पिता को समर्पित १० कविताएं

पिता को समर्पित १० कविताएं

पिता परिवार का मुखिया होता है और बच्चों में संस्कार की नीव रखता है। हमारी परवरिश में पिता का विशेष योगदान होता है। आइए हम हिन्दी कलमकारों द्वारा पिता को समर्पित की गईं कुछ कवितायें पढ़ते हैं।

पिता एक बादल है ~ अमित मिश्रा

पिता एक वो बादल है अमृत भरा वो गागर है
तड़क भड़क कर जो जीवन में मेरे बरस गया

मुझको प्रफुल्लित कर खुद पानी को तरस गया
निज खुशियाँ त्यागी पर हमको खुशियाँ दे गया

कितनी भी लाचारी थी पर कभी हार न मानी थी
मेरे जीवन को हर्षित करने को मन में ठानी थी

तपते अंगारों पर चल कर उसकी राह गुजर गई
मेरे पग में चुभे जो कांटें उसकी आह निकल गई

अपनी हर ख्वाइश तज मेरी फरमाइश पूर्ण किया
जीवन मेरा सफल बना कर लक्ष्य मेरा पूर्ण किया

मेरे खुद के एहसास हैं ये जो मैं तुम्हें बताता हूँ
ऐसे नेक चरित्र मानुष के चरणों में शीश झुकाता हूँ

~ अमित मिश्रा
कलमकार @ हिन्दी बोल इंडिया
SWARACHIT7

पिता महान है ~ मनन तिवारी

पिता है तो तन पर वस्त्र है
पिता ही कठिनाइयों से लड़ने वाला शस्त्र है।
पिता है तो दीन दुनिया के बनाए षड्यंत्र ध्वस्त है।
पिता ही अनमोल वचनों का शास्त्र है।
पिता है तो जीवन आसान है।
पिता ही सबसे महान है।
पिता है तो ख्वाबो का आसमान है।
पिता ही मेहनती इंसान है।
पिता है तो खुशियों के मकान है।
पिता ही इस धरती पर भगवान है।
पिता है तो बच्चों मे अनुशासन है।
पिता ही परिवार का गौरव और मान है।
पिता है तो हर दिन दीवाली है।
पिता ही सुरों की क्वाली है।
पिता है तो बच्चों के चेहरे पर मुस्कान है।
पिता ही है जिसमे बसती सबकी जान है।
पिता है जिसपर कविताएं भी कम है।
पिता ही है जिसके लिए कलम की आँखे भी नम है।
पिता है जिसपर सब न्योछावर है।
पिता ही प्रेम से भरा सागर है।

मनन तिवारी
कलमकार @ हिन्दी बोल इंडिया
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पापा की लाडली हूं ~ गजेन्द्र बोरवाल

छोटी सी कली हूं पर हर कहीं महक जाती हूं
पापा की लाडली घर की रौनक सजाती हूं
शब्दों में मेरी सादगी और कलम में ताकत रखती हूं
क्या करूँ पापा की लाडली हूं

हर मुसीबत से लड़ जीवन जीती हूं
ना रुखती ना रुखने का हुनर रखती हूं
क्या करूँ पापा की लाडली हूं

रोशन तो हर कोई कर लेता है अपना नाम पर
मैं अपने नाम से पापा का नाम रोशन करती हूं
माशुम सी दिखती हूं पर हौसले आम रखती हूं
लिख दूँ पानी पर नाम अपना
यह जज्बा अपने अंदर रखती हूं
क्या करूँ अपने पापा की लाडली हूं
घर की रौनक सजाती हूं

गजेन्द्र बोरवाल
कलमकार @ हिन्दी बोल इंडिया
SWARACHIT1065A

पिता ~ मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

पिता परिवार की प्राणवायु है
पिता परिवार के प्रत्येक सदस्य की आयु है

पिता से मिले परिवार को शक्ति -संबल है
पिता बड़े-बड़े संकटों में बनते ढाल है

पिता का प्रेम सदा अदृश्य ही रहता है
पिता हंसते-हंसते कड़वा जहर पीता है

पिता बहाकर निज खून-पसीना
पिता लाता है परिवार कि लिए दो जून का खाना

पिता का साथ पाकर संतान बने योद्धा महान
पिता के चरणों में ही है सारा जहान

पिता से ही गृहस्थी की बिंदी चमके
पिता से ही माँ का माथा दमके

पिता से ही माँ की चूडियाँ खनकें
पिता से ही बच्चों की किलकारियां गूँजें

पिता से बड़ा नहीं कोई भगवान
पिता परिवार की अमिट पहचान

मुकेश कुमार ऋषि वर्मा
कलमकार @ हिन्दी बोल इंडिया
SWARACHIT729

देवतुल्य पिता हमारे ~ सुनील कुमार

देवतुल्य पिता हमारे
जीवन का आधार हमारे
खुशियों के खातिर हमारी
सब कुछ अपना हैं वारे
देवतुल्य पिता हमारे।
भवसागर से हमको तारे
धरती पर ईश्वर का रूप धारे
सपनों के खातिर हमारे
सुख-चैन अपना हैं वारे
देवतुल्य पिता हमारे।
कष्ट कभी न तुम इनको देना
कटु वचन न इनको कहना
ये ही तो है पालनहार हमारे
देवतुल्य पिता हमारे।

सुनील कुमार
कलमकार @ हिन्दी बोल इंडिया
SWARACHIT668

पिता के अश्रू ~ आलोक कौशिक

बहने लगे जब चक्षुओं से
किसी पिता के अश्रु अकारण
समझ लो शैल संतापों का
बना है नयननीर करके रूपांतरण

पुकार रहे व्याकुल होकर
रो रहा तात का अंतःकरण
सुन सकोगे ना श्रुतिपटों से
हिय से तुम करो श्रवण

अंधियारा कर रहे जीवन में
जिनको समझा था किरण
स्पर्श करते नहीं हृदय कभी
छू रहे वो केवल चरण

आलोक कौशिक
कलमकार @ हिन्दी बोल इंडिया
SWARACHIT580

मेरे पापा ~ दीपिका राज बंजारा

सूरज की तपन मे वो शजर की छाँव बन जाते हैं।
अक्सर मेरे पापा मेरा हौंसला बन जाते हैं।।

परिस्थिती कैसी भी हो उनके कदम नहीं लड़खड़ाते।
हर मुश्किल से वो मुझे लड़ना सिखाते।।

ऊँचे शिखर सी सफलता वो मेरी देखना चाहते।
मैं उनका गुरूर हुँ एक बात ही वो मुझसे कहते।।

मेरी नाकामी को वो आईना बन दिखाते।
एकांत मे वो मुझे मुझसे ही मिलवाते।।

लाख कहता जमाना पर उन्होने मुझे कभी टोका नहीं हैं।
ख्वाबों को पुरा करने से पापा ने मुझे कभी रोका नहीं हैं।।

मैं तो हर दिन करती गलतियों का पिटारा हुँ।
पर पापा कहते हैं मैं उनका सितारा हुँ।।

आज ये जमाना मुझे दीपिका राज बंजारा कहता हैं।
पर ये राज कौन हैं अक्सर कोई समझ नहीं पाता हैं।।

दीपिका और बंजारा का अस्तित्व हैं राज।
मेरी नजर से देखो मेरे खुदा हैं राज।।

दीपिका राज बंजारा
कलमकार @ हिन्दी बोल इंडिया
SWARACHIT977

पिताजी ~ निहारिका चौधरी

मेरी हिम्मत, मेरा सहारा, मेरा हौसला हैं पिता जी,
जब-जब हारी हूं तो मेरी हिम्मत बन कर मुझे सहारा देते हैं,
आगे बढ़ने की उम्मीद बुलंदियों को छूने का हौसला देते हैं।
मां ने अगर सही और गलत में फर्क समझाया,
तो पिताजी ने सही रास्ते पर चलना सिखाया।
मां ने जिंदगी के हर मोड़ पर जीतने की उम्मीद दी,
तो पिताजी ने हारने पर मेरे अंदर हिम्मत और आगे बढ़ने का हौसला दिया।
पिता अपने बच्चों की हिम्मत हैं,
जब सब साथ छोड़ जाते हैं तो पिता अपने बच्चों की
हिम्मत बन जिंदगी में आगे बढ़ने का हौसला देते हैं,
कहते हैं कि सृष्टि का निर्माण भगवान ने किया है,
सुख हो या दुख सब प्रभु की देन है,
मैंने ना देखा कभी इस सृष्टि के रचयिता को,
पर जानती हूं सिर्फ उस पिता को जिसके होते हुए कोई बच्चा निराश नहीं होता,
फिर चाहे वह कोई चीज हो या हमारे सपने सब साकार हो जाते हैं,
पिता के साए में हर बच्चा अपनी मंजिल को तय कर
बुलंदियों को छूकर आसमा की उड़ान भर पाते हैं।

निहारिका चौधरी
कलमकार @ हिन्दी बोल इंडिया
SWARACHIT1065B

पूज्यनीय पिता ~ कुमार किशन कीर्ति

पिता के बारें में क्या लिखूँ?
बस इतना ही जानता हूँ मैं
ईश्वर की पूजा मैं नहीं करूँ,
लेकिन पिता की पूजा करता हूँ।

कुटुम्बों के पालन में पिता जो त्याग करते हैं
उनके उपकारों को हम क्या?
देवगण भी नहीं चुका सकते हैं
प्रेम और अनुशासन के प्रतीक होते हैं पिता
अपने बच्चों में ही तो अपना प्रतिबिम्ब देखते हैं पिता

एक पिता का कुटुम्ब ही उनका संसार होता हैं
जिसके लिए प्यार उनकी आँखों मे नजर आता है
पिता तो उस वृक्ष के समान होते हैं,
जो आतप, शीत, वर्षा सहकर
अपनी कुटुम्बों की रक्षा करते हैं

पिता की एक आशीष से दुर्गुण भाग जाते हैं,
और पिता की चरणों मे ही तो चारों धाम पाए जाते हैं

कुमार किशन कीर्ति
कलमकार @ हिन्दी बोल इंडिया
SWARACHIT118

पिता पहचान है – अशोक शर्मा वशिष्ठ

पिता परिवार का आधार है
परिवार का पालनहार है
बच्चों के लिए पिता श्रृंगार है
बच्चों को बांटता सच्चा प्यार है

पिता के बिना संसार अधूरा
पिता है तो जीवन पूरा

पिता जीवन का पथप्रदर्शक
सारे परिवार का वो है संरक्षक

पिता है तो संतान की पहचान है
पिता जीवन की आन बान और शान है
पिता से ही तो सारा ज़हान है

पिता समस्त परिवार की आस है
पिता हिमालय की तरह दृढ़ विश्वास है
पिता ही जीवन का निरंतर विकास है

पिता ऊपर से कड़क अंदर से नर्म है
उसके दिल मे दफन अनेक दुख और मर्म है

पिता हिम्मत और होंसले की दीवार है
पिता के बिना सब कुछ बेकार है
उसकी हर डांट मे छिपा होता प्यार है
हममें सदा भरता अच्छे संस्कार है

हर मुसीबत मे देता डटकर साथ
पिता है तो हम सनाथ हैंं
पिता के बिना हम अनाथ हैं

अशोक शर्मा वशिष्ठ
कलमकार @ हिन्दी बोल इंडिया
SWARACHIT1065C

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