे दिन बहुत काम किया रात को सिंचाई भी पास ही बेंरो से लदे पेड़ की छाव में कुछ देर के लिए लेट गया वो इतने कब धरती माता ने उसे अपने आँचल में ले लिया और पितृवत भाव से बेंरो की लता भी उसे स्नेह भरी थपकी का अहसास करा रही थी पता ही नही चला कब उसकी आंख लग गयी अत्याचारियों के चंगुल में फस कर ग़रीबी और फ़रेबी का शिकार हुआ वह आज अपनी माता के आँचल में सो रहा था।

इतने में बड़की खाना लेकर आ गयी आकर पापा को जगाया – पापा उठो ! और बोली क्या हुआ पापा थकान ओर बुख़ार है उठते ही थके हारे चेहरे पर उत्साह भरी मुस्कान के साथ बोला नही बेटा मैं ठीक हूँ । खाना खाते हुए उसने कहाँ छुटकी स्कूल गयी है ? हाँ पापा मैंने सुबह ही तैयार करके भेजा उसे , तो ठीक है । रात के समय जल्दी ही ब्यालू कर जल्दी ही उसने छुटकी की मम्मी को पुकारते हुये कहाँ – अजी सुनती हो कल से खेत पर गेहूँ की कटाई चालू हो जाएगी तुम थोड़ा जल्दी जग जाना और हाँ खाना भी जल्दी बना लेना तभी छुटकी जो नीचे कमरे में अपना होमवर्क कर रही थी आकर बोली पापा अभी जो नई इंग्लिश वाली मिस आयी है उसने आज उसे बहुत डाटा ओर कहा कि कित्ती बार समझाया तुझे मेरे सब्जेक्ट का होमवर्क fourline वाली नोट बुक में ही करो पापा! पापा आप ला दोगे ना? पापा ने उसे गोद में बिठाते हुए कहा हाँ बेटा ला दूँगा गए बार फ़सल के खाद (यूरिया) लाते समय रुपये कम पड़ गए थे तो बहाना बना लिया था बेटा मुझे यह fourline शब्द याद ही नही रहा। बेटा इस बार फ़सल कटते ही नई fourline वाली नोट बुक और नये कपड़े के लिए तुझे ही शहर ले चलूँगा सच पापा और मिठाई भी दिलवाओगे में दीदी के भी लाऊंगी वह नाचने लगती है, हाँ बेटा बोलते ही वह पास रखी टॉर्च को लेकर यह बोलते हुए छुटकी की मम्मी जल्दी उठ जाना सुबह और खेत आ जाना मैं जा रहा हूँ । आज उसे अपार खुशी हो रही थी, फिर आने वाली खुशियों के ख्याल की दुनिया का पिटारा उसकी आँखों के सामने था आग लगाई लकड़ियों में और कुछ अपने को आग में सेंकते हुए आसमान में देखा जो बिल्कुल साफ़ था । अपने फ़टे बिस्तर को सही कर लेट गया ।

पता नही आज उसे नींद क्यों नही आ रही थी पता नही अजीब सा तनाव उसे बार बार सोने ही नही दे रहा था । अभी रात का दूसरा पहेर चल रहा था करवटें बदलतें हुए बिना नींद के उसने तीसरा पहेर भी काट लिया, तभी सहसा अचानक उसकी नजर आसमान पर गयी, जो अभी कुछ देर पहले साफ़ था अचानक बादलों से गिर गया वह घबरा गया अचानक गरज के साथ चमकतीं बिजली ने तो मानो दिल ही दहला दिया हो तेज हवा चलने लगी पत्तो की छत से तेज हवा सराटे बन्द जा रही थी । वह घबराने लगा है!! भगवान रक्षा करो अत्याचारियों के बढ़ते अत्याचार और चारों तरफ प्रदूषित पर्यावरण नष्ट होते मानव धर्म से विमुख दुष्टों से क्रोधित माता प्रकृति आज गुस्से आग बबूला होकर अपना प्रकोप दिखा रही थी । तभी बिलखती धरती माता बोली हे माता प्रकति रहम करो मेरे बेटे पर उधर वह भी प्रभु से रहम की भीख मांग रहा था । कड़कती बिजली के गर्जना के तेज बारिश होने लगती है साथ ओले भी गिरने लगते है गेहूँ से लहलाते खेत पल भर में बर्बाद हो जाते है पौने दो घण्टे के इस तूफ़ान और बारिश ने उस अभागें की दुनिया ही बदल कर रख देती है।

वह अभागा रोता बिलखता घासफूस की बनी पतो की छत के पास लकड़ी के खंभे के पास बेहोश होकर गिर जाता हैं । पूरी रात बारिश और ओलों में भीगता रहा और पता ही नही चला कब सुबह हो गयी पूरी फ़सल बर्बाद हो चुकी थी लहलाते गेहूँ का खेत पूरा बिछ गया था उस पर ओलों की बड़ी बड़ी बूंदे बिछी हुई थी । वह अभागा अपनी किसम्मत को कोसता हुआ वही दोनो घुटनों के बल बैठ घुटनों के बीच सर रख रोता रहा. भूमिपुत्र भारतीय किसान को मेरा शत शत नमन देश का प्रत्येक प्राणी आपका हमेशा ऋणी रहेगा।

लेखक: कैलाश चंद्र सालवी, पोस्ट: SWARACHIT3163



This Post Has One Comment

  1. Rajveer salvi

    जीवन के साक्षात दृश्य को प्रदर्शित करती है, यह कहानी

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