होली के रंग

होली के रंग

डॉ. रमाकांत ‘क्षितिज’

रंग ~ डॉ. रमाकांत ‘क्षितिज’

जो भी आंखों से देख पाता हूं
वह तुम ही तो हो
सफेद हो नीले हो हरे हो पीले हो
जो देखता हूं
हर रूप में तुम ही तुम हो
हम तुम्हारे साथ खेलते हैं या
तुम हमारे साथ खेलते हो
तुम्हारा एक रूप आंखों से दिखता है
तुम्हारे बहुत से रूप भावों से दिखते हैं
जिन्हें देखने के लिए आंखों की नहीं
हृदय की जरूरत होती है
क्या तुम भी हमें
कई रंगों में देखते हो
तुम्हारे तो कई रूप हैं
हम भी तो कई रूप रखते हैं
अपने अपने रंग बदलते हैं
तुम्हारा जो है जैसा है सच्चा है
वैसा ही दिखता है
हम तो पल दो पल में रंग बदलते हैं
लगते कुछ और
दिखते कुछ और
होते कुछ और
खेलते तो तुम्हारे साथ
वर्ष में हम एक दिन हैं
अपनों के साथ हम रोज रंग बदल कर खेलते रहते हैं
तुम्हारे साथ खेलते हैं
तो होली होती है
अपनों के साथ खेलते हैं
तो चालाकी होती है
तुम्हारे रंग रूप की सीमा है
हम समय के साथ
अपडेट होकर नए नए रंग धारण कर रहे हैं


प्रिया सिंह

होली के वो रंग ~ प्रिया सिंह

अपने कोरे-कोरे हांथो में रंग भर,
चुपके से मेरे गालों पर छुआ जाना।
अगर ढल भी जाऊ उन गहरे रंगों में,
फिर भी तुम मुझे पहचान लेना।
मेरे पसंद उन लाल-पिले रंगों को भी,
अपने चेहरों पर सजा लेना।
मन जब तुम्हारा विचलित हो तो,
गुलाल मेरे नाम की हवा में उछाल लेना।
इश्क़ का चढ़ा रंग कभी न उतर पाए,
बस मुठ्ठी पर ग़ुलाल लेकर मुझ पर बरसा देना।
नहीं समझना होली का रंग है कच्चा,
बस हर रंगों में इश्क़ के गहरे रंगों को ढूंढ लेना।


मधु शुभम पाण्डे

प्रीत के रंग ~ मधु शुभम पाण्डे

गगन का नीला, अवनि का धानी इंद्रधनुष सतरंगी रंग।।
सुख दुःख के हैं रंग निराले सपनों के अतरंगी रंग।।

सच्चा हो गर चाहत का रंग, प्रेम प्रसून खिल जाता है।।
गोरी राधा के जीवन में श्याम रंग मिल जाता है।।
प्रेम के होते रंग निराले, कान्हा जी का श्याम रंग।।

सुख का रंग हम सबको भाता,दुःख का रंग न भाता है।।
सुख हमको संतुष्टि देता, दुःख प्रेरित कर जाता है।।
सुख दुःख के हैं रंग निराले, आंसू का न कोई रंग।।

जीवन भर न कष्ट रहेगा, हरि से प्रीत लगा लेना।।
दुनिया के रंग से मन को हटा, प्रभु चरणों में लगा लेना।।
कृष्ण नाम की ओढ़ चुनरिया, इसका है न कोई रंग।।
श्याम रंग में रंग दे सांवरिया, जनम जनम न उतरे रंग।।


ललिता पाण्डेय

आया रंगो का त्यौहार ~ ललिता पाण्डेय

आया रंगो भरा त्यौहार
लाया खुशियाँ भी हजार।

रंग,अबीर उड़े गुलाल
दिखे सबके चेहरे लाल।

ढोल-नगाड़े जमकर बाजे
बच्चे बूढ़े सब मिल नाचे।

छोड़ पुराने सारे झगड़े
आज रंगो में सब है जकड़े।

गीत-संगीत मन उत्सव सा है
देख गुजिया हर मन ललचा सा है।

रंग-बिरंगे चेहरे है
दिल में अरमां पूरे है।

सूखे रंगो और पिचकारी से
होली खेलना पर पूरी जिम्मेदारी से।

थोड़ी सावधानी अभी जरूरी सी है
दूरी तुम रखना भले थोड़ी है।

पर रंगो में रंगना खुद को
नहीं मिलता ऐसा मौका सबको।

भले इन्द्रधनुष बन जाना सबके
और दर्पण में देख स्वयं को मुस्कुराना जमके।


पीताम्बर कुमार प्रीतम

होली का त्योहार ~ पीताम्बर कुमार प्रीतम

रंगों का त्योहार निराला, सबके मन को भाये।।
ईर्ष्या-द्वेष भूल-भुलाकर, सबकोई गले लगाये।।

लाल,पीले, हरे, गुलाबी अबीर उड़े आसमान।।
सिखलाए ये पर्व अनोखा, दो बड़े-बूढ़ो को सम्मान।।

घर-घर पुए-पकवान बने हैं, हर्षोल्लास चहुँओर।।
पिचकारी रंग फेंक रही है, होली में जन सराबोर।।

फगुआ के गीत गूंजते, गली-गली में मचा है शोर।।
डी जे के धुन पर अब तो, नाचे कउआ मोर।।


रंजन कुमार

होली मनाने आए हैं ~ रंजन कुमार

हम अपने शहर गोह में
होली मनाने आए हैं
आज हम सब मिलकर देखो यहाँ
दुनिया को दिखाने आए हैं।
रंग-बिरंगी सतरंगी
जीवन सजाने आए हैं
माता का दुलार
पिता का भरपूर प्यार पाने आए हैं
सारी दुनियाँ में हम यहाँ
एक नया रूप-रंग दिखाने आए हैं
हम अपने शहर गोह में
होली मनाने आए हैं
आज हम सब मिलकर देखो यहाँ
दुनियाँ को दिखाने आए हैं।
माता पिता तेरे चरणों में
अबीर- गुलाल चढ़ाने आए हैं
फूल भी चढ़ाने आए हैं
अपना सर भी झुकाने आए हैं
दो गुलाबों के बीच की दूरियों को
एक पल में मिटाने आए हैं।
आज हम सबों के बीच
भरपूर प्यार लुटाने आए हैं
काँटो से भरी जीवन को
सदाबहार बनाने आए हैं
जीवन की खुशियों को
चार-चाँद लगाने आए हैं।
हम अपने शहर गोह में
होली मनाने आए हैं
आज हम सब मिलकर देखो यहाँ
दुनिया को दिखाने आए हैं।


मधुकर वनमाली

राधा का रंग ~ मधुकर वनमाली

रंग भरी पिचकारी मेरी
स्याम सलोना गात ये तेरा
सराबोर दोनों के तन-मन
फागुन निकला बड़ा चितेरा।

चंदन केसर मटकी भर कर
लेकर निकली थी जो घर से
कहां छुपे रणछोड़ थे मेरे
रंगों के या मेरे डर से।

बड़ी भीड़ बृजबालाओं की
कैसे बच कर आयी भीतर
मँडराती माधव पर मेरे
जैसे मधुकर कुसुम कली पर।

खेली तो होगी उन सब ने
श्याम तुम्हारे संग में होली
राधा का रंग जरा अलग सा
प्रेम, समर्पण, भाव जो घोली।

भीग गया उर अंतर सारा
तुमने कैसा रंग ये डाला
कैसे बरसाणे अब जाए
सूने पथ पर भीगी बाला।

सूखती है जब तक यह चोली
राग सुनाओ कुछ बंशी पर
संग तेरे सभी फागुन बीते
वनमाली वर दो यह हितकर।


डॉ. मुश्ताक़ अहमद शाह

आंखों में मनुहार की भाषा ~ डॉ. मुश्ताक़ अहमद शाह

आ जाओ न फ़ागुन में,
नवयौवन सा श्रृंगार,
तुम्हारा, आँखों मे,
मनुहार की भाषा,
तुम अलसाई,
भारी मेरी सांसों पर,
मैं मतवाला फ़ागुन में,
मृगनयन सी आंखें,
तुम अलबेली सी,
जैसे,महुवे की मदिरा,
रंग बिरंगा मौसम,
सजें हैं टेसू.केसरिया, से,
सूंदर सुंदर प्यारे प्यारे,
देखो न तुम फ़ागुन में,
गीत मधुर से मैं भी गाउँ,
नाचूँ कुदूँ, हो जाऊं,
मदहोश, मैं भी क्यों न,
बसन्त महकता,
मकरंद की आवाज़ें,
रूठो न मुश्ताक़, ऐसे,
तुम भी फ़ागुन में


अभिषेक मिश्र “अमोघ”

सपनों के रंग ~ अभिषेक मिश्र “अमोघ”

रंग में सपनों के भीगी दिखीं तुम मुझे।
जुल्फें रंगों से अपनी भिगोये हुए।
तन फूलों सा कोमल महकता हुआ।
चेहरा चाँद सा रोशन,चमकता हुआ।
निगाहों से दिल में उतरनें लगीं,
मुझे होली के रंग से भिगोते हुए।
मुझे तेरी खबर न ही तेरा कुछ पता,
बन्द आंखों के परदे में देखा तुम्हें,
रंग की रंगोली जैसे मन है तेरा,
तू मेरी आंखों को सपनों से घेरे हुए,
रंग में सपनों के भीगी दिखीं तुम मुझे,
मेरे मन में भी रंगों को भरते हुए।


सुमित सिंह पवार

है मतवारी सी ये होली ~ सुमित सिंह पवार “पवार”

है मतवारी सी ये होली,
हाथ में गुलाल, मन ठिठोली,
खुशियों से पूर्ण चित्त की झोली,
लहरते कदम और ब्रज की बोली,
है मतवारी सी ये होली।

रंग छिप गये, भेद छिप गये,
ईर्ष्या और मनद्वेष छिप गये,
प्रेम के सब के मेघ बन गये,
सबने लगाव की गठरी खोली
है मतवारी सी ये होली।

खोजते अपनों को अबीर में पा लिया,
साथ के सपनों को गुलाल संग जी लिया,
तबियत को छोड़,सबकुछ आज खा लिया,
फिर से बन गयी अपनी टोली
है मतवारी सी ये होली।

हुरियारों संग समां बंध गया,
संगीत हवा में हौले से घुल गया,
सारा वैमनस्य मन से धुल गया,
बन गये सारे स्नेह के हमजोली
है मतवारी सी ये होली।


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