रोहित प्रसाद पथिक की दस कविताएं

साहित्य के क्षेत्र में चार भाषाओं जैसे हिन्दी, अंग्रेजी, बंगला व उर्दू में कविताएँ व कहानियाँ लिखनेवाले कलमकार रोहित प्रसाद पथिक ने अपनी दस कविताएं आपके समक्ष प्रस्तुत की हैं।

१) बारह बजे के बाद

बदल जाती है दुनिया
खुशियों के जल से
भर जाता है मानव
एक नया दिन शुरू होता है
नए नियम लागू हो जाते हैं
क्रम बदल जाता है
सिर्फ
बारह बजे के बाद

बदल जाती हैं
अखबारों की हेडलाइंस
लिखे जाते हैं नए विधान
बुने जाते हैं
जीवन गीत
शाॅल ओढ़कर रखी जाती है
आसमां में शरीर
रचे जा रहे हैं
उपन्यास एवं कविताएं
गाई जाती है
गांवों में बिरहा

रास्तों पर
जन्म लेते है नए लोग
खुल जाते हैं मार्केट के कपाट
और धीरे-धीरे अंधेरा भाग कर
बुलाता है उजाले को
सिर्फ बारह बजे के बाद.


२) मार डालने वाले विचारों को सलाम

क्या…?
यह हालात मुझे झूका देेंगे
किन्हीं सोफ्ट नामों की तरह
या अपने ही मुझे मिटा देगे
जैसे
मिटा दिये जाते हैं
माथे के कलंकों को
धीरे से
समझना मुश्किल है
मैं समझना चाहता हूँ
तुम्हारी मौत का मतलब
आज भी अनजान हैं
मुंह के असंख्य निवाले

आज भी
जेम्स बॉन्ड हर घरों में दस्तक दे रहा है क्यों ?
समस्या के भीतर भी
समस्या बालतोड़ की तरह उपस्थित हैं
अपने साथ मवाद लिए
हम वाह्य प्रेसर तो डाल रहे है
मगर निर्रथक हैं यह प्रेसर
सोचो, विचारो और मार डालो
अपने तीन घंटे और बहत्तर बर्ष के आजादी को

मैं लिखूंगा
तुम्हारे भीतर एक कट्टर नाम
जो सिद्ध हुआ होगा
तुम्हारे अंदर के मानवीय विचारों से
सोचने पर भी
तुम सिर्फ तुम रहोगें
नहीं बन पाओगें
एक सार्थक वीर्य
जिसके कीटाणु हमेशा ही
यह कटटरपंथी विचारधारा को
हमारे समक्ष जटिल विषाक्त का रूप धारण कर
रचेगा एक नव निर्वाचित प्रतिनिधि
और अंत होगा एक देश का…?


3) आसनसोल टू कुमारधुबी

ट्रेन की खिड़कियों से झांकने पर
मिलते हैं असंख्य जटाधारी वृक्ष
कुछ बेबाक बातें करते विद्यार्थी
ट्रेन तो रूकी है
मगर एक ट्रेन के अन्दर जीवन पनप रहा है
एक सुन्दरी वृक्ष की तरह….

कुछ बच्चे विस्फोटक हरकतों को
अंजाम दे रहे हैं,
बच्चों की माँ
एक नव नियुक्त होती एक दिशा में
जहाँ सिर्फ एक कम्पार्टमेंट, बिना टायलेट्स, सिर्फ दरवाज़े
आपस में लड़ते हुए
जहाँ
हवाओं का भी साथ है,

सिर्फ मैं
खोया हुआ हूँ अपने आप में

तभी ट्रेन के होर्न
और एक के बाद एक कम्पार्टमेंट
आपस में संवाद करते हुए
मेरे हाथों में धीरे से थम गया.

फिर
मैं ट्रेन से उतरकर
बस स्टैंड की ओर भागा
और पायी उदासीन एक बस
जिसके अंदर घुसे बैठे हैं एक के ऊपर एक लोग

उन लोगों ने मुझे भी ठूस रखा एक
बेजोड़ पड़ी गठरी की तरह
मेरी गर्दन पर असंख्य खरोचें
एक महिला से बेमतलब की झड़प
कारण सिर्फ
” हल्की-सी ठोकर लग जाना मेरे पैर से “

इसी पर महिला ने बस को
बडे़ प्रेम से अपनी गोद में ले लिया
और यात्रिगण एक-एक करके
सड़क को चुम रहे थे.

अन्ततः मैंने भी
कुमारधुबी के मैथन डैम पर
उतरकर एक बिसलेरी की बोतल को खरीदा
और अपनी गर्दन की खरोचों पर पानी डाला

एक झोपड़ी जैसे दुकान पर
गर्म चाय की चुस्की और
कानों में एफ.एम में बजता
अस्सी के दशक का एक सोन्ग;

” लग जा गले की फिर… ये हसीन रात हो ना हो…! “


४) तुम मर तो नहीं सकते हो

जहां से
क्लियर होता है ब्रह्मांड

जहां सिर्फ
मौत के पौधे उगते हैं
आहिस्ता-आहिस्ता
वचन को पढ़कर तुम
एक देश नहीं बदल सकते

मैं जानता हूं
काले विचारों से
होकर युद्ध करना होगा तुम्हें
क्योंकि विचार फक्कड़ है
फिर तुम्हें
एक विशालकाय बीज से भी
मौत के स्वर बदलने होगें
एकमात्र बची रहेगी यह धूसर जमीन

तुम ध्वस्त करने
तो निकल गए हो
लेकिन एड़ी को मजबूत कर लेना
ईट को लोहा बनाकर लाठियों से प्रेम करना
किताबों में लिखे शब्दों को बुलाकर
नई किताबों को लिखना

क्योंकि हर पांडुलिपि धोखेबाज होती है
तुम अब तक
लड़ रहे थे अपने वजूद के लिए
अचानक तुम्हारा मस्तिष्क एकांत
हाथों में सूजन और आंखें बड़ी और
मुंह से लाल लार निकल रही है और तुम


५) विश्वसनीयता

माना की प्रतीक्षा करते हुए शब्दों ने
कह दिया मुझे अलविदा

कहना न होगा प्रायः तुम्हें
मुझे भी बता दो
एक वेबसाइट पर लिखित पोस्ट का पता
जहाँ मरने के बाद का दृश्य
कभी भी दुखी ना करता हो हमें

डोम के छोटे-छोटे बच्चों के होंठ से
जल-जल कहते
फिर दुबक कर
समस्त परिवार के लोगों को रौंद डाला
किसने यही तो हमें समझना है
विचारों के अंदर आहिस्ता आहिस्ता
काले धन का आयोजन होता जाता है
दैनिक जीवन के लोग
रास्ते पर टेलीकास्ट करते हुए नजर आते है
खून से लथपथ हाथों में
आज भी त्वरित है तुम्हारे चीख,भत्सना, गर्भपात, भूख और भ्रष्टाचार जैसे शब्द

एकदम अलग-अलग अस्थाई आह्वान करके नीच डोम मरते हैं
सही कहा है अपनें
विवेक और बुद्धि में अंतर होता है
विवेक बुद्धि से प्रेम कर नहीं सकता
बल्कि करवाता है
नसीहतों के ताने-बाने में डोम से प्रेम कर बैठे लोग
धीरे से थम गया विश्वास
फिर
कोरे पन्नों पर
जन्मदिन मुबारक हो
लिख दिया मैंने


६) मौत के हवाले कविता

लिखते-लिखते
मौत के हवाले
चढ़ गई
एक कविता.

मैं अदम्य साहस
करता रहा कि
कम से कम
इस अधमरी कविता की
मौत कैसे होगी… ?

जो खुद
मौत से लड़ती है
वह भी मौत से
संवाद करेंगी.

और रात के
अंधेरे में
अचानक मौन होगा अंधेरा.
और सत्य शांत होगा.

तब मेरे द्वारा
रचित एक
अधमरी कविता को
मैं स्वयं
श्रद्धांजलि दूंगा,
और मेरे आंखों में
आंसू सूखे होंगे।१।

कविता
लहू-लुहान है
वजह है एकमात्र
अपने शब्दों के प्रहार से
भाषा शैली से
लेखन दृष्टि से
पाठकों के विचार से
और
कवि के
अनूठे हलफनामे से…

आखिरकार
कवि ने स्वयं
एक शब्द लिखा

वह शब्द है ‘मौत’
और मौत
जब मृत हुआ
तब कवि ने
चुपके से
अपनी डायरी खोली
और मौत के
हवाले कर दी
अपनी लिखित,सुसज्जित, भावात्मक…
कविताओं को।२।

उदास है मन
क्योंकि
मरने वाली है कविता.

सोचती है कलम
मैंने भी
किसे अपना स्याही दी
जो अल्प आयु थी.

फिर कोरे कागज़ ने भी
अपनी बात
रखने में कोई कसर नहीं छोड़ा
कहा-
“साली…
कविता को मरना ही था
तो कवि ने मुझ पर
लिखा ही क्यों? “
डायरी भी भभकी
और बोली-

सारा दोष
हलकट कवि का है
अधमरी कविताओं को
मत लिखो जो
धीरे-धीरे मौत के
हवाले हो रही हो!
एक वायरस की तरह।३।


७) सापेक्ष होते हुए भी

हाथों की हथेलियों में
निर्वस्‍त्र हैं
हमारी किस्मत की लकीरे
नागवार गुजरता है मन इन्हें देख

शायद !
किस्मत अपनी किस्मत पर भारी पड़ा हो
पैरो की तलहट्‍टी सिकुड़ गया है
मगर चलन अब भी जारी है.
कई सवाल जो जुबां पर बवाल मचा रहे हैं
अपने उत्तर की खोज में तड़प उठे है.
मगर
आज भीचाटुकार बाबा बनकर जीना चाहते है.
ग्रहों में भी चापलूसी का भाव
सिसकी मारता छाया हुआ है
सभी मनुष्य आपनी कमजोरी पर
ईट पर नाच रहे हैं…

एक मात्र हम
किसी साहुकार की तपती
भट्टी को निहारते हैं निरन्तर
कहते हुए भी भिन्न लगते हैं
कटुरता की वाणी आज भरते हैं.
मैं आज शामिल हुआ तुम्हारे समारोह में
बड़े ससम्मान के साथ मुझे
कुछ भी बस…
कुछ भी कह देते हो
आज हुआ हूँ
मैं तुम्हारे सापेक्ष
दो मेरे प्रश्‍नो के जवाब
देना होगा तुम्हे !
क्‍यों भाग रहे हो ?
अपने कर्तव्यों से
आज तुम चुप हो
मेरे सापेक्ष होते हुए भी !


८) लाश

मर जाना
जीने से
कई गुना बेहतर है

क्योंकि
हर लाश को नसीब होती है
कफन
चीता
फूल
घी और आत्म शांति

जो बेहतर है
एक दकियानूसी जीवन के
मंसूबों से…


९) इन्हें मत मारो

मत मारो
यह भी
सदस्य है
तुम्हारे मन के शहर का

यह वही
दलित है
जिन्होंने जन्म दिया है तुम्हें

सोचो
ओए! गंदे सूअरों
यही है
जिन्होंने स्वच्छ किया है
तुम्हारे मलिन विचारों को
अब ठहरो
और हाथों में लिए
कठोर पत्थर को कोमल करों

फेंक दो
किसी डस्टबिन में
अपनी जातिवादी विचारधारा को
अब भी कहता हूँ;
“इन्हें मत मारो! मत मारो…!”


१०) युवा

युवा होना
एक खतरनाक क्रिया है
क्योंकि कम उम्र में ही
जन्म लेती है आकांक्षाएं
जैसे जन्म लेता है
एक पंछी अपने अंडे से

इस उम्र में
पैर डगमगाते है
आंखें सपसपाती है
किसी भी जिस्म को देख
खून उबलता है
एक सौ डिग्री के तापक्रम पर
फिर चमड़ी को फाड़ कर
बाहर निकलता है युवा गर्म खून
और संसार वाले नहाते हैं उस खून से

वीर्य बलवान होता है
कितना यह नहीं पता ?
शिकार बन जाता है वीर्य खुद
उपस्थित होता है यह संसार के
एक सूक्ष्म भाग पर।


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