कोरोना कर्मवीर

क्या हमने कभी सोचा था, ऐसी हो जाएगी संसार, जान बचाने के प्रयास में, बंद होना होगा इस बार साबित करने का वक्त है ऐसा, कितनी देशभक्ति की खुमार, कुछ भी नहीं करना है मानव, रहना है परिवार के साथ…

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कोरोना- कर्मो का फल

हो गए हैं अजनबी से अपने ही इस शहर में कौन अब किसको यहाँ जानना है चाह रहा जो कभी मिलता था हमसे स्नेह और प्यार से वही आज देखो देख कर आँख है चुरा रहा सोचने की बात है…

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कोरोना- छोटा वायरस

एक छोटे से वायरस ने, यूँ कर दी तालाबंदी है. समझौते सँग सब जी रहे क्योंकि, कैद मे जिंदगी है. न होता लड़ाई झगड़ा है, न कही हुयी दरिंदगी है.. कम हुयी हैवानियत भीं, क्योंकि, कैद मे जिंदगी है. धरती…

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धन्यवाद कोरोना

मानव है सर्वशक्तिमान, इस दंभ को तोड़ा तुमने, इस पुनर्जागृति के लिए तुम्हारा धन्यवाद कोरोना! यहाॅं सबको समय व अपनों का महत्त्व समझाया, ऐसे पुण्य हेतु हम सब करते हैं अभिवाद कोरोना! जिनसे तुम सुदूर हो, उन्हें जीने की उम्मीद…

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कोरोना की कहानी

कहानी एक दिलचस्प सुनाती हूँ आओ तुम्हे एक बात बताती हूँ समय एक आया बड़ा भारी फ़ैलाने लगा जग में महामारी देश विदेश में मचाया तांडव हाहाकार करती जनता बेचारी कोविड-१९ नाम दिया उसको ना जाने कब हो जाये किसको…

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कोरोना से जीतेंगे

घर में रहकर स्वच्छता को अपनाकर सामाजिक दूरी का पालन करेंगे हा, हम कोरोना से जीतेंगे अफवाहों से बचकर कोरोना फाइटर्स की सलाह मानकर समाज और देश को सुरक्षित करेंगे जी हाँ, हम कोरोना से जीतेंगे हम तब तक इससे…

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कब प्यार करोगे तुम?

कलमकार महेश माँझी की एक रचना पढें- आज है जो कल न हो कब प्यार करोगे तुम। नजरो से मिला के नजरें कब इज़हार करोगे तुम। आकर के देखो तुम शीश महल बनाया है। दिल के हर दरवाज़े खोले स्वासो…

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खतरा अभी टला नहीं है

लॉक डाउन के चौथे चरण में खुलने लगी दुकान, झट पट अधिकतर दौड़ पड़े हैं, खरीदने सामान। पर इतना समझ लीजिए, खतरा नहीं अभी टला, सोशल डिस्टेंस न बनाया, जीना न होगा आसान।। अभी संभल कर रहना होगा, इसी में…

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मैं मजबूर हूँ

गरीबों पर सबसे बड़ा संकट काल है प्रवासी मजदूरों का देखो हाल बेहाल है महामारी में जीवन जीना बड़ा दुस्वार हैं गरीब तबके पर पड़ी सबसे भारी मार हैं गरीब मजदूर ही सबसे ज्यादा मजबूर हैं चारों तरफ देश मे…

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हाँ मैं एक मजदूर हूँ

हाँ मैं एक मजदूर हूँ तकलीफ़ों से भरपूर हूँ चुनाव तो अभी है नहीं हर सहूलियत से दूर हूँ औकात कुछ भी नहीं इसलिए तो मजबूर हूँ । उनकी रोजी-रोटी के लिए न्यूज चैनलों पे मशहूर हूँ । सच कहा…

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मजदूर

भारत के श्रमवीरों की मैं गौरव गाथा लिखता हूँ। जो रीढ़ है देश की उनकी पीड़ा लिखता हूँ। जो हर मौसम में पीड़ा सहकर हँसकर भी जी लेते हैं। जो कभी न मुँह से कुछ मांगते घर पैदल ही चल…

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मुश्किल में मुस्कान

चारों तरफ हीं अंधियारा है गलियां सब सुनसान मंदिर मस्जिद बंद पड़े हैं कहां जाए इन्सान नौनिहाल सब भूखे मरते हे देव करो अब त्राण अब कैसी विपदा आन पड़ी है मुश्किल में मुस्कान। गलतियों का पुतला मानव को तूने…

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महँगाई

महँगाई में आम आदमी हो जाता हक्का-बक्का खुशियों में नहीं बाँट पाता मिठाई। जब होती ख़ुशी की खबर बस अपनों से कह देता तुम्हारे मुंह में घी शक्कर। दुःख के आँसू पोछने के लिए कहाँ से लाता रुमाल? तालाबंदी में…

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एक खिलौना

बच्चों को खिलौने कितने पसंद होते हैं- यह आप से बेहतर और कौन जान सकता है? याद करें बचपन में खिलौने न होने पर आप खुद ही बनाने में जुट जाया करते थे। कलमकार मुकेश बिस्सा ने एक यह बाल…

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कौन थी वो?

कलमकार खेमचंद कहते हैं- "कुछ बातें अल्फ़ाज़ों और किताबों में सच्ची लगती है, तुम नादान कलम को आज भी अच्छी लगती है" और उसके बारे में जानना भी चाहतें हैं। सभी पुछते हैं मुझसे कौन थी होगी वो हम भी…

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तुम पे लिखूँ ग़ज़ल व गीत

कलमकार लाल देवेन्द्र श्रीवास्तव लिखतें हैं कि अपने साथी/मीत पर तो अनेकों गजल और कविताएं लिखीं जा सकती हैं क्योंकि वह होता ही है इतना अच्छा कि उसकी हर एक बात प्रेरित करती है। तुम पे मैं लिखता हूँ ग़ज़ल…

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संकल्प की साधना

दृढ़ संकल्प शक्ति आपकी कभी हार नहीं होने देती है, यह तो सफलता के नए मार्ग दिखाती है। कलमकार मुकेश अमन की एक कविता संकल्प की साधना पढ़िए। संकल्प साधने वालों की, कभी हार नहीं होती है। केवल सपनों से…

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याद तुम्हें कर रो लेता हूँ

कुछ पुरानी चीजों से बहुत गहरी यादें जुड़ी होती हैं और वे ओझल हो चुके उस सख्श को हमारे सामने दिखा देतीं हैं जिनसे हमारा लगाव था। कलमकार विजय कनौजिया भी लिखते हैं उन्हें याद कर कई लोग रो देते…

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लॉकडाउन की बातें

अजब है ना, ये कमाल है ना रहती हैं याद तारीखें। ना याद रहते, ठीक से दिन और वार। हर दिन ही दिल को लगे है रविवार। शांति, संयम और घर ही है स्वस्थ जीवनोपचार। ना बाहर की बातें ना…

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पलायन करते मजदूर

कितना कुछ कहते रहे, मजदूरों के पाँव। तपती जीवन रेत में, कहाँ मिली है छाँव।। पैदल ही फिर चल पड़े, सिर पर गठरी भार। कैसा मुश्किल दौर यह, महामारी की मार।। पाँवों के छाले कहें, कर थोड़ा आराम। जब तक…

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